Bhishma Ashtami 2020 : भीष्म अष्टमी 2020 में कब है, जानिए तर्पण मुहूर्त, महत्व,तर्पण विधि, और कथा

Bhishma Ashtami 2020 : भीष्म अष्टमी 2020 में कब है, जानिए तर्पण  मुहूर्त,  महत्व,तर्पण विधि, और कथा
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Bhishma Ashtami 2020 : भीष्म अष्टमी के दिन पितामह भीष्म का तर्पण किया जाता है, पितामह भीष्म के तर्पण से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितरों का आर्शीवाद प्राप्त होता है तो चलिए जानते हैं भीष्म अष्टमी 2020 में कब है (Bhishma Ashtami 2020 Mai Kab Hai), भीष्म अष्टमी तर्पण मुहूर्त (Bhishma Ashtami Tarpan Muhurat), भीष्म अष्टमी महत्व (Bhishma Ashtami Importance),भीष्म अष्टमी तर्पण विधि (Bhishma Ashtami Tarpan Vidhi), और भीष्म अष्टमी की कथा (Bhishma Ashtami Ki Katha)

Bhishma Ashtami 2020 : भीष्म अष्टमी माघ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनाई जाती है। इस दिन गंगा पुत्र भीष्म (Ganga Putra Bhishma) की आत्मा की शांति के लिए तिल के जल से तर्पण किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन भीष्म पितामह का तर्पण (Bhishm Pitamha Tarpan) करने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है तो चलिए जानते हैं भीष्म अष्टमी 2020 में कब है, भीष्म अष्टमी तर्पण मुहूर्त, भीष्म अष्टमी महत्व,भीष्म अष्टमी तर्पण विधि, और भीष्म पितामह की कथा


भीष्म अष्टमी 2020 तिथि (Bhishma Ashtami 2020 Tithi)

2 फरवरी 2020

भीष्म अष्टमी 2020 तर्पण मुहूर्त (Bhishma Ashtami 2020 Tarpan Muhurat)

रवि योग - सुबह 11 बजकर 11 मिनट से अगले दिन सुबह 6 बजकर 48 मिनट तक

अष्टमी तिथि प्रारम्भ - सुबह 06 बजकर 10 मिनट से (1 फरवरी , 2020) बजे

अष्टमी तिथि समाप्त - सुबह 08 बजकर 03 मिनट तक (2 फरवरी 2020)


भीष्म अष्टमी का महत्व (Bhishma Ashtami Importance)

माघ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। भीमा अष्टमी के दिन व्रत रखने को अधिक महत्व दिया जाता है। इस दिन जो भी व्यक्ति तिल के जल से तर्पण करता है। उसे संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही इस दिन व्रत रखने से पापों का नाश भी होता है।

इस दिन भीष्म पितामह की आत्मा की शांति के लिए भी तर्पण किया जाता है। जिससे उनका आर्शीवाद प्राप्त हो सके। जो भी व्यक्ति ऐसा करता है उसे पितामह भीष्म जैसी आज्ञाकारी संतान की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही इस दिन पितामह भीष्म का तर्पण करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। इसलिए इस व्रत को अधिक महत्व दिया जाता है।


भीष्म अष्टमी तर्पण विधि (Bhishma Ashtami Tarpan Vidhi)

1.भीष्म अष्टमी के दिन साधक को किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए और बिना सीले वस्त्र धारण करने चाहिए।

2. इसके बाद दहिने कंधे पर जनेऊ धारण करें। यदि आप जनेऊ धारण नहीं कर सकते तो दहिने कंधे पर गम्छा जरूर रखें।

3. दाहिने कंधें पर गम्छा रखने के बाद हाथ में तिल और जल लें और दक्षिण की और मुख कर लें।

4. इसके बाद वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतिप्रवराय च। गंगापुत्राय भीष्माय प्रदास्येहं तिलोदकम् अपुत्राय ददाम्येतत्सलिलं भीष्मवर्मणे ।। मंत्र का जाप करें।

5. मंत्र जाप के बाद तिल और जल के अंगूठे और तर्जनी उंगली के मध्य भाग से होते हुए पात्र में छोड़े।

7. इसके बाद जनेऊ या गम्छे को बाएं कंधे पर डाल लें और गंगापुत्र भीष्म को अर्घ्य दें।

8. जिसके लिए आप भीष्म पितामह का नाम लेते हुए सूर्य को जल दे सकते हैं या दक्षिण मुखी होकर भी आप किसी वट वृक्ष को जल दे सकते हैं।

9. इसके बाद तर्पण वाले जल को किसी पवित्र वृक्ष या बरगद के पेड़ पर भी चढ़ा सकते है।

10 अंत में हाथ जोड़कर भीष्म पितामह को प्रणाम करें और अपने पितरों को भी प्रणाम करें।


भीष्म अष्टमी की कथा (Bhishma Ashtami Ki Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार भीष्म पितामह का असली नाम देवव्रत था। वह हस्तिनापुर के राजा शांतनु की पत्नी और मां गंगा की कोख से उत्पन्न हुए थे। एक बार राजा शांतनु शिकार खेलते खेलते गंगा तट पर पहुच गए। वहां से लौटते समय उनकी भेंट हरिदास केवट की पुत्री मतस्यगंधा से हुई। जिनकी सुंदरता पर वो मोहित हो गए राजा शांतनु ने मतस्यगंधा के पिता से उनका हाथ मांगा। लेकिन मतस्यगंधा के पिता ने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा कि आपका जयेष्ठ पुत्र देवव्रत है।

जो आपके राज्य का उत्तराधिकारी है यदि आप मेरी पुत्री के पुत्र को राज्य का उत्तराअधिकारी बनाने की घोषणा करते हैं तो ही मैं अपको अपनी पुत्री का हाथ देने को तैयार हूं। राजा शांतनु इस बात को मानने से मना कर देते है इस बात को लेकर कुछ समय बीत जाता है पर वो मतस्यगंधा को नही भूल पाते और व्याकुल रहने लगते हैं। यह सब देखकर उनके पुत्र देवव्रत ने उनकी व्याकुलता का कारण पुछा और सब बात जानने के बाद वो केवट हरिदास के पास जाते है

जिसके बाद उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए हाथ में गंगाजल लेकर प्रतीज्ञा लेते हैं कि मैं आजीवन अविवाहित ही रहुंगा पिता के लिए उन्होने ये प्रण लिया। ऐसी कठिन प्रतीज्ञा के लिये उनका नाम भीष्म पितामह पड़ा उनके पिता ने प्रसन्न होकर उनको मनचाही मृत्यु का वरदान दिया महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद उन्होने अपना शरीर त्यागा माना जाता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति तिल के जल के साथ तर्पण करता है उसे संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती ही है इसके साथ ही उसके सभी पापों का नाश भी हो जाता है।

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