Sunday special : भगवान श्रीकृष्ण के विवाह का साक्षी अवंतिका देवी मंदिर, यहां आज भी मौजूद है रुक्मिणी कुंड और हजारों साल पुराने वृक्ष, एक क्लिक में जानें यहां की विशेषताएं

Sunday special : भगवान श्रीकृष्ण के विवाह का साक्षी अवंतिका देवी मंदिर, यहां आज भी मौजूद है रुक्मिणी कुंड और हजारों साल पुराने वृक्ष, एक क्लिक में जानें यहां की विशेषताएं
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Sunday special : बुलंदशहर जनपद (Bulandshahr district) का अहार क्षेत्र और अवंतिका देवी मंदिर (Avantika Devi Mandir) आज भी देवी रुक्मिणी और भगवान श्रीकृष्ण (Goddess Rukmini and Lord Shri Krishna) के विवाह (marraige) का साक्षी है।

Sunday special : बुलंदशहर जनपद (Bulandshahr district) का अहार क्षेत्र और अवंतिका देवी मंदिर (Avantika Devi Mandir) आज भी देवी रुक्मिणी और भगवान श्रीकृष्ण (Goddess Rukmini and Lord Shri Krishna) के विवाह (marraige) का साक्षी है। यहां मौजूद वृक्ष हजारों साल पुराने और अनेक प्रकार के हैं जिनमें खिन्नी, कदम, इंद्र जौ के वृक्ष प्रमुख हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इन्हीं वृक्षों की मेवा और फूलों से भगवान श्रीकृष्ण की बरात और उनका स्वागत किया गया था।

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मान्यताओं के अनुसार अहार क्षेत्र द्वापर युग में महाराज भीष्मक की राजधानी कुंदनपुर के नाम से विख्यात था। वहीं राजा भीष्मक के सात पुत्र और एक पुत्री रुक्मिणी थीं। रुक्मिणी और उनके पिता राजा भीष्मक चाहते थे कि उनका विवाह भगवान श्रीकृष्ण के साथ हो, परन्तु रुक्मिणी के भाई और युवराज रुकम यह नहीं चाहते थे। परन्तु जब इस बात का पता भगवान श्रीकृष्ण को चला तो उन्होंने रुक्मिणी का हरण कर लिया। जिस समय रुक्मिणी का हरण श्रीकृष्ण ने किया उस समय वह गंगा किनारे मां अवंतिका देवी मंदिर में पूजा के लिए आयीं हुई थीं। जब रुक्मिणी के हरण का ज्ञान उनके भाई रुकम को हुआ तो रुकम ने श्रीकृष्ण का रास्ता रोक लिया। इस पर श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम और रुकम के बीच भयानक युद्ध हुआ। ऐसी मान्यता है कि, बलराम जी ने महाराजा भीष्मक की राजधानी कुंदनपुर को उलट -पलट कर दिया। वर्तमान समय में भी अहार क्षेत्र में मिट्टी की खुदाई करने पर मकानों की दीवार निकलती हैं। वहीं इस घटना के बाद श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह संस्कार हुआ। महाराज भीष्मक ने श्रीकृष्ण का स्वागत खिन्नी, कदम, इंद्र जौ वृक्ष के फूलों और फलों से किया था। हजारों साल पुराने ये वृक्ष आज भी यहां अपनी महक बिखेर रहे हैं।


ऐसी मान्यता है कि अहार क्षेत्र के करीब दो दर्जन से अधिक गांव के नाम आज भी श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह की रस्मों पर रखे गए हैं। मान्यता है कि यहां के गांव मोहरसा में श्रीकृष्ण का मोहर बांधा गया था, इसलिए इस गांव का नाम मोहरसा पड़ा। दराबर गांव में श्रीकृष्ण जी का दरबार लगा था, इसलिए इस गांव का नाम दराबर पड़ा। वहीं बामनपुर गांव में श्रीकृष्ण की बरात ने ब्रह्मभोज किया तो इस गांव का नाम बामनपुर पड़ गया। गांव सिहालीनगर में श्रीकृष्ण का मोहर मोर के पंखों से बनाया गया था। गांव सिरोरा में श्रीकृष्ण का मोहर सिराया गया था। गांव खंदोई में ब्रह्मभोज के लिए मिट्टी के बर्तन बने थे। यहां पर आज भी मिट्टी के बर्तनों का बहुत बड़ा मेला लगता है। गांव मोहरसा स्थित ऐतिहासिक चामुंडा देवी मंदिर पर वर्ष में दो चैत्र और आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को विशाल मेला लगता है, जहां द्वापर युग की याद में श्रद्धालु मिट्टी के बर्तनों की खरीदारी करने आते हैं।


यहां निर्जन स्थान पर विराजमान हैं मां भवानी

अवंतिका देवी मंदिर जनपद बुलंदशहर की अनुपशहर तहसील में जहांगीराबाद कस्बे से लगभग 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। पौराणिक स्थल होते हुए भी यह स्थान निर्जन है। यहां ना कोई गांव बसा हुआ है और ना ही कोई बाजार आदि ही है। इस स्थान पर आने वाले लोगों के ठहरने के लिए धर्मशालाएं आदि बनी हुई हैं। वहीं यहां पर रहने वाले साधु लोगों के आश्रम भी हैं।


कभी नहीं डूबता रुक्मिणी कुंड

मान्यता है कि अहार क्षेत्र में गंगा किनारे स्थित अवंतिका देवी मंदिर के पास गंगा के तट पर रुक्मिणी कुंड आज भी मौजूद है। पौराणिक मान्यता है कि रुक्मिणी जी प्रतिदिन इस कुंड में स्नान के लिए आती थीं। इस कुंड का निर्माण उनके पिता और यहां के राजा भीषमक ने कराया था। वहीं प्रतिदिन रुक्मिणी जी यहां स्नान करने के बाद अवंतिका देवी मंदिर में मां भवानी की पूजा किया करती थीं। ऐसी मान्यता है कि इस रुक्मिणी कुंड में स्नान करने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं। वहीं ऐसा मानना है कि गंगा नदी में कितनी भी बाढ़ आ जाए, लेकिन यह रुक्मिणी कुंड कभी नहीं डूबता।

साक्षात प्रकट हुई थीं मां

धरती पर जितने भी शक्तिपीठ और सिद्धपीठ हैं वे सब देवी सती के अंग हैं। वहीं इस सिद्धपीठ का देवी सती के अंगों से कोई संबंध नहीं है। ऐसी मान्यता है कि यहां स्वयं मां भगवती अवंतिका देवी (अम्बिका देवी) प्रकट हुई थीं। यहां माता को सिन्दूर और देशी घी अर्पित किया जाता है।

सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं मां अम्बिका देवी

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अवंतिका देवी मंदिर में भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ऐसी मान्यता है कि रुक्मिणी ने इसी मंदिर में देवी मां से श्रीकृष्ण को पति रुप में मांगा था और उन्हीं के प्रताप से श्रीकृष्ण रुक्मिणी जी को पति रुप में प्राप्त हुए थे।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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