Chaitra Navratri 2020 Mein Kab Hai : चैत्र नवरात्रि 2020 में कब है, जानिए घट स्थापना का शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि, कथा, मंत्र और मां दुर्गा की आरती

Chaitra Navratri  2020 Mein Kab Hai : चैत्र नवरात्रि 2020 में कब है, जानिए घट स्थापना का शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि, कथा, मंत्र और मां दुर्गा की आरती
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Chaitra Navratri Date 2020 चैत्र मास में पड़ने वाली नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इस बार चैत्र नवरात्रि पर घटस्थापना (Ghatsthapna) मीन लग्न (Meen Lagan) में होगी, जिसका समय सुबह 6 बजकर 19 मिनट से लेकर 7 बजकर 17 मिनट तक रहेगा तो चलिए जानते हैं चैत्र नवरात्रि 2020 में कब है (Chaitra Navratri 2020 Mai kab Hai), चैत्र नवरात्रि पर घट स्थापना का शुभ मुहूर्त ( Chaitra Navratri Ghatasthapana Subh Muhurat),चैत्र नवरात्रि का महत्व (Chaitra Navratri Importance), चैत्र नवरात्रि पूजा विधि (Chaitra Navratri Puja Vidji), चैत्र नवरात्रि की कथा (Chaitra Navratri Story), मां दुर्गा के मंत्र (Goddess Durga Mantra) और मां दुर्गा की आरती (Goddess Durga Aarti)

Chaitra Navratri Date 2020 चैत्र नवरात्रि का पर्व (Chaitra Navratri Festival) चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होकर रामनवमी (Ram Navami) तक मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि पर मां दुर्गा (Maa Durga) के नौ रूपों की पूजा- अर्चना की जाती है। माना जाता है कि चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा (Goddess Durga Puja) करने से सभी प्रकार की सुख सुविधाओं की प्राप्ति होती है और जीवन की सभी व्याधियां दूर होती हैं तो आइए जानते हैं चैत्र नवरात्रि 2020 में कब है, चैत्र नवरात्रि पर घट स्थापना का शुभ मुहूर्त,चैत्र नवरात्रि का महत्व, चैत्र नवरात्रि पूजा विधि, चैत्र नवरात्रि की कथा, मां दुर्गा के मंत्र और मां दुर्गा की आरती

चैत्र नवरात्रि 2020 तिथि (Chaitra Navratri 2020 Tithi)

25 मार्च 2020 से 3 अप्रैल 2020 तक

चैत्र नवरात्रि 2020 शुभ मुहूर्त (Chaitra Navratri 2020 Subh Muhurat)

घटस्थापना मुहूर्त - सुबह 06 बजकर 19 मिनट से 7 बजकर 17 मिनट तक

प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - , दोपहर 02 बजकर 57 मिनट से (24 मार्च 2020)

प्रतिपदा तिथि समाप्त - अगले दिन शाम 05 बजकर 26 मिनट तक (25 मार्च 2020 )

मीन लग्न प्रारम्भ - सुबह 6 बजकर 19 मिनट से (25 मार्च 2020)

मीन लग्न समाप्त - सुबह 07 बजकर 17 मिनट तक (25 मार्च 2020)

चैत्र नवरात्रि का महत्व (Chaitra Navratri Ka Mahatva/ Importance)

नवरात्रि वह समय होता है। जब दोनों ऋतुओं का मिलन होता है। मुख्य रूप से दो नवरात्रि को विशेष महत्व दिया जाता है। जो चैत्र नवरात्रि और अश्विन नवरात्रि है। चैत्र नवरात्रि से ही गर्मियों का आरंभ होता है और प्रकृति एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन से गुजरती है। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि चैत्र नवरात्रि में उपवास करने से शरीर मौसम के बदलाव के लिए तैयार हो जाता है। नवरात्रि का त्योहार उत्तर भारत में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है।

