Sunday Special: जगन्नाथ रथयात्रा एक मुस्लिम की मज़ार के आगे क्यों रूक जाती है, जानें इसकी कहानी

Sunday Special: पुरी में हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है और इस रथ यात्रा में देशभर से लाखों भक्त रथयात्रा में शामिल होते हैं। जगन्नाथ जी की रथयात्रा पुरी में स्थित जगन्नाथ जी के मंदिर से शुरु होती है और इस यात्रा में भगवान रथ पर सवार होकर पूरे शहर का भ्रमण करते हैं और अंत में अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर पहुंते हैं। वहीं रथयात्रा के दौरान हर साल भगवान जगन्नाथ जी का रथ एक मजार पर रूकता है।
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भगवान अपने भक्तों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करते हैं। फिर चाहें वो हिन्दू हो, मुस्लिम हो अथवा कोई और व्यक्ति हो। जो उन्हें सच्चे मन से पूजता है, उसकी मनोकामना जरुर पूरी होती है। ऐसी ही एक कहानी है भगवान जगन्नाथ और उनके प्रिय भक्त सालबेग की।
बात उस समय की है जब हिन्दुस्तान पर मुगलों का शासन था। सालबेग नाम का एक युवक मुगल सेना में काम करता था। इनकी माता हिन्दू थी और पिता एक मुस्लिम थे। पिता के मुस्लिम होने के कारण सालबेग भी मुस्लिम धर्म को मानता था।
कहा जाता है कि, एक बार किसी युद्ध के दौरान सालबेग के माथे पर चोट लग गई थी और उस चोट का उसके माथे पर बड़ा घाव हो गया था। सभी वैद्य और नीम हकीमों को दिखाने के बावजूद भी सालबेग के माथे का घाव ठीक नहीं हो रहा था। जिसके चलते सालबेग को मुगल सेना से निकाल दिया गया था।
सेना से निकाले जाने के बाद सालबेग बहुत ही दुखी और परेशान रहने लगा, लेकिन उस परेशानी से निजात पाने के लिए सालबेग की मां ने उसे भगवान जगन्नाथ की भक्ति करने की सलाह दी। उसके बाद सालबेग दिन रात भगवान जगन्नाथ जी की सेवा और भक्ति करने लगा। धीरे-धीरे भगवान जगन्नाथ की भक्ति और पूजा से सालबेग को मानसिक शांति और जीने की शक्ति मिलने लगी।
इसके कुछ समय बाद एक दिन सालबेन ने एक सपना देखा कि, भगवान जगन्नाथ स्वयं उससे मिलने के लिए आए हैं और उसके घाव पर लगाने के लिए कोई दिव्य औषधि लाए हैं। वहीं सालबेग सपने में ही उस औषधि को अपने माथे पर लगाते हैं, लेकिन सालबेग की जब नींद खुली तो उसे पता चला कि, वह तो सपना देख रहा है और तुरन्त ही माथे के घाव को छूकर देखता है और हैरान रह जाता है। सचमुच में माथे का घाव ठीक हो चुका है।
फिर उसी वक्त सालबेग भगवान जगन्नाथ जी की जयजयकार करता हुआ भगवान जगन्नाथ जी की तरफ दौड़ता है। तो मुस्लिम होने के नाते उसे मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं मिलती। इसके बाद सालबेग मंदिर के बाहर ही बैठकर जगन्नाथ जी की भक्ति आराधना करने लगता है और वह लोगों से कहता है कि, अगर मेरी भक्ति में सच्चाई होगी तो भगवान मेरे पास जरुर आएंगे और इस तरह कुछ समय पश्चात सालबेग की मृत्यु हो गई और उसकी मृत्यु के बाद उसकी मजार जगन्नाथ मंदिर और गुड़िचा मंदिर के रास्ते में बनायी गई थी।
सालबेग की मृत्यु के कुछ समय बाद जब जगन्नाथ जी की रथयात्रा निकाली गई तो सालबेग की मजार के पास आकर रथ अपने आप रूक गया। सभी ने रथ को खींचने का प्रयत्न किया, लेकिन रथ एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा। ऐसे में सभी भक्त परेशान हो गए, किसी को समझ नहीं आ रहा था कि, आखिर करें तो क्या करें।
तभी किसी ने सालबेग की भक्ति और कथा के बारे में जानकारी दी। तब राजा ने पुरोहित से मंत्रणा कर सभी से भक्त सालबेग का जयकारा लगाने के लिए बोला। सालबेग के नाम का जयकारा लगाने के बाद जब रथ खींचा गया तो रथ अपने आप चलने लगा। तभी से हर वर्ष मौसी के घर जाने से पहले जगन्नाथ जी का रथ सालबेग की मजार पर कुछ देर के लिए रोका जाता है।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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