Sunday Special: जानें, पुरा महादेव मंदिर का सच, जहां भगवान परशुराम की माता ने की थी शिव पूजा, रावण से भी है नाता

Sunday Special: जानें, पुरा महादेव मंदिर का सच, जहां भगवान परशुराम की माता ने की थी शिव पूजा, रावण से भी है नाता
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  • हमारे देश की धार्मिक विरासतों में शिव मंदिरों की अहम भूमिका है।
  • भारत के विभिन्न प्रांतों में भगवान शिव को समर्पित अनेक प्रसिद्ध व भव्य मंदिर हैं।
  • पुरा महादेव मंदिर मेरठ से 40 किलोमीटर दूर बागपत के पास हिडंन नदी के समीप स्थित है।

Sunday Special : हमारे देश की धार्मिक विरासतों में शिव मंदिरों की अहम भूमिका है। भारत के विभिन्न प्रांतों में भगवान शिव को समर्पित अनेक प्रसिद्ध व भव्य मंदिर हैं। आज बात करते हैं भगवान शिव के एक प्रसिद्ध मंदिर की जोकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित है और जिसे पुरा महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर को एक प्राचीन सिद्ध पीठ माना जाता है। भले ही अन्य क्षेत्रों में ये मंदिर प्रसिद्धि ना प्राप्त कर पाया हो लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोगों की इस मंदिर में ज्यादा आस्था है। ये मंदिर मेरठ सिटी से लगभग 40 किलोमीटर दूर हिंडन नदी के तट पर बागपत के पास स्थित है।

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प्राचीन इतिहास के अनुसार, रेणुका महर्षि जमदग्नि की पत्नी पौराणिक काल में प्रतिदिन नए मिट्टी के घड़े में पुरा महादेव के अभिषेक के लिए इस नदी से जल लेकर शिवलिंग पर अभिषेक करती थीं।


इस प्राचीन मंदिर का दृष्य हमारी धार्मिक भावना को उजागर करता है। कहा जाता है कि यहां स्थित पवित्र शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है। यहां स्थित शिवलिंग हजारों साल पुराना है। मान्यता है कि यह शिवलिंग भगवान परशुराम द्वारा स्थापित किया गया था।


भगवान परशुराम ने अपने जीवनकाल में किए गए पापों से मुक्ति के लिए इस स्थान पर तपस्या की थी।


ये लिंग अपने आप में एक अजुबा है। ये धरती में गहराई तक समाया हुआ है। इस शिवलिंग की गहराई का आज तक किसी को कुछ भी ज्ञान नहीं है। इस शिवलिंग की गहराई को मापने के लिए अनेक बार प्रयास भी किए गए हैं, किन्तु ये सारे प्रयास आज तक असफल ही रहे हैं।


कहा जाता है कि 17वीं शताब्दी में मुगल बादशाह औरंगजेब ने इस मंदिर को ध्वस्त करने का असफल प्रयास किया था। रस्सियां बांधकर हाथी द्वारा इस शिवलिंग को बाहर निकालने का भी प्रयास किया गया, लेकिन इसके बाद ये शिवलिंग जड़ से नहीं निकाला जा सकता।


हालांकि अब अगर आप इस शिवलिंग को देखेंगे तो ये थोड़ा सा झुका हुआ है। ऐसा औरंगजेब के शिवलिंग और मंदिर को ध्वस्त करने के असफल प्रयासों के कारण है। शिवलिंग पर चोट के भी निशान हैं। ये निशान हमलावरों द्वारा भारी हथौड़ें के प्रहार के कारण हैं।


मंदिर के पुजारी आशुतोष शर्मा ने बताया कि, औरंगजेब ने इस शिवलिंग को जंजीरों से बांधवाकर हाथी से से खिंचवाया था जिसके कारण शिवलिंग पर निशान बन गए। वहीं मंदिर के पुजारी आशुतोष ने बताया कि ये पवित्र शिवलिंग वर्ष में तीन बार अपना रंग बदलता है। वहीं इस प्रकार रंग बदलने के रहस्य को भी आज तक कोई वैज्ञानिक नहीं समझ पाया है। जबकि इस बारे में कई बार शोध किए गए हैं।


वहीं मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा भी स्थापित हैं। अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए सावन के महीने में और फाल्गुन के महीने में यहां लाखों लोग आते हैं। वहीं लाखों कावड़ियां गंगा से जल लेकर इस शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं।


पुरा महादेव मंदिर से कुछ ही दूरी पर भगवान परशुराम का भव्य मंदिर स्थित है। जिसका निर्माण हिन्डन नदी के निकट ही किया गया है। इस स्थान पर भगवान परशुराम की प्राचीन प्रतिमा भी है। मंदिर के पुजारी श्रीकौशल मुनि ने बताया कि, यहां नियमित रुप से भगवान परशुराम की पूजा की जाती है। यहां पर उनके पिता महर्षि जमदग्नि और उनकी माता रेणुका की प्रतिमा भी स्थापित हैं।


कहा जाता है कि एक समय पुरा महादेव मंदिर में रावण ने भी भगवान शिव की आराधना की थी। वहीं इस स्थान पर पुराने घड़ों के अवशेष आज भी प्राप्त हो जाते हैं। क्योंकि यहां नियमित रुप से माता रेणुका नए घड़े में जल भर महादेव का जलाभिषेक करती थीं और पुराने घड़े को तोड़कर नष्ट कर देतीं थीं। वहीं हजारों साल के उपरांत भी घड़ों के अवशेष आज भी देखने को मिलते हैं।


पुजारी कौशल मुनि ने बताया कि, घड़ों के इन टूटे टुकड़ों में औषधीय गुण पाए जाते हैं। मेरठ के निकट स्थित पुरा महादेव मंदिर अनगित लोगों की श्रद्धा और विश्वास का केंद्र है। इसके दर्शन करना वास्तव में सौभाग्य का विषय है।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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