चैत्र नवरात्रि में उपवास के तीन दिन की ऊर्जा मां दुर्गा को समर्पित होती है। अगले तीन दिन की ऊर्जा मां लक्ष्मी को समर्पित होती है और आखिरी के तीन दिन की ऊर्जा की देवी मां सरस्वती को समर्पित होती है। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है। कलश स्थापना को ब्रह्माण्ड का प्रतीक माना जाता है और घर में शुद्धि और खुशहाली लाता है। इसके साथ ही माता चौकी स्थापित की जाती है और पूरे विधि विधान से मां दुर्गा की पूजा करके उपवास किया जाता है। चैत्र नवरात्रि पर मां दुर्गा की अखंड ज्योत भी जलाई जाती है।

चैत्र नवरात्रि पूजन विधि (Chaitra Navratri Puja Vidhi/ Pujan Vidhi)

1. चैत्र नवरात्रि पर साधक को सबसे पहले ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करके साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।

2. इसके बाद एक चौकी लेकर उस गंगाजल छिड़क कर मिट्टी, पीतल या ताबें का कलश स्थापित करना चाहिए।

3. इसके बाद उस कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं और उस पर एक नारियल लाल रंग की चुन्न लपेट कर रखें।

4. इसके बाद किसी बड़े बर्तन में मिट्टी डालक उसमें ज्वार बोएं।

5. इसके बाद मां दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें और उसका रोली से तिलक करें।

6. इसके बाद कलश और नारियल का भी तिलक करें और मां दुर्गा को फूलों की माला पहनाकर उन्हें पुष्प अर्पित करें।

7. इसके बाद एक गोबर के उपले को जलाकर पूजा स्थल में रखें और उस पर घी डालें।

8. इसके बाद उस उपले पर कपूर , दो लौंग के जोड़े और बताशे अर्पित करें।

9. इसके बाद मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करें और दुर्गासप्तशती का पाठ करें।

10. इसके बाद मां की धूप व दीप से आरती उतारें और माता को बताशे का भोग लगाकर उसका प्रसाद वितरण करें।

चैत्र नवरात्रि की कथा (Chaitra Navratri Ki Katha/ Story)

एक नगर में एक ब्राह्मण रहा करता था। वह मां भगवती दुर्गा का परम भक्त था। उसकी एक कन्या थी। जिसका नाम सुमति था। ब्राह्मण नियम पूर्वक प्रतिदिन दुर्गा जी की पूजा और यज्ञ किया करता था। ब्राह्मण की बेटी भी प्रतिदिन इस पूजा में भाग लिया करती थी। एक दिन सुमति खेल में व्यस्ति हो गई और मां दुर्गा की पूजा में शामिल नहीं हुई। यह देखकर उसके पिता को अत्यंत क्रोध आ गया और उसने अपनी पुत्री से कहा वह उसका विवाह किसी दरिद्र और कोढ़ी से करा देगा। पिता की बात सुनकर उसकी बेटी को बहुत दुख हुआ।

उसने पिता के द्वारा क्रोध में कही गई बात को स्वीकार कर लिया। अपनी बात के अनुसार उसके पिता ने अपने बेटी का विवाह एक दरिद्र और कोढ़ी व्यक्ति से करा दिया। सुमति अपने पति के साथ विवाह करके चली गई। उसके पति का घर न होने के कारण उसे वन में ही रात बड़ी मुश्किल से बीतानी पड़ी। उस कन्या की यह दशा देखकर मां भगवती उसके द्वारा किए गए पिछले जन्म के प्रभाव से प्रकट हो गईं और बोली हे कन्या मैं तुमसे अत्याधिक प्रसन्न हूं। इसलिए तुम मुझसे कुछ भी मांग सकती हो। इस पर सुमति बोली की मां आप मुझ पर किस बात से प्रसन्न हैं।

तब मां दुर्गा ने बताया कि पिछले जन्म में तुम एक भील की पत्नी थीं। एक दिन तुम्हारे पति की चोरी के कारण तुम्हें और तुम्हारे पति को जेल में बंद कर दिया गया था। उन सिपाहियों ने तुम्हें और तुम्हारे पति को कुछ भी खाने के लिए नहीं दिया था। जिसके कारण तुम्हारा नवरात्रि का व्रत हो गया था। इसी वजह से मैं तुमसे प्रसन्न हूं। तुम कुछ भी मांग सकती हो। इस पर उस कन्या ने कहा कि मां कृपा करके आप मेरे पति को कोढ़ दूर कर दीजिए। माता ने उसके कन्या के पति को रोग से मुक्त कर दिया। इसलिए नवरात्रि का व्रत करने वाले व्यक्ति को उसके हर जन्म में शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

