कहानी एक ऐसे ऋषि की जिन्होंने कभी किसी स्त्री को नहीं देखा था और जब देखा...

- भारतीय इतिहास बहुत गौरवशाली है।
- कुछ ऐतिहासिक तथ्य किसी भी इंसान को अचंभित करने के लिए काफी हैं।
- ऋषि श्रृंगी और उनके पिता के जीवन की दास्तां
भारतीय इतिहास कितना गौरवशाली है, ये इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां के शब्दों की सीमा ही नहीं है, ना केवल शास्त्र बल्कि पुराणों में उल्लेख विभिन्न ऐतिहासिक तथ्य किसी भी इंसान को अचंभित करने के लिए काफी हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही पौराणिक कथा के बारे में बताएंगे। जोकि आपको हैरान कर देगी।
ये भी पढ़ें : Garud Puran : जानें, मृत्यु के बाद आत्मा के साथ क्या होता है
ऋषि श्रृंगी एक ऐसी जिंदगी की दास्तां है, जिसने अपने समस्त जीवन में किसी स्त्री को नहीं देखा और जब देखा तो वह पल पुराणों के ऐतिहासिक पन्नों पर दर्ज हो गया। हिन्दू पुराणों में महान ऋषि कश्यप के पौत्र विभाण्डक ऋषि के पुत्र ऋषि श्रृंगी के जन्म की कहानी भी हैरान करने वाली है। ये तब की बात है कि जब विभाण्डक ऋषि अपने तप में लीन थे। घोर तपस्या और बढ़ती हुई शक्ति को देखकर स्वर्ग में देवता परेशान हो गए। जिसके कारण उन्होंने निश्चिय किया कि वे विभाण्डक ऋषि के तप को भंग करेंगे।
ये भी पढ़ें : रविवार के दिन भगवान सूर्यदेव इस आरती को करने से होते हैं प्रसन्न, देते हैं धन-धान्य का आशीर्वाद
विभाण्डक ऋषि के तप को भंग करने के लिए देवताओं ने स्वर्ग से उर्वशी नाम की अप्सरा को उनके पास भेजा। उर्वशी अत्यंत खूबसूरत थी और उसके आकर्षण से विभाण्डक ऋषि का तप भंग हो गया। तथा दोनों ने सहवास किया जिसके फलस्वरूप एक पुत्र का जन्म हुआ। उनके पुत्र का नाम था ऋषि श्रृंगी। पुत्र को जन्म देते ही अप्सरा उर्वशी का कार्य वहां समाप्त हो गया और वह वहां से स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गई।
छल और कपट की भावना से भरपूर विभाण्डक ऋषि ने क्रोध में आकर पूरे संसार की स्त्रियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। इसके बाद वो अपने पुत्र को लेकर जंगल की तरफ चले गए। अपने साथ हुए इस छल के कारण उन्होंने प्रण किया कि वो जीवन भर अपने पुत्र पर किसी स्त्री की छाया तक नहीं पड़ने देंगे और यही कारण था कि ऋषि श्रृंगी ने जीवनभर किसी स्त्री को नहीं देखा था।
कहते हैं कि क्रोधित होकर विभाण्डक ऋषि जिस जंगल की ओर गए उसके पास एक नगर था। विभाण्डक ऋषि का क्रोध उस जंगल में जाने के बाद और बढ़ने लगा। जिसका असर उस नगर पर पढ़ने लगा और वहां अकाल से मातम छाने लगा। जिससे परेशान होकर नगर के राजा रोमपद ने अपने मंत्रियों और ऋषि-मुनियों को बुलाया। इस दुविधा का समाधान ऋषियों ने ऋषि श्रृंगी का विवाह बताया। उनके अनुसार, यदि ऋषि श्रृंगी विवाह कर लें तो विभाण्डक ऋषि को मजबूर होकर अपना क्रोध त्यागना पड़ेगा और सारी समस्या का हल निकल जाएगा।
राजा रोमपद ने ऋषियों के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। और जंगल की तरफ खुबसूरत दासियों को भेजा। राजा रोमपद को लगा कि ऋषि श्रृंगी पहली बार में ही दासियों को देखकर मोहित हो जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि जिसने आज तक किसी स्त्री को देखा नहीं था वो कैसे समझते कि नारी जाति पुरूष जाति से भिन्न होती है और वहीं दासियों को ऋषि श्रृंगी को अपनी ओर आकर्षित करने में काफी समय लगा। लेकिन एक दिन दासियों ने ऋषि श्रृंगी को अपनी ओर मोहित करने में कुछ सफलता हासिल की। अब ऋषि श्रृंगी उन दासियों के साथ उस नगर जाने के लिए तैयार हो गए। जब विभाण्डक ऋषि को इस बारे में पता चला तो वो अपने पुत्र को ढूंढते हुए राजा के महल जा पहुंचे। जहां उनका क्रोध शांत करने के लिए राजा ने अपनी पुत्री का विवाह ऋषि श्रृंगी से कर दिया।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS