Sawan 2020: मंगला गौरी व्रत पूजा विधि, कथा और महत्व

Sawan 2020: सावन महीने के सोमवार के दूसरे दिन यानी मंगलवार के दिन सुहागिन स्त्रियां माता मंगला गौरी व्रत रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि, इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य और यश की प्राप्ति होती है। और इस दिन माता मंगला गौरी का पूजन और उनके इस व्रत की कथा सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस दिन पति की लंबी उम्र और परिवार में सुख वृद्धि के लिए सुहागिन स्त्रियां इस व्रत को रखती हैं। इस व्रत की कथा इस प्रकार है।
किसी शहर में एक व्यापारी अपनी स्त्री के साथ सही प्रकार से अपना जीवन यापन कर रहा था, उसके धन वैभव में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। अपार धन होते हुए भी वह व्यापारी संतान हीन था। संतान की कमी उसे बहुत परेशान करती थी। काफी यतन और पूजा-पाठ के बाद उस व्यापारी के घर एक बेटा पैदा हुआ। लेकिन उस समय के ज्योतिषियों ने व्यापारी से कहा कि उनका बेटा अल्पायु है और 17 साल का होते ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। इस बात को जानने के बाद दंपत्ति और भी परेशान हो गए। लेकिन उन्होंने इसे ही अपना और अपने बेटे का भाग्य मान लिया। कुछ समय बाद उन्होंने अपने बेटे की शादी एक सुंदर और संस्कारी युवती से कर दी। वह कन्या सदैव माता मंगला गौरी का व्रत करती और मां पार्वती की विधि पूर्वक पूजन करती थी। इस व्रत के प्रभाव से उस युवती को अखंड सौभाग्यवती होने का आशिर्वाद प्राप्त था। इस व्रत के परिणाम स्वरूप व्यापारी के बेटे की मृत्यु टल गई और उसे दीर्घायु प्राप्त हुई।
व्रत की तिथियां
पहला व्रत: 07 जुलाई 2020
दूसरा व्रत: 14 जुलाई 2020
तीसरा व्रत: 21 जुलाई 2020
चौथा व्रत: 28 जुलाई 2020
व्रत, पूजा एवं महिमा
जैसा कि आपको पता है यह व्रत सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। ऐसे में माता गौरी का पूजन करते समय सुहाग की सामग्री माता को अर्पित करना शुभ माना जाता है। संतान के कल्याण के लिए भी यह व्रत किया जाता है। वैवाहिक जीवन की समस्याओं से बचने के लिए सोमवार के साथ मंगला गौरी व्रत करने का भी विधान बताया गया है। मंगला गौरी की पूजा में माता गौरी को साड़ी के साथ-साथ सोलह श्रृंगार की वस्तुएं, सोलह चूडियां और सूखे मेवे सोलह ही जगह बनाकर अर्पित करना चाहिए।
ऐसे करें मंगला गौरी व्रत की पूजा
सावन माह में मंगलवार को व्रत रखने वाली सुहागिन महिलाए सुबह जल्दी उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करें और साफ-सुथरे धुले हुए अथवा नवीन वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लें। इस व्रत में एक ही समय अन्न ग्रहण करके पूरे माता मंगला गौरी की आराधना की जाती है। एक लकड़ी के तख्त पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर माता मंगला गौरी यानी मां पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। दीप जलाकर माता गौरी का षोडशोपचार पूजन करें। फिर उनको सोलह श्रृंगार के सामान और साड़ी चढ़ाएं। पूजन के बाद माता की आरती करें। इसके बाद दिनभर फलाहार करते हुए संध्या पूजन के बाद अन्न पारण कर व्रत पूर्ण करें।
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