नवरात्रि के नौ दिन इन देवियों की करें पूजा (Navratri Ke No Din in Deviyo ki Kare Puja)

पहला दिन- देवी शैलपुत्री

दूसरा दिन- ब्रह्मचारिणी

तीसरा दिन- चंद्रघंटा

चौथा दिन- कूष्मांडा

पांचवा दिन- स्कंध माता

छठा दिन- कात्यायिनी

सातवां दिन- कालरात्रि

आठवां दिन- महागौरी

नौवां दिन- सिद्धिदात्री

पहला दिन- देवी शैलपुत्री

दूसरा दिन- ब्रह्मचारिणी

तीसरा दिन- चंद्रघंटा

चौथा दिन- कूष्मांडा

पांचवा दिन- स्कंध माता

छठा दिन- कात्यायिनी

सातवां दिन- कालरात्रि

आठवां दिन- महागौरी

नौवां दिन- सिद्धिदात्री

मां दुर्गा के मंत्र (Maa Durga Ke Mantra)

1.सर्वसूर्यमांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।

2.ॐ जयन्ती शुक्रा काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

3. या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

4.या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता,

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

5.ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै

मां दुर्गा के 108 नाम (Maa Durga Ke 108 Naam)

1. सती- अग्नि में जल कर भी जीवित होने वाली

2. साध्वी- आशावादी

3. भवप्रीता- भगवान शिव पर प्रीति रखने वाली

4. भवानी- ब्रह्मांड में निवास करने वाली

5. भवमोचनी- संसारिक बंधनों से मुक्त करने वाली

6. आर्या- देवी

7. दुर्गा- अपराजेय

8. जया- विजयी

9. आद्य- शुरुआत की वास्तविकता

10. त्रिनेत्र- तीन आंखों वाली

11. शूलधारिणी- शूल धारण करने वाली

12. पिनाकधारिणी- शिव का त्रिशूल धारण करने वाली

13. चित्रा- सुरम्य, सुंदर

14. चण्डघण्टा- प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वाली, घंटे की आवाज निकालने वाली

