Ahoi Ashtami 2019 : अहोई अष्टमी पर राधा कुंड में स्नान से बांझ भी बन जाती है मां, होती है संतान की प्राप्ति

Ahoi Ashtami 2019 : अहोई अष्टमी पर राधा कुंड में स्नान से बांझ भी बन जाती है मां, होती है संतान की प्राप्ति
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Ahoi Ashtami 2019 अहोई अष्टमी का पर्व इस साल 2019 में 21 अक्टूबर 2019 के दिन मनाया जाएगा, अहोई अष्टमी के दिन यदि कोई दंम्पत्ति निस्वार्थ भाव से राधा कुंड में स्नान करता है तो उसे संतान की प्राप्ति अवश्य होती है, तो आइए जानते हैं क्या है राधा कुंड की मान्यता और इसकी कथा

Ahoi Ashtami 2019 अहोई अष्टमी का व्रत (Ahoi Ashtami Vrat) मां अपनी संतान के लिए करती हैं। इस व्रत को करने से न केवल संतान की आयु लंबी होती है। बल्कि संतान को अपने जीवन की सभी परेशानियों से मुक्ति मिलती है। वहीं कुछ दम्पत्ति ऐसे भी होते हैं। जो अपने जीवन में इस सुख से वंचित रह जाते हैं। लेकिन मान्यताओं के अनुसार अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) के दिन अगर कोई दंपत्ति राधा कुंड में स्नान कर ले तो उसे संतान सुख की प्राप्ति अवश्य हो जाती है तो आइए जानते हैं क्या है राधा कुंड की मान्यता और इसकी कथा


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अहोई अष्टमी पर राधा कुंड में स्नान की मान्यता (Ahoi Ashtami Per Radha Kund Mai Snan Ki Manyata )

भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में गोवर्धन गिरधारी की परिक्रमा के मार्ग में एक चमत्कारी कुंड पड़ता है। जिसे राधा कुंड के नाम से जाना जाता है। इस कुंड के बारे में मान्यता है कि नि:संतान दंपत्ति कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि को यहां दंपत्ति एक साथ स्नान करते हैं तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती है।

अहोई अष्टमी का यह पर्व यहां पर प्राचीन काल से मनाया जाता है। इस दिन पति और पत्नि दोनों ही निर्जला व्रत रखते हैं और मध्य रात्रि में राधा कुंड में डूबकी लगाते हैं। तो ऐसा करने पर उस दंपत्ति के घर में बच्चे की किलकारियां जल्द ही गूंज उठती है।

इतना ही नहीं जिन दंपत्तियों की संतान की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। वह भी अहोई अष्टमी के दिन अपनी संतान के साथ यहां राधा रानी की शरण में यहां हाजरी लगाने आता है। माना जाता है कि यह प्रथा द्वापर युग से चली आ रही है।


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राधा कुंड की कथा ( Radha Kund Ki Katha)

इस प्रथा से जुड़ी एक कथा का पुराणों में भी वर्णन मिलता है। जो इस प्रकार है। जिस समय कंस ने भगवान श्री कृष्ण का वध करने के लिए अरिष्टासुर नामक दैत्य को भेजा था। उस समय अरिष्टासुर गाय के बछड़े का रूप लेकर श्री कृष्ण की गायों के बीच में शामिल हो गया और उन्हें मारने के लिए आया। भगवान श्री कृष्ण ने उस दैत्य को पहचना लिया।इसके बाद श्री कृष्ण ने उस दैत्य को पकड़ कर जमीन पर फैंक दिया और उसका वध कर दिया।

यह देखकर राधा जी ने श्री कृष्ण से कहा कि उन्हें गौ हत्या का पाप लग गया है। इस पाप से मुक्ति के लिए उन्हें सभी तीर्थों के दर्शन करने चाहिए। राधा जी की बात सुनकर श्री कृष्ण ने नारद जी से इस समस्या के समाधान के लिए उपाय मांगा। देवर्षि नारद ने उन्हें उपाय बताया कि सभी तीर्थों का आह्वाहन करके उन्हें जल रूप में बुलाएं और उन सभी तीर्थों के जल को एक साथ मिलाकर स्नान करें। जिससे उन्हें गौ हत्या के पाप से मुक्ति मिल जाएगी।

नारद जी के कहने पर श्री कृष्ण ने एक कुंड में सभी तीर्थों के जल को आमंत्रित किया और कुंड में स्नान करके पाप मुक्त हो गए। इस कुंड को कृष्ण कुंड कहा जाता है। जिसमें स्नान करके श्री कृष्ण गौ हत्या के पाप से मुक्त हुए थे। माना जाता है कि इस कुंड का निर्माण श्री कृष्ण ने अपनी बांसुरी से किया था। नारद जी के कहने पर ही श्री कृष्ण ने यह कुंड अपनी बांसुरी से खोदा था और सभी तीर्थों से उस कुंड में आने की प्रार्थना की जिसके बाद सभी तीर्थ उस कुंड में आ गए।

इसके बाद श्री कृष्ण के कुंड को देखकर राधा जी ने भी अपने कंगन से एक कुंड खोदा । जब श्री कृष्ण ने उस कुंड को देखा तो उसमें प्रतिदिन स्नान करने और उनके द्वारा बनाए गए कुंड से भी अधिक प्रसिद्ध होने का वरदान दिया। जिसके बाद यह कुंड राधा कुंड के नाम से प्रसिद्ध हो गया। पुराणों के अनुसार अहोई अष्टमी तिथि के दिन ही इन कुंडो का निर्माण हुआ था। जिसके कारण अहोई अष्टमी पर इस कुंड में स्नान करने का विशेष महत्व है। कृष्ण कुंड और राधा कुंड की अपनी- अपनी विशेषता है। कृष्ण कुंड का जल दूर से देखने पर काला और राधा कुंड का जल दूर से देखने पर सफेद दिखता है।

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