संकष्टी चतुर्थी व्रत की विधि, आइए आप भी जानें

संकष्टी चतुर्थी व्रत की विधि, आइए आप भी जानें
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भक्त लोग अपने जीवन में आए संकटों से मुक्ति पाने के लिए भगवान गणेश की पूजा-अर्चना और व्रत करते हैं। संकष्टी चतुर्थी को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कई जगहों पर इसे संकट हरा चतुर्थी भी कहते हैं। और कई जगहों पर इसे संकटा चौथ भी कहा जाता है। यदि किसी माह में यह पर्व मंगलवार के दिन पड़ता है तो इसे अनुरागी चतुर्थी कहते हैं। अनुरागी चतुर्थी छह महीने में एक बार आती है। और अनुरागी चतुर्थी के दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को पूरे साल के व्रतों का पुन्य प्राप्त हो जाता है।

भक्त लोग अपने जीवन में आए संकटों से मुक्ति पाने के लिए भगवान गणेश की पूजा-अर्चना और व्रत करते हैं। संकष्टी चतुर्थी को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कई जगहों पर इसे संकट हरा चतुर्थी भी कहते हैं। और कई जगहों पर इसे संकटा चौथ भी कहा जाता है। यदि किसी माह में यह पर्व मंगलवार के दिन पड़ता है तो इसे अनुरागी चतुर्थी कहते हैं। अनुरागी चतुर्थी छह महीने में एक बार आती है। और अनुरागी चतुर्थी के दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को पूरे साल के व्रतों का पुन्य प्राप्त हो जाता है।

संकष्टी चतुर्थी का व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्व होता है। इस व्रत से होने वाले लाभ से व्यक्ति का जीवन सुखमय हो जाता है। संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। लोग अपने संकटों से मुक्ति पाने के लिए भगवान गणेश की पूजा करते हैं। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से मन से नकारात्मक भाव दूर हो जाते हैं। व्यक्ति के जीवन और उसके परिवार में शांति बनी रहती है। ऐसा कहा जाता है कि गणेशजी घर में आ रही सभी बाधाओं को हमारे जीवन से दूर कर देते हैं। और हमारी हर मनोकामना पूरी कर देते हैं।

चंद्र दर्शन चतुर्थी के दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। सूर्योदय से प्रारंभ होने वाला यह व्रत चंद्र दर्शन के बाद संपन्न होता है। पूरे साल में संकष्टी चतुर्थी के बारह व्रत रखे जाते हैं। इन सभी व्रत की अलग-अलग कथाएं और कहानियां प्रचलित हैं। इस व्रत को हिन्दू धर्म के सभी लोग करते हैं। लेकिन भारत के दक्षिणी और उत्तरी राज्यों में यह व्रत ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है।

संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजा विधि

यदि आपका स्वास्थ्य अच्छा है तो आप इस व्रत को निर्जला भी रख सकते हैं। और यदि आपको कोई शारीरिक परेशानी है और आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है और आप चाहते हैं कि इस व्रत को मुझे रखना है। तो आप फलों का सेवन करके या फलों का जूस पीकर इस व्रत को रख सकते हैं। आप अपनी शक्ति के अनुसार इस व्रत को रखें। आप अपने शरीर को या अपने आप को किसी भी तरह का कष्ट देकर इस व्रत को ना करें। क्योकि यदि आपको कष्ट होगा तो आपके भगवान गणेश महाराज को भी कष्ट होगा। यह हमारे शास्त्रों में लिखा है कि व्रत रखने से पहले यह सोच लें कि आप व्रत कैसे रखेंगे। गणपति भगवान में आस्था रखने वाले व्यक्ति इस व्रत को हमेशा करते हैं।

इस व्रत के दिन प्रात:काल सुर्योदय से पहले उठ जाएं। और व्रत करने वाले व्यक्ति नित्य क्रिया से निवृत होकर सबसे पहले स्नान कर लें। इसके बाद स्वच्छ कपड़े धारण करें। और फिर भगवान गणेश की प्रतिमा में सामने बैठकर हाथ जोड़कर व्रत और पूजा का संकल्प लें। जैसे व्रत की आपके मन में इच्छा है, वैसे ही व्रत को पूर्ण करें। यदि निर्जला व्रत करने की आपकी इच्छा है तो आप निर्जला व्रत करें। और इस दिन कुछ खाएं नहीं। यदि आपने पानी पी लिया या कुछ खा लिया तो आपका व्रत खंडित हो जाएगा। इसलिए व्रत का संकल्प सोच समझकर ही लें। हो सके तो आप इस दिन लाल रंग का वस्त्र धारण कर लें। लाल रंग का वस्त्र बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन लाल वस्त्र धारण करने से व्रत सफल हो जाता है।

स्नान के बाद आप गणपति भगवान की पूजा करें। गणपति जी की पूजा करते समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रहना चाहिए। एक लकड़ी की चौकी लें। और उस चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर शिव परिवार की फोटो रखें। फोटो ऐसी हो जिसमें गणेशजी अपने माता पिता के साथ हों या उनकी गोद में हों। या आप भगवान गणेश की प्रतिमा या केवल उनकी भी फोटो ले सकते हैँ। लेकिन पूजा में उनके साथ उनकी माता की फोटो भी जरुर होनी चाहिए। अगर माता पार्वती की फोटो आपके पास नहीं है तो आप दुर्गा माता की फोटो भी पूजा में रख सकते हैं। इसके बाद आप एक लोटे में जल लें। उस लोटे में काले तिल और दूर्वा डाल दें। और इसके बाद लोटे के मुख पर रक्षासूत्र बांध दें। उस लोटे या कलश को भगवान गणेश की प्रतिमा के पास रखें। इसके बाद आप गणपति को फूलों से सजाएं। और उनका तिलक करें। और उन्हें तिल व गुड़ के लड्डू चढ़ाएं। साथ ही गणेश भगवान को केले भी बहुत पसंद हैं तो उन्हें भोग में केले भी चढ़ाएं। और उनका धूप और दीप से पूजन करें। संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को तिल के लड्डू और मोदक का भोग जरुर लगाएं। गणेश जी सामने धूप, दीप रखें और उनके सामने आसन पर बैठकर गणेश मंत्र का जाप करें।

मंत्र

गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जम्बूफलसार भक्षितम् उमासुतं शोक विनाशकारणं नमामि विघ्नेश्वर पादपङ्कजम् ॥

पूजा करने के बाद आप फल, दूध या फल का जूस पी सकते हैं। आप सेंधा नमक ना खाएं, जहां तक संभव हो सके आप नमक का इस्तेमाल ना करें। और शाम को एक बार फिर स्नान कर लें। शाम के समय चंद्रमा के निकलने से पहले आप गणपति भगवान की पूजा कर लें। और संकटा चतुर्थी की व्रत कथा का पाठ भी करें।

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