Vinayak Chaturthi 2021: विनायकी चतुर्थी व्रत कथा, जानिए कैसे मिला भगवान गणेश को मांगलिक कार्यों में प्रथम पूजा का वरदान

Vinayak Chaturthi 2021: विनायकी चतुर्थी व्रत कथा, जानिए कैसे मिला भगवान गणेश को मांगलिक कार्यों में प्रथम पूजा का वरदान
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Vinayak Chaturthi 2021: भगवान गणेश का एक नाम विनायक भी है। और हर महीने आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन कई लोग व्रत रखकर भगवान गणेश का पूजन करते हैं। मान्यता है कि ये व्रत सभी प्रकार के मनोरथ पूर्ण करता है। अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी तिथि विनायक चतुर्थी तो पूर्णिमा तिथि के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। तो आइए जानते हैं विनायक चतुर्थी की व्रत कथा के बारे में।

Vinayak Chaturthi 2021: भगवान गणेश का एक नाम विनायक भी है। और हर महीने आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन कई लोग व्रत रखकर भगवान गणेश का पूजन करते हैं। मान्यता है कि ये व्रत सभी प्रकार के मनोरथ पूर्ण करता है। अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी तिथि विनायक चतुर्थी तो पूर्णिमा तिथि के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। तो आइए जानते हैं विनायक चतुर्थी की व्रत कथा के बारे में।

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विनायक चतुर्थी व्रत कथा (Vinayak Chaturthi vrat katha)

गणेश चतुर्थी के संबंध में एक कथा जग प्रसिद्ध है। कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती के मन में एक ख्याल आता है कि उनका कोई पुत्र नहीं है। ऐसे ही वो अपने मन से एक बालक की मूर्ति बनाकर उसमें जीव भरती हैं। इसके बाद वे कंदरा में स्थित कुंड में स्नान करने के लिए चली जाती हैं। परन्तु जाने से पहले माता अपने पुत्र को आदेश देती हैं कि किस भी परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति को कंदरा में प्रवेश नहीं करने देना। बालक अपनी माता के आदेश का पालन करने के लिए कंदरा के द्वार पर पहरा देने लगता है। और कुछ समय बीत जाने के पश्चात भगवान शिव वहां पहुंचते हैं। भगवान शिव जैसे ही कंदरा के अंदर जाने लगते हैं तो वह बालक उन्हें रोक देता है। भगवान शिव बालक को समझाने का प्रयास करते हैं। लेकिन वह उनकी एक नहीं सुनता है। जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव त्रिशूल से बालक की शीश धड़ से अलग कर देते हैं।

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इस अनिष्टकारी घटना का आभास जब माता पार्वती को हुआ तो वह स्नान करके कंदरा से बाहर आती हैं और देखती हैं कि उनका पुत्र धरती पर प्राण विहीन पड़ा है। और उसका शीश उसके धड़ से अलग कटा हुआ है। यह दृष्य देखकर माता क्रोधित होती हैं। जिसे देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं। तब भगवान शिव अपने गणों को आदेश देते हैं कि ऐसे बालक का सिर ले आओं जिसकी माता की पीठ उसके बालक की ओर हो।

शिवगण एक हथनी के बालक का शीश लेकर आते हैं। भगवान शिव गज के शीश को बालक के धड़ से जोड़कर उसे जीवित कर देते हैं। इसके बाद माता पार्वती शिव से कहती हैं कि यह शीश गज का है जिसके कारण सब मेरे पुत्र का उपहास करेंगे। तब भगवान शिव बालक को वरदान देते हैं कि आज से संसार इन्हें गणपति के नाम से जानेगा। इसके साथ ही सभी देव भी उन्हें वरदान देते हैं कि कोई भी मांगलिक कार्य करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करना अनिवार्य होगा। यदि ऐसा कोई नहीं करता है तो उसे उसके अनुष्ठान का फल नहीं मिलेगा।

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