15. सुधा- अमृत की देवी

16. मन- मनन-शक्ति

17. बुद्धि- सर्वज्ञाता

18. अहंकारा- अभिमान करने वाली

19. चित्तरूपा- वह जो सोच की अवस्था में है

20. चिता- मृत्युशय्या

21. चिति- चेतना

22. सर्वमन्त्रमयी- सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली

23. सत्ता- सत-स्वरूपा, जो सब से ऊपर है

24. सत्यानंद स्वरूपिणी- अनन्त आनंद का रूप

25. अनन्ता- जिनके स्वरूप का कहीं अंत नहीं

26. भाविनी- सबको उत्पन्न करने वाली, खूबसूरत औरत

27. भाव्या- भावना एवं ध्यान करने योग्य

28. भव्या- कल्याणरूपा, भव्यता के साथ

29. अभव्या- जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं

30. सदागति- हमेशा गति में, मोक्ष दान

31. शाम्भवी- शिवप्रिया, शंभू की पत्नी

32. देवमाता- देवगण की माता

33. चिन्ता- चिन्ता

34. रत्नप्रिया- गहने से प्यार करने वाली

35. सर्वविद्या- ज्ञान का निवास

36. दक्षकन्या- दक्ष की बेटी

37. दक्षयज्ञविनाशिनी- दक्ष के यज्ञ को रोकने वाली

38. अपर्णा- तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली

39. अनेकवर्णा- अनेक रंगों वाली

40. पाटला- लाल रंग वाली

41. पाटलावती- गुलाब के फूल

42. पट्टाम्बरपरीधाना- रेशमी वस्त्र पहनने वाली

43. कलामंजीरारंजिनी- पायल को धारण करके प्रसन्न रहने वाली

44. अमेय- जिसकी कोई सीमा नहीं

45. विक्रमा- असीम पराक्रमी

46. क्रूरा- दैत्यों के प्रति कठोर

47. सुन्दरी- सुंदर रूप वाली

48. सुरसुन्दरी- अत्यंत सुंदर

49. वनदुर्गा- जंगलों की देवी

50. मातंगी- मतंगा की देवी

51. मातंगमुनिपूजिता- बाबा मतंगा द्वारा पूजनीय

52. ब्राह्मी- भगवान ब्रह्मा की शक्ति

53. माहेश्वरी- प्रभु शिव की शक्ति

54. इंद्री- इंद्र की शक्ति

55. कौमारी- किशोरी

56. वैष्णवी- अजेय

57. चामुण्डा- चंड और मुंड का नाश करने वाली

58. वाराही- वराह पर सवार होने वाली

59. लक्ष्मी- सौभाग्य की देवी

60. पुरुषाकृति- वह जो पुरुष धारण कर ले

61. विमिलौत्त्कार्शिनी- आनन्द प्रदान करने वाली

62. ज्ञाना- ज्ञान से भरी हुई

63. क्रिया- हर कार्य में होने वाली

64. नित्या- अनन्त

65. बुद्धिदा- ज्ञान देने वाली

66. बहुला- विभिन्न रूपों वाली

67. बहुलप्रेमा- सर्व प्रिय

68. सर्ववाहनवाहना- सभी वाहन पर विराजमान होने वाली

69. निशुम्भशुम्भहननी- शुम्भ, निशुम्भ का वध करने वाली

70. महिषासुरमर्दिनि- महिषासुर का वध करने वाली

71. मसुकैटभहंत्री- मधु व कैटभ का नाश करने वाली

72. चण्डमुण्ड विनाशिनि- चंड और मुंड का नाश करने वाली

73. सर्वासुरविनाशा- सभी राक्षसों का नाश करने वाली

74. सर्वदानवघातिनी- संहार के लिए शक्ति रखने वाली

75. सर्वशास्त्रमयी- सभी सिद्धांतों में निपुण

76. सत्या- सच्चाई

77. सर्वास्त्रधारिणी- सभी हथियारों धारण करने वाली

78. अनेकशस्त्रहस्ता- कई हथियार धारण करने वाली

79. अनेकास्त्रधारिणी- अनेक हथियारों को धारण करने वाली

80. कुमारी- सुंदर किशोरी

81. एककन्या- कन्या

82. कैशोरी- जवान लड़की

83. युवती- नारी

84. यति- तपस्वी

85. अप्रौढा- जो कभी पुराना ना हो

86. प्रौढा- जो पुराना है

87. वृद्धमाता- शिथिल

88. बलप्रदा- शक्ति देने वाली

89. महोदरी- ब्रह्मांड को संभालने वाली

90. मुक्तकेशी- खुले बाल वाली

91. घोररूपा- एक भयंकर दृष्टिकोण वाली

92. महाबला- अपार शक्ति वाली

93. अग्निज्वाला- मार्मिक आग की तरह

94. रौद्रमुखी- विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर चेहरा

95. कालरात्रि- काले रंग वाली

96. तपस्विनी- तपस्या में लगे हुए

97. नारायणी- भगवान नारायण की विनाशकारी रूप

98. भद्रकाली- काली का भयंकर रूप

99. विष्णुमाया- भगवान विष्णु का जादू

100. जलोदरी- ब्रह्मांड में निवास करने वाली

101. शिवदूती- भगवान शिव की राजदूत

102. करली- हिंसक

103. अनन्ता- विनाश रहित

104. परमेश्वरी- प्रथम देवी

105. कात्यायनी- ऋषि कात्यायन द्वारा पूजनीय

106. सावित्री- सूर्य की बेटी

107. प्रत्यक्षा- वास्तविक

108.ब्रह्मवादिनी- वर्तमान में हर जगह वास करने वाली

मां दुर्गा की आरती (Maa Durga Ki Aarti)

जय अम्बे गौरी मैया जय सूर्यमूर्ति ।

तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥

मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।

उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।

रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥

केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।

सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।

कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥

शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।

धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥

चौंसठ योगिनि सूर्यगावैं नृत्य करत भैरू।

बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥

भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।

मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।

श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥

श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।

कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥

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