Sunday Special : जानें, कर्णवास के कल्याणी देवी मंदिर का इतिहास, जहां हर रोज 50 किलो सोना दान करते थे दानवीर कर्ण

- कर्णवास एक महाभारतकालीन ऐतिहासिक स्थान है।
- कर्णवास का दानवीर कर्ण के नाम पर किया गया था।
Sunday Special : दिल्ली से लगभग 120 किलोमीटर दूर स्थित कर्णवास एक ऐतिहासिक स्थान है, जिसका नामकरण महाभारत के पात्रों में से एक दानवीर कर्ण के नाम पर किया गया था। वर्तमान में यह स्थान बुलंदशहर जनपद में सुरसरि गंगा नदी के तट पर स्थित है। वहीं ऐसी मान्यता है कि यहां महाभारत कालीन कई मंदिर आज भी देखने को मिलते हैं। वहीं अंगराज कर्ण अपनी उदारता के लिए काफी प्रसिद्ध थे, इसलिए उन्हें दानवीर कर्ण के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत काल में अंगराज कर्ण यहां प्रतिदिन 50 किलोग्राम सोना दान किया करते थे।
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महारानी कुंती को ऋषि दुर्वासा से एक वरदान मिला था कि वह किसी भी देवी-देवता से एक बच्चे का वरदान मांग सकती हैं। अविवाहित कुंती ने ऋषि दुर्वासा के वरदान की शक्ति को परखने के लिए उत्सुकता में भगवान सूर्य को बुलाया और उन्होंने भगवान सूर्य से एक पुत्र की मांग की। भगवान् सूर्य के द्वारा उन्हें पुत्र रूप में कर्ण कवच और एक जोड़ी बालियों में सौंप दिया गया।
कुंवारी मां होने के डर से कुंती द्वारा कर्ण को टोकरी में रखकर नदी में बहा दिया गया। यह टोकरी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा को मिली, उन्होंने उसे अपने पुत्र के रूप में स्वीकार कर लिया।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, यह वहीं स्थान है जहां से देवराज इन्द्र ने छल करके दानवीर कर्ण से उनके कवच और कुंडल दान में ले लिए थे। और कर्ण के डर से पांडवों को सुरक्षित कर दिया था।
दानवीर कर्ण एक अजेय योद्धा थे। और उन्होंने अर्जुन वध की प्रतिज्ञा कर रखी थी, किन्तु भगवान श्रीकृष्ण के कुशल मागदर्शन के बाद भी अर्जुन अंगराज कर्ण से भयभीत रहता था।
कर्णवास में कर्ण का एक मंदिर आज भी भी स्थित है। यहां पर परम पवित्र गंगा का विस्तार है और साथ ही दानवीर कर्ण की आराध्या मां कल्याणी देवी का मंदिर भी है। आस-पास के इलाकों में इस गांव की प्रसिद्धि का कारण ये दो मंदिर हैं। ये मंदिर प्राचीन और महाभारत काल के हैं और यहां स्थित मां कल्याणी की मूर्तियां लगभग 3000 वर्ष पुरानी हैं। मां कल्याणी मंदिर को लगभग 400 वर्ष पूर्व डोडिया खेडा के कबीर शाह द्वारा बनवाया गया था।
अब से लगभग 70 वर्ष पहले हाथरस के सेठ बागला कर्णवास में मां कल्याणी के दर्शन के लिए आये थे, वे निःसंतान थे अतः उन्होंने मां से विनती की कि यदि मेरे घर में संतान हो जाए तो मैं यहां मां का अच्छा सा मंदिर बनवाऊंगा, वहां से जाने के एक वर्ष के अन्दर उनके घर में बेटे का जन्म हुआ इसी उपलक्ष्य में उन्होंने कल्याणी देवी के वर्तमान मंदिर का निर्माण करवाया था।
ऐसा कहा जाता है कि नवीन मंदिर के निर्माण हेतु नींव की खुदाई करते समय काफी गहराई से तीन प्राचीन मूर्तियां भी मिली थी इन मूर्तियों को वहां के ब्राह्मणों द्वारा तत्कालीन पुरातत्व संग्रहालय में जांच हेतु भेजा गया, जहां इन्हें तीन हजार वर्ष प्राचीन प्रमाणित किया गया था। वैसे तो यहां वर्षभर श्रद्धालु आते रहते हैं, किंतु यहां विशेषरूप से आश्विन, चैत्र की नवरात्रियो एवं आषाढ़ शुक्ल पक्ष में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रहती है।
साथ ही तपस्थली भूमि एवं पौराणिक तीर्थ होने के नाते कर्णवास में प्राचीन काल से ही अनेक मंदिर एवं पूजा स्थल रहे हैं। कई तो काल के प्रभाव के कारण नष्ट हो चुकें हैं। कर्णवास के अन्य प्रमूख मंदिर निम्न हैं: ललिता मां का मंदिर, चामुंडा मंदिर, कर्णशिला मंदिर, भैरो मंदिर, भूतेश्वर महादेव मंदिर, बड़े हनुमानजी का मंदिर, नर्मदेश्वर महादेव मंदिर, पंचायती मंदिर, शिवालय, मल्लाहों का मंदिर, शिव मंदिर, महादेव मंदिर और आदि।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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