Sunday Special : भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात स्वरूप है गिरिराज गोवर्धन, जानें इसकी ये विशेष बातें

- हिन्दू धर्म में प्रकृति को परमात्मा से जोड़कर देखा जाता है।
- हिन्दू धर्म के लोग प्रकृति की भी ईश्वर के रुप में ही उपासना करते हैं।
Sunday Special : हिन्दू धर्म में प्रकृति को परमात्मा से जोड़कर देखा जाता है। इसलिए इस धर्म में लोग प्रकृति की भी उपासना करते हैं। हिन्दू धर्म के मानने वाले लोग नदी, पहाड़ और पेड़- पौधों की भी ईश्वर के रुप में पूजा करते हैं। वहीं हिन्दू धर्म में परिक्रमा हमारी सनातन पूजा पद्धति का अहम हिस्सा हैं। हिन्दू धर्म में परिक्रमा जिसे 'प्रदक्षिणा' भी कहा जाता है, वह मंदिर, देव प्रतिमा, पवित्र स्थान, नदियों और पर्वतों की भी की जाती रही है। हिन्दू धर्म में गोवर्धन पर्वत, जिन्हें गिरिराज जी भी कहा जाता है, उनकी परिक्रमा बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। वहीं शास्त्रों में गोवर्धन पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात स्वरूप माना गया है।
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पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापर युग में एक बार ब्रज के लोगों को अपने मद में चूर देवराज इन्द्र के कोप से बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को सात दिन तक अपनी कनिष्ठा अंगुली पर धारण किया था। तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा और आराधना और साथ ही गिरिराज जी की परिक्रमा करने की रीति शुरू हो गई। गोवर्धन को भगवान कृष्ण का ही साक्षात स्वरूप मानकर उनकी परिक्रमा की जाती है। गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा बहुत फलदायी मानी जाती है।
गिरिराज गोवर्धन उत्तरप्रदेश के मथुरा शहर से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गिरिराज गोवर्धन पर्वत 21 किलोमीटर के परिक्षेत्र में फैला हुआ है। गिरिराज पर्वत की परिक्रमा सात कोस अर्थात 21 किलोमीटर की होती है।
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यहां से शुरु होती है गिरिराज जी की परिक्रमा
गिरिराज जी की परिक्रमा वैसे तो सात कोस में कहीं से भी शुरु की जा सकती है किंतु पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गिरिराज जी की परिक्रमा शुरु करने के लिए तीन मुख्य स्थान हैं।
- गोवर्धन दानघाटी
- जतीपुरा
- मानसी-गंगा।
इन तीनों मुख्य स्थानों में से किसी भी स्थान से गिरिराज जी की परिक्रमा शुरु करके परिक्रमा वापस उसी स्थान पर पूर्ण की जाती है। वैसे तो सभी वैष्णव लोग 'जतीपुरा से ही अपनी परिक्रमा का श्रीगणेश करते हैं और बाकी लोग गोवर्धन दानघाटी व 'मानसी गंगा' से अपनी परिक्रमा शुरु करते हैं। 'जतीपुरा -मुखारविंद' को श्रीनाथजी के विग्रह की मान्यता प्राप्त है।
गिरिराज जी की परिक्रमा के मार्ग में अनेक मंदिर, गांव, मठ और पवित्र कुंड आदि पड़ते हैं। जिनमें आन्यौर, राधाकुंड, कुसुम सरोवर, गोवर्धन दानघाटी, जतीपुरा, मानसी-गंगा, गौड़ीय मठ और 'पूंछरी का लौठा' आदि शामिल हैं। वहीं गिरिराज जी की परिक्रमा वर्ष पर्यन्त निर्बाध रुप चलती रहती है, लेकिन पूर्णिमा, अधिकमास, कार्तिक मास, श्रावण मास जैसे विशेष पर्व आदि पर गोवर्धन परिक्रमा करने वाले लोगों की संख्या में बहुत अधिक इजाफा हो जाता है।
दंडवत परिक्रमा
वैसे तो गिरिराज जी की परिक्रमा पैदल की जाती है, लेकिन कुछ लोग इस परिक्रमा को दंडवत भी करते हैं। इस दंडवत परिक्रमा को 'दंडौति परिक्रमा' भी कहा जाता है। वृद्ध लोग और बच्चे लोग रिक्शे आदि से भी गिरिराज जी की परिक्रमा करते हैं।
शापित हैं गिरिराज जी
पौराणिक कथा के अनुसार, गिरिराज जी शापित हैं। यानी गोवर्धन पर्वत को प्रतिदिन तिल-तिल घटने का श्राप मिला हुआ है।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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