Shardiya Navratri 2020 Kab Se Hai : जानिए माता शैलपुत्री की कथा, सिर्फ सुनने मात्र से ही बढ़ती है सुख और समृद्धि

Shardiya Navratri 2020 Kab Se Hai : शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri) के अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होती है। नवरात्रि ( Navratri) के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है।लेकिन कोई भी व्रत कथा के बिना पूर्ण नहीं माना जाता तो आइए जानते हैं मां शैलपुत्री की कथा।
मां शैलपुत्री की कथा (Maa Shailputri Ki Katha)
एक कथा के अनुसार प्रजापति दक्ष ने एक बार एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में सभी देवी देवताओं को अमंत्रित किया गया। लेकिन भगवान शिव को उस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया गया। जब माता सती को यह पता चला कि उनके पिता ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया है तब उनका मन उस यज्ञ में जाने के लिए हुआ। माता सती ने अपनी यह इच्छा भगवान शिव के आगे प्रकट की लेकिन भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि आपके पिता हम से रुष्ट हैं।
इसी कारण से उन्होंने अपने इस यज्ञ में सभी देवताओं को निमंत्रित किया है। लेकिन मुझे इसका आमंत्रण नहीं भेजा और न हीं कोई सुचना भेजी है। इसलिए तुम्हारा वहां जाना ठीक नही है। लेकिन माता सती ने भगवान शिव की बात नहीं मानी। माता सती की अपने माता पिता और बहनों से मिलने की बहुत इच्छा थी। उनकी जिद्द के आगे भगवान शिव की एक भी न चली और उन्हें माता सती को उनके पिता के यज्ञ में जाने की अनुमति देनी ही पड़ी।
माता सती जब अपने पिता के घर पहुंची तो उन्होंने देखा कि सब उन्हें देखकर भी अनदेखा कर रहे हैं और कोई भी उनसे ठीक प्रकार से बात नहीं कर रहा है। सिर्फ उनकी माता ने ही उन्हें प्रेम से गले लगाया था। उनकी बहने की बातों में व्यंग्य था और वह उनका उपहास कर रही थीं। अपने परिवार के लोगों का यह बर्ताव देखकर माता सती को बहुत ही ज्यादा अघात लगा। उन्होंने देखा की सभी के मन में भगवान शिव के प्रति द्वेष की भावना है।
राजा दक्ष ने भगवान शिव का तिस्कार किया और उनके प्रति अपशब्द भी कहे। यह सुनकर माता सती को अत्याधिक क्रोध आ गया। माता सती को लगा कि उन्होंने भगवान शिव की बात न मानकर बहुत बड़ी गलती कर दी है। वह अपने पति की भगवान शिव का अपमान सहन नही कर सकी और उन्होंने अग्नि में अपने शरीर का त्याग कर दिया। जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला तो उन्हें अत्याधिक क्रोध आ गया।
जिसके बाद भगवान शिव ने अपने गणों को भेजकर यज्ञ को पूरी तरह से खंडित कर दिया। इस घटना के बाद माता सती ने दूसरा जन्म शैलराज हिमालय के यहां लिया। हिमालय राज के यहां जन्म लेने के कारण माता सती 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुईं।उपनिषद् के अनुसार इन्हीं ने हैमवती रूप रखकर देवताओं का गर्व भंजन किया था।
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