शिव तांडव स्तोत्र के लाभ, जानिए कैसे करें सावन में शिव की ये स्तुति

शिव तांडव स्तोत्र का लाभ रावन ने भगवान शिव को प्रसन्न करके लिया था। शिव तांडव स्तोत्र भोलेनाथ के परम भक्त विद्वान् रावण द्वारा रचित एक स्तोत्र है। यह स्तुति पंचचामर छंद में है। मान्यता है कि रावण जब कैलाश लेकर चलने लगे तो शिव जी ने अंगूठे से कैलाश को दबा दिया। परिणामस्वरूप कैलाश वहीं रह गया और रावण दब गया। फिर रावण ने शिव की स्तुति की तब जाकर शिव प्रसन्न हुए। रावण द्वारा की गई यह स्तुति ही शिव तांडव के रूप में जाना जाता है।
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शिव तांडव स्तोत्रम के लाभ
- शास्त्रों के अनुसार, सभी शिव की पूजा कर सकते हैं। कोई नियम नहीं है, किसी भी जाति या लिंग का कोई भी व्यक्ति कभी भी शिव तांडव स्तोत्रम का जाप कर सकता है।
- सिद्धि प्राप्ति के लिए शिव तांडव स्त्रोत एकमात्र योग्यता भक्ति है। शिव तांडव स्तोत्रम का पाठ करने के लाभ चमत्कारी हैं। यह आपको शक्ति, मानसिक शक्ति, सुख, समृद्धि और बहुत कुछ देता है।
- इन सभी से अधिक, आपको निश्चित रूप से शिव का आशीर्वाद प्राप्त होगा। यदि आप पूरी निष्ठा के साथ गीत को सुनते हैं, तो आप निश्चित रूप से शंभू की उपस्थिति को महसूस कर सकते हैं।
- शिव तांडव स्त्रोत सबसे ऊर्जावान और शक्तिशाली रचना है जिसे पूरी श्रृष्टि नमन करती है। शिव तांडव स्त्रोत का नियमित पाठ करने से स्वस्थ्य संबंधित रोग दूर होते हैं।
- शिव तांडव स्त्रोत का पाठ यदि रात्रि में किया जाए तो शत्रु पर प्राप्त होती है, लेकिन ध्यान रहे पाठ करने से पहले मन में किसी के प्रति बुरा विचार ना लाएं।
- शिव तांडव स्त्रोत को सुबह भजन के रूप में पाठ करने से आपको अपने पापों से मुक्ति मिलती है। शिव से अपनी गलतियों की क्षमा मांगते समय मन को कोमल रखें।
- शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करने से जन्म कुण्डली में पितृ दोष और कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है। याद रहे किसी ब्राह्मण की देख रेख में ही यह किया जाना चाहिए।
क्या है शिव तांडव?
- तांडव शब्द 'तंदुल' से बना हुआ है, जिसका अर्थ उछलना होता है।
- तांडव के दौरान ऊर्जा और शक्ति से उछलना होता है, ताकि मन-मस्तिष्क शक्तिशाली हो सके। तांडव नृत्य केवल पुरुषों को ही करने का विधान है।
- महिलाओं को तांडव करना मना होता है।
किस स्थिति में करें शिव तांडव होता है सर्वोत्तम
जब कभी स्वास्थ्य की समस्याओं का कोई तत्काल समाधान न निकल पा रहा तो ऐसे में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना बेहद लाभदायक होता है। व्यक्ति को जब कभी भी ऐसा लगे कि किसी प्रकार की तंत्र, मंत्र और शत्रु परेशान कर रहा है तो ऐसे में शिव तांडव का पाठ करना अत्यंत लाभदायक होता है।
आर्थिक समस्या से भी उबरने के लिए शिव तांडव का पाठ करना शुभ साबित होता है। जीवन में विशेष उपलब्धि पाने के लिए भी शिव तांडव स्तोत्र रामबाण का काम करता है। जब बुरे ग्रह के दोष से मुक्ति पाने के शिव तांडव का पाठ करना अत्यधिक लाभकारी होता है।
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कब और कैसे करें शिव तांडव स्तोत्र का पाठ
- प्रातः काल या प्रदोष काल में इसका पाठ करना सर्वोत्तम होता है।
- पहले शिव जी को प्रणाम करके उन्हें धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
- इसके बाद गाकर शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें।
- अगर नृत्य के साथ इसका पाठ करें तो सर्वोत्तम होगा।
- पाठ के बाद शिव जी का ध्यान करें और अपनी प्रार्थना करें।
शिव ने क्यों किया था तांडव और कैस रचा गया शिव तांडव स्त्रोत
रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। एक बार उसने भगवान शिव से लंका चलने के लिए कहा। लेकिन भगवान शिव ने रावण के साथ जाने के लिए माना कर दिया। तब रावण ने अंहकार वश कैलाश पर्वत को उठा लिया। जिससे भगवान शिव अत्याधिक क्रोधिक हो गए और रावण के अंहकार को तोड़ने के लिए भगवान शिव ने अपने पैर का अंगूठे से कैलाश पर्वत को दबा दिया। जिसकी वजह से रावण के हाथ का अंगूठा कैलाश पर्वत के नीचे दब गया।
रावण ने अपना अंगूठा निकालने का रावण ने बहुत प्रयास किया पर वह सफल न हो पाया। अंत में रावण ने भगवान शिव की प्रशंसा में शिव तांडव स्तोत्र को रच डाला और तेज - तेज भगवान शिव की स्तुति करने लगा। 17 श्लोकों के इस शिव तांडव स्तोत्र से भगवान शिव अत्याधिक प्रसन्न हो गए और उसे वरदान देकर कहा कि तुम्हारा यह स्तोत्र हमेशा अमर रहेगा और जो भी मेरी स्तुति मे इस स्तोत्र का पाठ करेगा। उसे मेरा आर्शीवाद प्राप्त होगा। इस स्तोत्र को रचने के कारण ही भगवान शिव ने लंका नरेश को रावण नाम से संबोधित किया।
Shiva Tandava Stotra (शिव तांडव स्तोत्र)
|सार्थशिवताण्डवस्तोत्रम् ||
||श्रीगणेशाय नमः ||
जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् | डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि | धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२||
धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे | कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३||
जटा भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे | मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४||
सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः | भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||५||
ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् | सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः ||६||
कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके | धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||७||
नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्- कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः | निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ||८||
प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा- वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् | स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||९||
अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् | स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ||१०||
जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस – द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् | धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||११||
स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- – गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः | तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||१२||
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् | विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||१३||
इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् | हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||१४||
पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे | तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||१५||
इति श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् सम्पूर्णम्
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