अश्वमेध यज्ञ के पीछे राजाओं की क्या मंशा होती थी जानिए...

अश्वमेध यज्ञ के पीछे राजाओं की क्या मंशा होती थी जानिए...
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आपने हिन्दू धर्मशास्त्रों में अकसर सुना होगा कि प्राचीन काल में अश्वमेध यज्ञ किया जाता था। आखिर ये अश्वमेध यज्ञ होता क्या है। और ये भगवान श्रीराम आदि लोगों ने क्यों किया था। और इस यज्ञ को करने के पीछे क्या रहस्य है।

आपने हिन्दू धर्मशास्त्रों में अकसर सुना होगा कि प्राचीन काल में अश्वमेध यज्ञ किया जाता था। आखिर ये अश्वमेध यज्ञ होता क्या है। और ये भगवान श्रीराम आदि लोगों ने क्यों किया था। और इस यज्ञ को करने के पीछे क्या रहस्य है। अश्वमेध यज्ञ के बारे में कई तरह की भ्रांतिया भी फैली हुई हैं। तो आइए जानते हैं अश्वमेध यज्ञ के बारे में।

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अश्वमेध यज्ञ में अश्व यानि कि घोड़ा राज्यों के बाहर स्वतंत्र भ्रमण के लिए छोड़ा जाता है। अश्वमेध यज्ञ को कुछ विद्वान और राजनीतिज्ञ इसे आध्यात्मिक प्रयोग मानते हैं। कहा जाता है कि इसे वहीं सम्राट कर सकता था जिस सम्राट का अधिपत्य सभी नरेश (राजा) मानते थे। यानि कि भगवान श्रीराम सर्वशक्तिमान थे और दूसरे राजाओं के द्वार पर वे हमेशा अश्वमेध यज्ञ के अश्व को छोड़ते थे। ताकि जो राजा आदि उनकी शरण में आना चाहता है वह आ सकता है। और जो राजा उनकी शरण में नहीं आता उससे उन्हें युद्ध करना पड़ेगा। कालांतर में यह यज्ञ जो नरेश जिस समाज से संबंध रखता था उस समाज की रीति के अनुसार उसे करता था। इसके कारण इस यज्ञ को करने में कई बुरी परंपराएं भी जुड़ गई। वैदिक रीति से किए गए यज्ञ को धर्म सम्मत माना जाता था।

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यज्ञ करने के बाद अश्व को स्वतंत्र विचरण करने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके पीछे यज्ञ करता राज्य की सेना होती है। जब वह यज्ञ दिग्विजय यात्रा पर जाता है तो स्थानीय लोग इसके पुर्नागमन यानि कि वापस लौटने की प्रतिक्षा करते हैं। इस अश्व के चुराने या इसके रोकने वाले नरेश से युद्ध होता था। और यदि यह अश्व खो जाता था तो दूसरे अश्व से यह क्रिया करवाई जाती थी। कहते हैं कि अश्वमेध यज्ञ ब्रह्महत्या आदि पाप से और स्वर्ग प्राप्ति और मोक्ष प्राप्ति के लिए भी किया जाता था।

वहीं कुछ विद्वान मानते हैं कि अश्वमेध यज्ञ एक आध्यात्मिक यज्ञ है। जिसका संबंध गायत्री मंत्र से जुड़ा हुआ है। श्रीराम शर्मा आचार्य कहते थे कि अश्व समाज में बड़े पैमाने पर बुराई का प्रतीक है और मेधा सभी बुराईयों और जड़ों से दोष के उन्मूलन का संकेत करती है। जहां भी इन अश्वमेध यज्ञ का प्रदर्शन किया गया उन क्षेत्रों में अपराधों और आक्रमकता की दर में कमी का अनुभव हुआ। यानि कि अगर आप पहले ही अश्वमेध यज्ञ का अश्व छोड़ देंगे और बाद में कोई राजा युद्ध करने जाता या पहले ही अपनी हार स्वीकार कर लेगा तो ऐसे में बहुत सारे लोगों की जान बच जाती है। और युद्ध नहीं होगा। कहते हैं कि बहुत सारे राजाओं ने यह यज्ञ करवाया था। जैसे कि पांडव, भगवान श्रीराम आदि कई सारे ऐसे राजा हुए जिन्होंने अश्वमेध यज्ञ करवाया था। किसी राजा ने शांति के लिए तो किसी ने मोक्ष के लिए और किसी ने सत्ता के लिए अश्वमेध यज्ञ करवाया था।

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