Sunday Special: दंतेश्वरी मंदिर में इस खंभे को छूने से मातारानी होती हैं प्रसन्न, कर देती हैं सभी मुराद पूरी

Sunday Special: छत्तीसगढ़ के दंतेबाड़ा में देवी का एक अनौखा मंदिर है जिसे दंतेश्वरी देवी मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण 14 वीं सदी में चालुक्य राजवंश के राजाओं ने दक्षिण भारतीय वास्तुकला से करवाया था। माता दंतेश्वरी का ये मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध और पवित्र है। यह मंदिर मां शक्ति का अवतार माना जाता है। जानकार लोगों का कहना है कि इस मंदिर में कई दिव्य शक्तियां मौजूद हैं। वहीं मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के दांत गिरे थे। इसी वजह से इस स्थान का नाम दंतेबाड़ा पड़ा और माता का नाम दंतेश्वरी देवी पड़ा। देश का पावन और शक्तिपीठ होने के कारण यह मंदिर एक करामाती खंभे के लिए भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर के द्वार के ठीक सामने एक गरुड़ स्तंभ है। जिसे श्रृद्धालु पीठ की ओर से बाहों में भरने की कोशिश करते हैं।
ये भी पढ़ें: Jyotish Shastra: हाथ की इस अंगुली में पहन लें चांदी की अंगुठी, फिर देखें चमत्कार
वहीं ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस खंभे को दोनों हाथों से छू लेता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इसी विश्वास के साथ माता के दर् को यहां आने वाले भक्त इस खंभे को छूने की कोशिश करते हैं।
वहीं बसंत पंचमी के मौके पर इस स्तंभ के पास तांबे से निर्मित त्रिशूल की स्थापना की जाती है। इस मंदिर में इस रस्म के बाद ऐतिहासिक फाल्गुन मेले की शुरुआत होती है। वहीं ये परंपरा पिछले छह सौ साल से चली आ रही है। कहा जाता है कि राजा पुरुषोत्तम देव आंध्र प्रदेश के बांगल से ये त्रिशूल लेकर आये थे। जोकि देवी भगवती का प्रतीक माना जाता है।
वहीं मान्यताओं और परंपरा के अनुसार देवी दन्तेश्वरी बस्तर राज्य के आदिवासियों की कुलदेवी हैं। इसे काकतीय राजाओं की कुलदेवी भी माना जाता है। कहा जाता है कि यह 108 शक्तिपीठों में से एक है।
कहते हैं कि यह वह स्थान हैं जहां पर देवी सती का दांत गिरा था इसीलिए इस स्थान का नाम दंतेश्वरी है। इसे देश का 52वां शक्तिपीठ माना जाता है।
दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़ के जगदलपुर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित शंखिनी और धनकिनी नदियों (डंकिनी और शंखिनी) के संगम पर स्थित है। यह मंदिर अपनी समृद्ध वास्तुकला और मूर्तिकला और समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा के कारण जाना जाता है।
दंतेश्वरी देवी मंदिर यहां के लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र के रूप में है। यहां नलयुग से लेकर छिंदक नाग वंशीय काल की दर्जनों मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं।
दंतेबाड़ा में स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर के आसपास के स्थान को तांत्रिकों की स्थली कहा जाता है। यहां स्थित नदी के किनारे अष्ट भैरव का आवास माना जाता है, इसलिए यह स्थल तांत्रिकों के लिए महत्वपूर्ण स्थल है। मान्यता अनुसार यहां आज भी बहुत से तांत्रिक पहाड़ी गुफाओं में तंत्र विद्या की साधना कर रहे हैं।
वहीं मान्यता है कि यहां पर पहले नर बलि होती थीं, लेकिन कालांतर में 1883 के बाद यहां नर बलि की यह प्रथा बंद कर दी गई।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS