Sunday Special: देवी के इस चमत्कारी मंदिर में सेना के जवान करते हैं पूजा, जानें क्या है इसकी वजह

Sunday Special: पाक सीमा से सटे व जैसलमेर से 120 किलोमीटर दूर तनोट माता का मंदिर (Tanot Mata Mandir) देश भर के श्रद्धालुओं की भी श्रद्धा का भी केन्द्र है। देश भर से श्रद्धालु नत मस्तक होने पहुंचते हैं। तनोट को भाटी राजपूत राव तनुजी ने बसाया था और यहां पर ताना माता का मंदिर बनवाया था, जो वर्तमान में तनोटराय मातेश्वरी के नाम से जाना जाता है। मंदिर की पूजा-अर्चना भारतीय सेना ( BSF) के जवान ही करते हैं। वहीं नवरात्रि (Navratri) के मौके पर तनोट मंदिर में आस्था का ज्वार उमड़ता है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शनार्थ पहुंचते है और मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं। हर दिन दोपहर 12 बजे व शाम 7 बजे आरती की जाती है।
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विख्यात माता तनोट के मंदिर में होने वाली तीनों आरतियों में समूचा मंदिर परिसर श्रृद्धालुओं से भर जाता है और मंदिर आरती के बाद मातारानी के जयकारों से गूंज जाता है। वहीं तनोट राय मंदिर आमजन की आस्था का केंद्र भी है। भारत-पाक के 1965 और 1971 के युद्ध के बाद तनोट राय मंदिर की विशेष ख्याति बढ़ी है। तनोट माता को रूमाल वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। माता तनोट के प्रति प्रगाढ़ आस्था रखने वाले भक्त मंदिर में रूमाल बांधकर मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर भक्त माता का आभार प्रकट करने वापस दर्शनार्थ तनोट मंदिर जाते हैं। तथा रूमाल खोलते हैं।
वहीं यह मान्यता भी कई दशकों से प्रचलन में हैं और इस मान्यता का आमजन, सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी, जवान, प्रशासनिक अधिकारी और कर्मचारी सभी लोग करते हैं। पाक सीमा से सटे जैसलमेर में दुश्मन ने बम बरसाकर लोगों को दहशत में डालने और नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन युद्ध में मंदिर के पास करीब तीन हजार बम बरसाए। जिनमें से लगभग साढ़े चार सौ गोले मंदिर परिसर में गिरे। परन्तु मंदिर परिसर में गिरे बम फटे ही नहीं और ये बम आज भी मंदिर परिसर में मौजूद हैं।
पाक सीमा से सटे जैसलमेर से 120 किलोमीटर दूर तनोट क्षेत्र में स्थित माता के मंदिर में 1965 और 1971 के युद्धों में पाकिस्तान की ओर से गिराए गए बमों में से एक भी बम यहां नहीं फूटा। वहीं तनोट क्षेत्र सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां तैनान सेना और स्थानीय लोगों की मानें तो मुगल बादशाह अकबर ने हिन्दू देवताओं के चमत्कारिक कारनामों से प्रभावित होकर अनेक मंदिरों में दर्शन करने और छत्र आदि चढ़ाने के किस्से भले ही प्रमाणित ना हों, परन्तु इस बात के तो आज भी कई गवाह मौजूद हैं कि 1965 के युद्ध के दौरान इस प्राचीन सिद्ध मंदिर की देवी के चमत्कारों से अभिभूत पाकिस्तान के सैन्य अधिकारी भी उसके दर्शन के लिए लालायित हो उठे थे।
चमत्कारिक माना जाने वाला ये तनोट मंदिर करीबन 1200 साल पुराना है। बताया जाता है कि 1965 के युद्ध के दौरान माता के चमत्कारों के आगे नतमस्तक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाज खान ने भारत सरकार ने इस देवी के दर्शन करने के लिए अनुरोध किया था और भारत सरकार से अनुमति मिलने पर ब्रिगेडियर खान ने ना केवल माता की प्रतिमा के दर्शन किए बल्कि मंदिर में चांदी का एक सुन्दर छत्र चढ़ाया था। ब्रिगेडियर खान का चढ़ाया गया छत्र आज भी इस घटना का गवाह बना हुआ है।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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