Putrada Ekadashi 2022: सावन पुत्रदा एकादशी आज, जानें शुभ मुहूर्त और संतान प्राप्ति की ये व्रत कथा

Putrada Ekadashi 2022: सावन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी को पवित्रा एकादशी भी कहते हैं। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है। एकादशी तिथि हर महीने में दो बार पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। एकादशी तिथि भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होती है। हिंदू मान्यता के अनुसार एकादशी का व्रत रखने और विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करने लोगों की सभी मनोकामना पूरी होती हैं। ऐसे ही पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ति होती है। इस व्रत को रखने से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा बनी रहती है। तो आइए जानते हैं पुत्रदा एकादशी का शुभ मुहूर्त और कथा के बारे में....
पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त 2022
श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत तिथि | 08 अगस्त, दिन सोमवार |
एकादशी तिथि प्रारंभ | 07 अगस्त 2022 , दिन रविवार रात 11:50 बजे से |
एकादशी तिथि समापन | 08 अगस्त 2022, दिन सोमवार को रात 09:00 बजे |
पुत्रदा एकादशी व्रत पारण टाइम | 09 अगस्त 2022, दिन मंगलवार को प्रात:काल 05:46 से पप्रात:काल 08:26 तक होगा। |
व्रत कथा
पौराणिक काल में भद्रावतीपुरी नामक नगर में एक राजा राज करता था। उसका नाम सुकेतुमान था। राजा सुकेतुमान के कोई संतान नहीं थी और वह संतान न होने के कारण अपनी रानी समेत बहुत दुखी रहते थे। राजा और रानी को यह चिंता थी कि उनकी मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार कौन करेगा? तथा उनके पितरों को श्राद्ध कौन देगा और उनकी आत्मा को शांति कैसे मिलेगी? एक दिन राजा जंगल में शिकार खेलने के लिए गया और राजा को वहां अचानक बहुत तेज की प्यास लगी।
राजा ने वहां पास ही में एक तालाब देखकर पानी पीया। तालाब के पास ही राजा सुकेतुमान को एक आश्रम दिखाई दिया। पानी पीकर राजा ऋषियों से मिलने आश्रम में चला गया। उस दौरान ऋषि-मुनि पूजा-पाठ में व्यस्त थे। राजा ने उत्सुकतावश ऋषियों से पूजा-पाठ के उस विशेष विधि को जानना चाहा। ऋषियों ने राजा को बताया कि आज पुत्रदा एकादशी है। इस दिन जो भी व्यक्ति व्रत और पूजा-पाठ करता है उसे संतान की प्राप्ति होती है।
राजा ने मन ही मन पुत्रदा एकादशी व्रत रखने का प्रण किया। वापस लौटकर उन्होंने रानी के साथ मिलकर पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। पूरे विधि-विधान से विष्णु के बाल गोपाल स्वरूप की पूजा-पाठ किया। राजा सुकेतुमान ने द्वादशी को पारण किया। पुत्रदा एकादशी व्रत के प्रभाव से कुछ महीनों बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।)
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