उमा महेश्वर व्रत 2020 शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि, व्रत नियम, आप भी जानें

हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्र माह में आने वाली पूर्णिमा को भाद्रपद पूर्णिमा कहते हैं। भाद्रपद पूर्णिमा तिथि का हिन्दू पंचांग में बहुत महत्व बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के सत्यनारायण स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही नारद पुराण के अनुसार इस दिन उमा-महेश्वर व्रत भी रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने उमा-महेश्वर व्रत रखा था। यह पूर्णिमा इस लिए भी खास महत्व रखती है क्योंकि इसी दिन से पितृ पक्ष यानि श्राद्ध पक्ष प्रारंभ होता है। और अश्विन मास की अमावस्या तिथि पर समाप्त होते हैं। यानि इन 16 दिनों को श्राद्ध पक्ष कहा जाता है। और यह पूर्णिमा भगवान सत्यनारायण व्रत कथा के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन उमा-महेश्वर व्रत भी रखा जाता है। तो आइए आप भी जानें उमा-महेश्वर व्रत की पूजा विधि, व्रत का महत्व, शुभ मुहूर्त और व्रत के नियम क्या हैं।
भविष्य पुराण के अनुसार उमा-महेश्वर व्रत मार्गशीश मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। और नारद पुराण के अनुसार उमा-महेश्वर व्रत भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है। उमा-महेश्वर व्रत का स्त्रियों के लिए विशेष महत्व होता है। जो महिला उमा-महेश्वर व्रत पूरे विधि-विधान से करती है वह एक कल्प तक भगवान शिव के पास निवास करती है। और इसके बाद अच्छे कुल में मनुष्य के रूप में जन्म लेती है। जीवन के अंत तक पति के साथ सभी सुखों का भोग करती है। और उसके बाद वह फिर से शिव लोक को प्राप्त होती है।
उमा-महेश्वर व्रत करने से घर में सुख, समृद्धि आती है। और ऐसे लोगों को धन और वैभव की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान शिव के अर्धनारिश्वर स्वरूप की पूजा की जाती है।
उमा-महेश्वर व्रत 2020
उमा-महेश्वर व्रत वर्ष 2020 में भाद्रपद पूर्णिमा के दिन 02 सितंबर 2020, दिन बुधवार को है।
उमा-महेश्वर व्रत की पूजा विधि, महत्व और नियम
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन प्रात: सभी नित्य क्रियाओं से निवृत होने के बाद व्रती को गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। अथवा आप अपने घर में स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। इस व्रत में प्रात:काल और सांयकाल दोनों समय माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है। और प्रात:काल माता पार्वती और भगवान शिव को जल से स्नान कराया जाता है। इसके बाद भगवान को बेलपत्र और पुष्प अर्पित किए जाते हैं। और भगवान के निमित्त एक शुद्ध घी का दीया जलाएं। धूप, अगरबत्ती जलाएं। माता पार्वती को कुमकुम से तिलक करें। तथा भगवान को मिष्ठान का भोग लगाएं। और इसके बाद शिव चालीसा का पाठ करें। संध्याकाल के समय फिर इसी प्रकार विधि-विधान से भगवान का पूजन करें। और रात्रि के समय भगवान के सामने एक शुद्ध घी का दीया जलाएं। और रात्रि में जागरण करें। शिव पुराण का पाठ व श्रवण करें। सांयकाल की पूजा के बाद गऊमाता के पंचगव्य का सेवन करें। और संध्याकाल की पूजा के बाद भगवान को शुद्ध घी से निर्मित भोजन का भोग लगाएं। और भगवान के भोजन में नमक का प्रयोग ना करें। और हो सके तो ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन कराएं। और ब्राह्मणों को दक्षिणा दें। अगर आप ब्राह्मणों को भोजन नहीं करा सकते हैं तो भोजन गऊमाता को खिला दें। प्रात: और सांय की पूजा के दौरान आपको भगवान के मंत्र का 108 बार यानि एक माला जाप करना चाहिए।
मंत्र
ऊं उमा-महेश्वराय नम:
इस प्रकार यह व्रत 15 वर्ष तक करना चाहिए। और 15 वर्ष पूरे हो जाने पर आपको इस व्रत का उद्धापन करना चाहिए। उद्धापन में भी विधि-विधान से भगवान शिव और माता उमा की पूजा, आरती और हवन आदि करके ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए। इस व्रत के दौरान आप दिन में फलाहार कर सकते हैं। और अन्न का भोजन आप केवल एक समय ही ग्रहण कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें इस व्रत के भोजन में किसी भी प्रकार का नमक ना डालें। केवल सात्विक भोजन ही ग्रहण करें। और पूजा करने के बाद उमा-महेश्वर व्रत की कथा को अवश्य सुनें।
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