गया जी में श्राद्ध-तर्पण करने से मिलती है कई पीढ़ियों को मुक्ति

पितरों के लिए खास आश्विन माह के कृष्ण पक्ष या पितृपक्ष में मोक्षधाम गयाजी आकर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और माता-पिता समेत सात पीढ़ियों का उद्धार होता है। पवित्र फल्गु नदी के तट पर बसे प्राचीन गया शहर की देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पितृपक्ष और पिंडदान को लेकर अलग पहचान है। लोग गया शहर में पितृपक्ष के साथ-साथ तकरीबन पूरे वर्ष अपने पूर्वजों के लिए मोक्ष की कामना लेकर यहां आते हैं और फल्गु नदी के तट पर पिंडदान और तर्पण आदि करते हैं।
गया शहर के पूर्वी भाग में पवित्र फल्गु नदी बहती है। माता सीता के श्राप के कारण यह नदी अन्य नदियों के तरह नहीं बह कर भूमि के अंदर बहती है इसलिए इसे 'अंत सलीला' भी कहते हैं। वायुपुराण में फल्गु नदी की महत्ता का वर्णन करते हुए इसे 'फल्गु तीरथ' कहा गया है तथा गंगा नदी से भी अधिक पवित्र माना गया है।
गया जी में तर्पण करने से होता है कई पीढ़ियों का उद्धार
लोक मान्यता है कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को सबसे उत्तम गति के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है एवं माता-पिता समेत कुल की सात पीढ़ियों का उद्धार होता है। साथ ही पिंडदानकर्ता स्वयं भी परमगति को प्राप्त करते हैं।
पानी के छींटों से ही आत्मा को मिल जाती है मुक्ति
फल्गु नदी के जल का महत्व इतना अधिक है कि ऐसी मान्यता है कि नदी में पांव पड़ने से उड़ने वाले पानी की छींटे मात्र से भी पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति हो जाती है। पैर के स्पर्श से उड़ने वाली पानी की छींटे को भी पवित्र मानकर पूर्वजों की आत्मा इस छींटे को भी ग्रहण कर लेती है।
जरुर करना चाहिए पिंडदान
लोगों का मानना है कि यदि पितरों की आत्मा को मोक्ष नहीं मिला है तो उनकी आत्मा भटकती रहती है। इससे उनकी संतानों के जीवन में भी कई बाधाएं आती है। इसलिए गयाजी आकर पितरों का पिंडदान अवश्य करना चाहिए।
इन देवताओं ने की तर्पण करने की शुरुआत
ऐसा बताया जाता है कि सर्वप्रथम आदिकाल में जन्मदाता ब्रह्मा और भगवान श्रीराम ने फल्गु नदी में पिंडदान किया था। महाभारत के वन पर्व में भीष्म पितामह और पांडवों द्वारा भी पिंडदान किए जाने का उल्लेख है। गया में तर्पण कराने वाले पंडों के पास उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि मौर्य और गुप्त राजाओं से लेकर आध्यात्म युग के रामकृष्ण परमहंस तथा चैतन्य महाप्रभु जैसे महापुरुषों ने भी फल्गु नदी में श्राद्धकर्म और तर्पण किया था
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