जानिए मां दुर्गा के नौ स्वरुपों की कथा

मां दुर्गा ने समस्त लोकों के कल्याण के लिए तथा असुरों का विनाश करने के लिए कई बार अपने अलग-अलग रुप धारण किए थे। भगवती देवी आज भी समस्त लोगों में अपने भक्तों का कल्याण करती हैं। इसी कारण संसार में देवी दुर्गा के कई रुपों की पूजा की जाती है। विशेषकर नवरात्रि में नौ दिन तक मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा की जाती है। तो आइए जानते हैं कि मां दुर्गा के किन-किन रुपों की अधिकतर पूजा की जाती है।
1. शैलपुत्री
देवी दुर्गा को माता पार्वती का ही एक रुप माना जाता है। इसलिए नवरात्रि में पहले दिन मां दुर्गा के जिस स्वरुप की पूजा की जाती है मां दुर्गा के उस स्वरुप का नाम शैलपुत्री है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रुप में जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा था। देवी शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में ब्रह्मा जी के मानस पुत्र प्रजापति दक्ष की पुत्री थी। तब इनका नाम सती था। और इनका विवाह भगवान शंकर जी के साथ ही हुआ था। परन्तु देवी सती ने अपने उस जन्म में अपने पिता के यज्ञ के हवन कुंड में अपना दाह करके अपना शरीर त्याग दिया था। देवी सती का दूसरा जन्म शैलपुत्री के रुप में हुआ था। और इनका विवाह भी भगवान भोलेनाथ से ही हुआ था। देवी शैलपुत्री को हम लोग लोग देवी हेमवती और देवी पार्वती के नाम से भी पुकारते हैं। वृषभ यानि बैल पर सवार देवी शैलपुत्री के दाये हाथ में त्रिशूल तथा बायें हाथ में कमल सुशोभित रहता है। इनकी उपासना करने से मनुष्य को अन्य शक्तियां प्राप्त होती हैं।
2. ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की पूजा की जाती है। यहां ब्रह्म शब्द का अर्थ है तपस्या। ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी। यानि तप का आचरण करने वाली। देवी सती से जब शैलपुत्री के रुप में दूसरा जन्म लिया था तब सभी मनुष्यों की तरह उन्हें भी पिछले जन्म की कोई भी घटना याद नहीं थी। उधर भगवान शंकर अपनी पहली पत्नी सती के शोक में डूबे हुए थे। तब देवताओं ने भगवान शिव को शोक से उबारने के लिए शैलपुत्री को उनकी पत्नी बनाने का विचार किया। और देवर्षि नारद को शैलपुत्री के पास भेजा। देवर्षि नारद ने देवी शैलपुत्री को जब भगवान शंकर को अपना पति बनाने के लिए प्रेरित किया तो देवी शैलपुत्री ने भगवान शिव को अपने पति के रुप में प्राप्त करने के लिए हजारों वर्ष तक कठोर तपस्या की थी। और इस तपस्या के प्रभाव से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवी शैलपुत्री की वह तपस्या बड़ी ही अभूतपूर्व थी। ऐसी कठोर तपस्या कभी कोई नहीं कर पाया था। इस कारण ही उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। देवी दुर्गा के इस ब्रह्मचारिणी स्वरुप के दाहिने हाथ में जप की माला तथा बायें हाथ में कमंडल रहता है। इनकी उपासना करने वाले मनुष्य कठिन से कठिन संघर्षों में भी अपने पथ से विचलित नहीं होते हैं।
3.चंद्रघंटा
नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा की तीसरी शक्ति चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के इस स्वरुप के मस्तक में घंटे के आकार का अर्द्ध चंद्र है। इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। सिंह पर सवार देवी चंद्रघंटा के 10 हाथ हैं। और उनके सभी हाथों में अस्त्र और शस्त्र शोभायमान है। देवी चंद्रघंटा की मुद्रा देखने में ऐसी प्रतीत होती है जैसे कि वो युद्ध करने के लिए तैयार हैं। नवरात्रि की दुर्गा उपासना में तीसरे दिन की पूजा का बहुत ही ज्यादा महत्व है। क्योंकि देवी चंद्रघंटा शीघ्र फल देने वाली हैं। इनकी भक्ति करने वालों को जल्द ही अलौकिक शक्तियों के दर्शन होने लगते हैं।
4. कूष्माण्डा
माता दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। नवरात्रों में चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन आज्ञाचक्र में स्थित होता है। अतः पवित्र मन से पूजा−उपासना के कार्य में लगना चाहिए। मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधिव्याधियों से विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है। अतः अपनी लौकिक, परलौकिक उन्नति चाहने वालों को मां कूष्माण्डा की उपासना करनी चाहिए।
5. स्कन्दमाता
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। ये भगवान स्कन्द 'कुमार कार्तिकेय' के नाम से भी जानी जाती हैं। इन्हीं भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। इनकी उपासना नवरात्रि पूजा के पांचवें दिन की जाती है। इनका वर्ण शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। नवरात्रि पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित रहने वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाएं एवं चित्र वृत्तियों का लोप हो जाता है।
6. कात्यायनी
मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके घर उनकी पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है। भक्त को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। इनके भक्त भी अलौकिक तेज से युक्त होता है।
7. कालरात्रि
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं। इसलिए इन्हें शुभड्करी भी कहा जाता है। दुर्गा पूजा के सप्तम दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं। जिससे इनके भक्त भयमुक्त हो जाते हैं।
8. महागौरी
मां दुर्गा के आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है। दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कलुष धुल जाते हैं।
9. सिद्धिदात्री
मां दुर्गा की नौवीं शक्ति को सिद्धिदात्री कहते हैं। जैसा कि नाम से प्रकट है ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
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