Surya Grahan December 2020 : सूर्य ग्रहण 2020 में कब है, जानिए सूतक काल का समय,ग्रहण की धार्मिक मान्यता और सूर्य ग्रहण की कथा

Surya Grahan December 2020 : सूर्य ग्रहण 2020 में कब है, जानिए सूतक काल का समय,ग्रहण की धार्मिक मान्यता और सूर्य ग्रहण की कथा
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Surya Grahan December 2020 : शास्त्रों के अनुसार सूर्यग्रहण को बहुत ही अशुभ माना जाता है। जिस समय सूर्यग्रहण होता है। उस समय पृथ्वीं पर पूरी तरह से अंधकार छा जाता है। इतना ही नहीं सूर्यग्रहण के कारण पृथ्वीं पर रहने वाले सभी जीवों को भी कष्ट भोगना पड़ता है तो चलिए जानते हैं सूर्य ग्रहण 2020 में कब है (Surya Grahan 2020 Mein Kab Hai), सूतक का समय काल (Sutak Kaal Timing), सूर्य ग्रहण की धार्मिक मान्यता (Surya Grahan Ki Dharmik Manyata) और सूर्य ग्रहण की कथा (Surya Grahan Story)

Surya Grahan December 2020 : सूर्य को जगत की ऊर्जा माना जाता है और जब सूर्य को ग्रहण लगता है उस समय पृथ्वीं पर कई तरह की अशुभ घटनाएं घटने लगती है। इस साल के अंत में यानी दिसंबर 2020 को भी सूर्य ग्रहण लगने वाला है। यह सूर्य ग्रहण पूर्ण सूर्य ग्रहण ( Solar Eclipse) होगा। लेकिन यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। लेकिन इस सूर्य ग्रहण अशुभ प्रभाव पूरी पृथ्वीं पर ही पड़ेंगे। इसलिए आपको दिसंबर माह में पड़ने वाले इस सूर्य ग्रहण (Surya Grahan) की पूर्ण जानकारी अवश्य ही प्राप्त कर लेनी चाहिए।

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सूर्य ग्रहण 2020 तिथि (Surya Grahan 2020 Tithi)

14 दिसंबर 2020

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सूर्य ग्रहण 2020 सूतक काल का समय (Surya Grahan 2020 Sutak Kaal Timing)

सूतक काल प्रारंभ समय - लागू नहीं

सूतक काल समाप्ति समय- लागू नहीं

सूर्य ग्रहण की धार्मिक मान्यताएं (Surya Grahan Ki Dharmik Manyata)

सूर्यग्रहण की धार्मिक मान्यताओं की बात करें तो सूर्यग्रहण के दिन राहु और केतु सूर्य भगवान को अपना ग्रास बना लेते हैं। जिसकी वजह से पूरी पृथ्वीं अंधकारमय हो जाती है। इस समय में सूर्य देव अत्याधिक पीड़ा में रहते है। जिसके लिए धरती पर जप,तप और हवन आदि किए जाते हैं। जब सूर्य देव को ग्रहण लगता है उस समय पृथ्वीं पर तो अंधेरा छा ही जाता है साथ ही उस समय में प्राकृतिक आपदाएं, सत्ता परिवर्तन और साथ ही राजा और प्रजा के बीच में तनाव में भी देखने को मिलता है। इसलिए सूर्यग्रहण को बहुत ही ज्यादा अशुभ माना जाता है।

सूर्य ग्रहण की कथा (Surya Grahan Story)

विष्णु पुराण के अनुसार जिस समय समुद्र मंथन हुआ था। उस समय देवता और असुरों के बीच अमृत को पाने के लिए झगड़ा हुआ था। इस समस्या को सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था। जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था। उस दिन मोहिनी एकादशी थी। जिसके बाद भगवान विष्णु ने देवाताओं और असुरों को अलग- अलग पंक्तियों में बैठा दिया।

लेकिन उनमें से एक असुर देवता का रूप धारण करके देवाताओं की पंक्ति में बैठ गया और अमृत पान कर लिया। देवों की पंक्ति में बैठे सूर्य और चंद्र ने उस असुर को पहचान लिया और भगवान विष्णु को इसके बारे में बता दिया। जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उस असुर का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन अमृत पान करने के कारण उसकी मृत्यु होना असंभव था। जिसके कारण उस असुर का सिर और धड़ तो अलग हो गया।

लेकिन वह मरा नहीं। शास्त्रों के अनुसार सिर वाले भाग को राहु और धड़ वाले भाग को केतु कहा जाता है। इसी वजह से सूर्य और चंद्र को राहु केतु अपना दुश्मन मानते हैं और जिसके कारण वह सूर्य को अपना ग्रास बना लेते हैं। इसलिए हर साल सूर्य ग्रहण अवश्य होता है।

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