सूर्य अर्घ्य विधि, सूर्य अर्घ्य मंत्र, आप भी जानें

सूर्य अर्घ्य विधि, सूर्य अर्घ्य मंत्र, आप भी जानें
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पंच देवताओं में सूर्य भगवान का पांचवां स्थान है। और भगवान सूर्य मुख्य देवता भी हैं। इसके साथ ही सूर्य भगवान को नवग्रह में सबसे पहला स्थान दिया गया है। वेदों के अनुसार सूर्य भगवान को हमारी आत्मा की संज्ञा दी गई है। और इसके साथ ही सूर्य भगवान को आरोग्य के देवता के रुप में भी स्थान मिला हुआ है। इसलिए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने से आरोग्य की कभी भी कोई समस्या नहीं होती है।

पंच देवताओं में सूर्य भगवान का पांचवां स्थान है। और भगवान सूर्य मुख्य देवता भी हैं। इसके साथ ही सूर्य भगवान को नवग्रह में सबसे पहला स्थान दिया गया है। वेदों के अनुसार सूर्य भगवान को हमारी आत्मा की संज्ञा दी गई है। और इसके साथ ही सूर्य भगवान को आरोग्य के देवता के रुप में भी स्थान मिला हुआ है। इसलिए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने से आरोग्य की कभी भी कोई समस्या नहीं होती है।

वेदों ने सूर्य को हमारी आत्मा कहा है, वहीं ज्योतिष शास्त्र में भगवान सूर्य को मनुष्य का पिता कहा गया है। हमें सूर्य की ऊर्जा से आत्म विश्वास प्राप्त होता है। भगवान सूर्य की उपासना से सभी नवग्रह शांत रहते हैं। और आंखों की कमजोरी दूर होती है। सूर्य नारायण की कृपा से दरिद्र व्यक्ति धनवान होता है। व्यक्ति की अकाल मृत्यु नहीं होती है। सर्व, आदि, व्याधि, उपाधि समस्याओं का नाश होता है। व्यक्ति को सरकारी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। और व्यक्ति राजनीति में अपनी अलग ही छवि बना लेता है। सभी प्रकार के विवादों में विजय प्राप्त होती है। और इसके साथ ही हमारे कई जन्मों के पापों का विनाश होता है। इन्हीं कारणों से सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। और आपको भी प्रात:काल सूर्य भगवान को अर्घ्य देना चाहिए।

किस समय दें भगवान सूर्य को अर्घ्य

पुराणों के अनुसार सूर्योदय के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य देना सबसे उत्तम माना गया है। सूर्योदय हो जाने के बाद यदि आप अर्घ्य देते है तो उसे प्रायश्चित का अर्घ्य कहा जाता है। सूर्योदय हो जाने के पश्चात आप दो घंटे तक भगवान सूर्य नारायण को अर्घ्य दे सकते हैं उसमें कोई दोष नहीं लगता है। सूर्योदय हो जाने के बाद यदि आप अर्घ्य देते हो तो आपको एक और अर्घ्य देना है जिसे हम प्रायश्चित का अर्घ्य भी कहते हैं।

अर्घ्य कैसे देना चाहिए

अर्घ्य देते समय अपना मुंह पूर्व दिशा की ओर रखना है। थोड़ा सा सिर झुकाकर मंत्र बोलते-बोलते भगवान सूर्य नारायण को अर्घ्य देना चाहिए। और ध्यान रहे अर्घ्य किसी पवित्र जगह पर ही देना चाहिए। या फिर किसी ताम्र पात्र में अर्घ्य दें। अर्घ्य देने के बाद उस जल से अपनी दोनों आंखें और कानों को स्पर्श करें। उसके बाद फिर उस जल में से थोड़ा सा जल आपको ग्रहण करना चाहिए। यानि जल आपको पीना है।

अर्घ्य देने की विधि

नारद पुराण के अनुसार जल, दूध, कुशा, थोड़ासा घी, शहद, लाल चंदन, लाल कनेर के पुष्प और गुड़ ये आठों दृव्य मिलाकर एक ताम्र कवच में उसे रखना है। और उसे मिश्रित करना है। और पूर्व दिशा की ओर अपना मुख करके अर्घ्य देना है। यह अर्घ्य देने का सबसे उत्तम विधि मानी जाती है।

सूर्य मंत्र

ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घ्यं नमोस्तुते।

अगर नारद पुराण के अनुसार आठ सामग्री को इक्ट्ठा करने में आप असमर्थ हैं तो नारद मुनि ने एक संक्षिप्त विधि भी अर्घ्य देने की बताई है जोकि बहुत ही सरल है। इस विधि के अनुसार आपको सिर्फ जल में चंदन या कुमकुम, पुष्प, अक्षत डालना है।

मंत्र

ऊं अर्घ्यं गृहाण देवेश गन्धपुष्पाक्षतैः सह। करुणां कुरु मे देव गृहाणार्घ्यं नमोस्तुते।

इस मंत्र के द्वारा आपको भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना है। नारद पुराण के अनुसार यह सूर्य को जल अर्पित करने की बहुत सरल और संक्षिप्त विधि है। भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पण कर देने के बाद या आपने ताम्र पात्र में अर्घ्य दिया है और उस ताम्र पात्र में जो जल इक्ट्ठा हुआ है। उसमें से आपको थोड़ासा जल अपने हाथ पर लेना है और आपको फिर स्वयं जल ग्रहण का मंत्र बोलना चाहिए।

मंत्र

अकाल-मृत्यु-हरणं सर्व-व्याधि-विनाशनम सूर्य-पादोदकं-तीर्थं जठरे धारयामि अहम्।

इसके बाद फिर उस जल को आपको पीना है। इसका मतलब यह है कि जो भी मनुष्य भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद उस जल को ग्रहण करके अगर घर के बाहर जाता है। तो उसकी कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती है। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है। तो इस प्रकार से अर्घ्य भगवान सूर्य नारायण को देना चाहिए।

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