Sunday Special: मां गढ़कालिका माता शक्तिपीठ में होती है तंत्र विद्या की प्राप्ति, जानें इसकी ये सच्चाई

Sunday Special: मां गढ़कालिका माता शक्तिपीठ में होती है तंत्र विद्या की प्राप्ति, जानें इसकी ये सच्चाई
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Sunday Special: उज्जैन में कालीघाट स्थित कालिका माता का यह प्राचीन मंदिर गढ़ कालिका के नाम से विख्यात है। गढ़ कालिका का यह मंदिर अपने आप में कई रोचक और प्रसिद्ध यादें संजोए हुए है।गढ़ कालिका मंदिर में देश के सभी स्थानों से लोग आते हैं और यहां हर समय लोगों की भींड़ देखने को मिलती है। गढ़ कालिका मंदिर में तंत्र साधना के लिए भी तांत्रिक लोग मौजूद रहते हैं और तंत्र साधना और तंत्र विद्या की प्राप्ति करते हैं।

Sunday Special: उज्जैन में कालीघाट स्थित कालिका माता का यह प्राचीन मंदिर गढ़ कालिका के नाम से विख्यात है। गढ़ कालिका का यह मंदिर अपने आप में कई रोचक और प्रसिद्ध यादें संजोए हुए है।गढ़ कालिका मंदिर में देश के सभी स्थानों से लोग आते हैं और यहां हर समय लोगों की भींड़ देखने को मिलती है। गढ़ कालिका मंदिर में तंत्र साधना के लिए भी तांत्रिक लोग मौजूद रहते हैं और तंत्र साधना और तंत्र विद्या की प्राप्ति करते हैं।


शास्त्रों के अनुसार, सभी देवियों में मां कालिका को तंत्र साधना और तांत्रिक क्रियाओं के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। तांत्रिकों की देवी कालिका के इस गढ़ कालिका मंदिर को बहुत ही चमत्कारिक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, गढ़ कालिका मंदिर की स्थापना महाभारतकाल के दौरान हुई थी, परन्तु ऐसा कहा जाता है कि, यहां स्थापित प्रतिमा सतयुग काल की है। कहा जाता है कि, सतगुग से ही तांत्रिक लोग गढ़ कालिका मंदिर में तंत्र साधना सिद्ध किया करते हैं।


वहीं कहा जाता है कि, गढ़ कालिका मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन ने करवाया था और सम्राट हर्षवर्धन के बाद ग्वालियर के महाराजा ने गढ़ कालिका का पुनर्निर्माण कराया था। गढ़ कालिका मंदिर में प्रवेश द्वार पर सिंह की प्रतिमा स्थापित है और वहीं गढ़ कालिका के आसपास बहुत सी धर्मशालाएं है, इन धर्मशालाओं में ही लोग पुरातन समय में तांत्रिक आकर मां कालिका की पूजा-अर्चना करते थे। धर्मशाला के बीच देवी मंदिर स्थित हैं। शक्ति-संगम-तंत्र में 'अवन्ति संज्ञके देश कालिका तंत्र विष्ठति' कालिका का उल्लेख मिलता है।


पुराणों के अनुसार, उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के होंठ गिरे थे। वहीं लिंग पुराण की मानें तो भगवान श्रीराम जब लकांपति रावण का वध कर आयोध्या वापस लौट रहे थे तो रात्रि में रुद्र सागर तट पर रुके थे।


माना जाता है कि, उधर रात्रि में भगवती कालिका अपने भोजन के तलाश में निकली थी तभी उनकी नजर भक्तशिरोमणि और वीर बजरंगवली हनुमान पर पड़ी। तथा ज्यों ही कालिका मां ने भक्तराज हनुमान जी को पकड़ने का प्रयत्न किया तो हनुमान जी ने अचानक से विशाल रूप धारण कर लिया। यह देखकर मां कालिका देवी वहां से डर का भागने लगीं थी और वहां से भागने के दौरान ही उनका अंश वहीं गिर गया और बाद में उसी स्थान पर गढ़ कालिका मंदिर की स्थापना हुई।


गढ़कालिका मंदिर में महाकवि कालिदास ने भी मां कालिका की उपासना की थी। महाकवि कालिदास के बारे में कहा जाता है कि जब से कालिदास जी गढ़ कालिका मंदिर में मां काली की उपासना करने लगे तभी से उनका व्यक्तित्व निखरने लगा और वे बहुत प्रतिभाशाली हो गए।


महाकवि कालिदास रचित 'श्यामला दंडक' महाकाली स्तोत्र एक सुंदर रचना है। ऐसा कहा जाता है कि महाकवि कालिदास जी के मुख से सबसे पहले यही स्तोत्र प्रकट हुआ था। यहां प्रत्येक वर्ष कालिदास समारोह के आयोजन के पूर्व मां कालिका की आराधना की जाती है।


वैसे तो गढ़ कालिका का मंदिर शक्तिपीठ में शामिल नहीं है, परन्तु उज्जैन में मां हरसिद्धि शक्तिपीठ होने के कारण इस क्षेत्र का महत्व बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi।com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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