Shanivar Vrat: शनिदेव की कृपा पाने के उपाय और जानें शनिवार व्रत की पूजा विधि, कथा व उनके मंत्र

Shanivar Vrat: शनिवार के दिन न्याय के देवता और भगवान सूर्य के पुत्र शनिदेव की पूजा-अर्चना के लिए व्रत रखा जाता है। शनिदेव अपने न्याय और कठोर दंड के लिए प्रसिद्ध है। अगर आप भी शनिवार के दिन उनका पूजन और व्रत करना चाहते हैं और आपको शनिवार व्रत की पूजा विधि, कथा और मंत्र नहीं का ज्ञान नहीं है तो इस प्रकार शनिवदेव की पूजा करके उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं। तो आइए जानते हैं शनिवार व्रत कथा, पूजा विधि और शनिमंत्रों के बारे में...
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शनिवार व्रत की विधि
शनिवार के दिन सू्र्योदय से पूर्व स्नान करें और साफ वस्त्र पहनकर पीपल के वृक्ष पर जल अर्पण करें।
2.शनिदेव की प्रतिमा के पास सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
3.पूजा करते समय शनि के दस नामों का उच्चारण करें।
शनिदेव के दस नाम
कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पला, सौरि, यम, पिंगलो, रोद्रोतको, बभ्रु, मंद, शनैश्चर.
4. पूजा के उपरांत पीपल के वृक्ष के तने पर सूत के धागे से सात परिक्रमा करें.
5. इसके बाद शनिदेव का मंत्रों का जाप करें और दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें।
6. शनिदेव को काला रंग अत्याधिक प्रिय है इसलिए इस दिन स्त्री-पुरुष शनिदेव की पूजा-अर्चना करते हुए उन्हे सरसो का तेल, काले तिल आदि चढ़ाते हैं।
शनि देव की व्रत कथा
शनि देव को सूर्य और छाया का पुत्र कहा जाता है। इनकी पत्नी के श्राप के कारण इनकी दृष्टि क्रुर मानी जाती है। पुराणों के अनुसार बचपन से ही शनिदेव भगवान कृष्ण की भक्ति करते थे। बड़े होने पर इनका विवाह चित्ररछ की कन्या से किया गया । इनकी पत्नी एक पतिव्रता स्त्री और परम तेजस्विनी थी। एक बार एक पुत्र की इच्छा से वे शनि देव के पास पहुंची पर उस समय शनि देव श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन थे।
वह संसार की मोह माया से दूर ध्यान में लगे थे। उनकी पत्नी को प्रतीक्षा करते समय रात से सुबह हो गई और क्रोधित होकर शनि देव का श्राप दे दिया कि वह जिस किसी पर भी अपनी दृष्टि डालेंगे वह नष्ट हो जाएगा। ध्यान टूटने पर जब शनि देव ने उन्हें मनाया तब उनकी पत्नी को अपनी भूल का अहसास हुआ, लेकिन श्राप को वापस लेने की शक्ति उनमें नही थी। उस दिन से ही शनि देव की आखें बंद है। क्योंकि वह किसी का अनिष्ट नहीं चाहते।
शनि देव के मंत्र
शनि गायत्री मंत्र
ॐ शनैश्चराय विदमहे छायापुत्राय धीमहि ।।
शनि बीज मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनैश्चराय नमः ।।
शनि स्तोत्र
ॐ नीलांजन समाभासं रवि पुत्रं यमाग्रजम ।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम ।।
शनि पीड़ा हरण स्तोत्र
सुर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्ष: शिवप्रिय:।
दीर्घचार: प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि: ।।
तन्नो मंद: प्रचोदयात ।।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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