Sawan 2021 : सावन में करें शिव आराधना मिट जाएंगे जीवन के सारे कष्ट

- हजारों सालों से विज्ञान 'शिव' के अस्तित्व को समझने का प्रयास कर रहा है।
- शिव यानी शून्य से परे।
Sawan 2021 : हजारों सालों से विज्ञान 'शिव' के अस्तित्व को समझने का प्रयास कर रहा है। जब भौतिकता का मोह खत्म हो जाए और ऐसी स्थिति आए कि ज्ञानेंद्रियां भी बेकाम हो जाएं, उस स्थिति में शून्य आकार लेता है, और जब शून्य भी अस्तित्वहीन हो जाए तो वहां शिव का प्राकट्य होता है। शिव यानी शून्य से परे।जब कोई व्यक्ति भौतिक जीवन को त्याग कर सच्चे मन से मनन करे तो शिव की प्राप्ति होती है। उन्हीं एकाकार और अलौकिक शिव देवों के देव महादेव का प्रिय महीना सावन का है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि हिंदू धर्म में सावन मास का विशेष महत्व है। सावन में भगवान शिव की अराधना की जाती है। सावन के सभी सोमवार का अपना महत्व होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार पांचवा महीना सावन कहलाता है। इस साल सावन 25 जुलाई से शुरू होकर 22 अगस्त तक रहेगा। इस दौरान कुल 4 सोमवार पड़ेंगे। मान्यता है कि सावन मास में भोलेनाथ की अराधना करने से सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। कुंवारी कन्याएं इस दौरान सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए सावन में पूजा-अर्चना करती हैं।
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ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि सावन का महीना और चारों और हरियाली। भारतीय वातावरण में इससे अच्छा कोई और मौसम नहीं बताया गया है। जुलाई में आने वाले इस मौसम में, ना बहुत अधिक गर्मी होती है और ना ही बहुत ज्यादा सर्दी। वातावरण को अगर एक बार को भूला भी दिया जाए, किन्तु अपने आध्यात्मिक पहलू के कारण सावन के महीने का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व बताया गया है। सावन का महीना पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित रहता है। इस माह में विधि पूर्वक शिवजी की आराधना करने से, मनुष्य को शुभ फल भी प्राप्त होते हैं। इस माह में भगवान शिव के 'रुद्राभिषेक' का विशेष महत्त्व है। इसलिए इस माह में खासतौर पर सोमवार के दिन 'रुद्राभिषेक' करने से शिव भगवान की कृपा प्राप्त की जा सकती है। अभिषेक कराने के बाद बेलपत्र, शमीपत्र, कुशा तथा दूब आदि से शिवजी को प्रसन्न करते हैं और अंत में भांग, धतूरा तथा श्रीफल भोलेनाथ को भोग के रूप में समर्पित किया जाता है।
सावन में चार सोमवार और दो प्रदोष व्रत
विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि सावन में चार सोमवार और दो प्रदोष व्रत रहेंगे। इसके अलावा कई विशेष शुभ योग भी आएंगे। ऐसी मान्यता है कि इस माह में किए गए सोमवार के व्रत का फल बहुत जल्दी मिलता है। लेकिन महामारी के संक्रमण से बचने के लिए घर पर ही भगवान शिव की पूजा की जा सकती है। घर पर की गई पूजा का फल मंदिर में की गई पूजा के बराबर ही मिलता है। इसलिए घर में उपलब्ध चीजों से ही पूजा करनी चाहिए।
सावन में शिव पूजा के 8 खास दिन
पहला सोमवार: 26 जुलाई
दूसरा सोमवार: 02 अगस्त
तीसरा सोमवार: 09 अगस्त
चौथा सोमवार: 16 अगस्त
प्रदोष व्रत: सावन में 5 अगस्त व 20 अगस्त को प्रदोष व्रत रहेगा।
चतुर्दशी तिथि: 7 और 21 अगस्त
शिव को मिली थी जल से शीतलता
कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि जब शिव विष को धारण कर रहे थे उस समय माता पार्वती ने उनके गले को दबाए रखा, जिससे विष का प्रभाव केवल गले में हुआ और शेष शरीर इसके प्रभाव से अछूता रहा। विष के प्रभाव से महादेव का कंठ नीला हो गया। इसलिए उनको 'नीलकंठ' कहा जाता है। विष के प्रभाव से महादेव को असहनीय गर्मी को सहन करना पड़ा। कैलाशपति को विष की गर्मी से छुटकारा दिलवाने के लिए इंद्र ने वर्षा करवाई थी। शिव ने सावन के महीने में विषपान किया था। इसलिए इस महीने उत्तम वृष्टि के योग बनते हैं और शिव की गर्मी को शांत करने के लिए भक्त शिवलिंग पर शीतल जल चढ़ाते हैं।
पूजा-विधि
भविष्यवक्ता अनीष व्यास ने बताया कि सावन महीने में सुबह जल्दी उठकर नहाएं और साफ कपड़े पहनें। इसके बाद ऊं नमः शिवाय मंत्र बोलते हुए गंगा जल से भगवान शिव का अभिषेक करें। शिवलिंग पर जल-दूध चढ़ाएं। फिर फूल, बिल्वपत्र, धतूरा और अन्य चीजें चढ़ाकर आरती करें। इसके बाद नैवैद्य लगाएं। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का ही भोग लगाया जाता है। पूजा-आरती के बाद शिव मंत्र का जाप भी करना चाहिए।
सावन मास का महत्व
कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि सावन मास भगवान शिव को समर्पित है। मान्यता है कि इन दिनों में भक्तिभाव से शिव आराधना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब कालकूट नाम का जहर निकला तो देव और दानव दोनों उससे भयभीत हो गए और कोई भी उसको लेने के लिए तैयार नहीं था। इसके साथ इस विष से चारों और हाहाकार मच गया था। दसों दिशाएं इस विष से जलने लगी थी। देव, दानव, ऋषि-मुनि सभी इसकी गरमी से जलने लगे। इसलिए सभी महादेव के पास गए और उनसे इस सृष्टि को बचाने की प्रार्थना की। भोलेनाथ विष को ग्रहण करने के लिए तैयार हो गए।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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