Sunday Special : जनआस्था का केन्द्र हैं राजिम, यहां की थी माता सीता ने मां भगवती और कुलेश्वर महादेव की पूजा

Sunday Special : छत्तीसगढ के राजिम नामक स्थान को विश्व प्रसिद्ध पौराणिक धर्मस्थली के रुप में जाना जाता है। महानदी के किनारे बसे इस स्थान की सुन्दरता आज भी लोगों का मन मोह लेती है। राजिम महानदी के किनारे प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर के पास ही सीताबाड़ी स्थित हैं। यहीं भगवान शिव का कुलेश्वर महादेव नामक प्रसिद्ध मंदिर है।
इस मंदिर के चारों ओर महानदी का जल प्रपात हमेशा ही बहता रहता है। वहीं राजिम को लोक कला संस्कृति और धर्म नगरी का गढ़ कहा जाता है। राजिम में ही पैरी, सोंढृर और महानदी आकर आपस में मिलती है। इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का प्रयागराज भी कहा जाता है।
यहां स्थित इस त्रिवेणी के संगम पर कुलेश्वर महादेव का पौराणिक मंदिर स्थित है। कुलेश्वर महादेव के बारे में कहा जाता है कि, अपने वनवास काल के दौरान माता सीता ने अपने कुलदेवता भगवान शिव का पूजन किया था। इसी कारण से इस मंदिर का नाम कुलेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुआ।
राजिम में प्रत्येक वर्ष मेला लगता है। जोकि स्थानीय लोगों की आस्था का बहुत बड़ा केन्द्र माना जाता है। इस दौरान यहां अनेक प्रकार के सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यहां कुलेश्वर मंदिर के नजदीक ही प्रसिद्ध लोमेश ऋषि का आश्रम स्थित है। छत्तीसगढ़ के राजिम क्षेत्र में पंचकोशी यात्रा करने की भी परंपरा पौराणिक काल से ही चली आ रही है।
पंचकोशी परिक्रमा में कुलेश्वर महादेव राजिम, पठेश्वर महादेव पटेवा, चम्पेश्वर महादेव चंपारण, फणिकेश्वर महादेव फिगेश्वर और कोपेश्वर महादेव कोपरा नामक पवित्र स्थान पर भगवान आशुतोष के प्रसिद्ध मंदिर स्थित हैं। वहीं राजिम पुरातत्व और प्राचीन सभ्यता के लिए भी प्रसिद्ध है। राजिम माघी पुन्नी मेला महोत्सव छत्तीसगढ़ की लोक कला और संस्कृति का प्राचीन संगम स्थल है।
कुलेश्वर महादेव छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में राजिम नामक स्थान पर और छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 48 किलोमीटर दूर महानदी के तट पर स्थित है। यहां पर पैरी, सोंढूर और महानदी आपस में आकर मिल जाती हैं और महानदी का रुप ले लेती हैं।
इस प्राचीन धर्मस्थल का नाम कमल क्षेत्र और पद्मपुर बताया जाता है। इस स्थान का छत्तीसगढ का प्रयागराज कहा जाता है। इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना माता सीता ने अपने हाथों से की थी। तथा श्रीराम-लक्ष्मण और जानकी माता ने मिलकर देवों के देव महादेव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की थी।
इस त्रिवेणी संगम मेंबरसात के दिनों में कितना भी जल प्रवाह बहता रहे मगर भक्त लोग बाबा की पूजा करना कभी बंद करते।
वहीं वर्तमान में यहां जो मंदिर स्थित है उस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में हुआ था। यह मंदिर तीनों नदियों के संगम के बीच में स्थित है।
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