Chaitra Purnima 2020 Kab Hai : चैत्र पूर्णिमा 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा

Chaitra Purnima  2020 Kab Hai : चैत्र पूर्णिमा 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा
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Chaitra Purnima 2020 Kab Hai : चैत्र मास की पूर्णिमा को हिंदू धर्म में अत्यंत ही विशेष माना जाता है, शास्त्रों के अनुसार इसी दिन श्री राम भक्त हनुमान का भी जन्म हुआ था तो चलिए जानते हैं चैत्र पूर्णिमा 2020 में कब है(Chaitra Purnima 2020 Mai Kab Hai) , चैत्र पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त (Chaitra Purnima 2020 Shubh Muhurat), चैत्र पूर्णिमा का महत्व (Chaitra Purnima Importance),चैत्र पूर्णिमा पूजा विधि (Chaitra Purnima Puja Vidhi) और चैत्र पूर्णिमा की कथा (Chaitra Purnima Story)

Chaitra Purnima 2020 Kab Hai : चैत्र मास की पूर्णिमा (Chaitra Purnima ) तिथि को स्नान और दान के लिए तो विशेष माना जाता है साथ ही इस दिन हनुमान जन्मोत्सव मनाने के कारण भी इस पूर्णिमा को अति विशेष माना जाता है इस दिन भगवान शास्त्रों के अनुसार चैत्र पूर्णिमा के दिन ही हनुमान जी (Hanuman Ji) का जन्म हुआ था और इसी कारण से इस दिन भगवान सत्यनारायण और हनुमान जी की पूजा भी की जाती है।


चैत्र पूर्णिमा 2020 तिथि (Chaitra Purnima 2020 Tithi)

7 अप्रैल 2020

चैत्र पूर्णिमा 2020 शुभ मुहूर्त (Chaitra Purnima 2020 Shubh Muhurat)

चैत्र पूर्णिमा प्रारंभ - दोपहर 12 बजकर 1 मिनट से (7 अप्रैल 2020)

चैत्र पूर्णिमा समाप्त - अगले दिन सुबह 8 बजकर 4 मिनट तक (8 अप्रैल 2020)


चैत्र पूर्णिमा का महत्व (Chaitra Purnima Importance)

चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि पर लोग पवित्र नदी और सरोवरों मे डूबकी लगाते हैं। शास्त्रों के द्वारा इसी दिन श्री राम भक्त हनुमान का भी जन्म हुआ था। इस दिन हनुमान जी की पूजा करने से भगवान श्री राम और हनुमान जी दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। चैत्र पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के सत्यनारायण स्वरूप की भी पूजा की जाती है। इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने से जन्मों जन्म के पापों का अंत होता है। इसलिए इस दिन लोग अपने घरों में भगवान सत्यनारायण की कथा भी कराते हैं।

इसी कारण से चैत्र पूर्णिमा को अत्यंत विशेष माना जाता है। इस दिन चंद्रमा की भी पूजा को भी विशेष महत्व दिया जाता है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा को जल देने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है। इसके साथ ही चैत्र मास की पूर्णिमा पर दान को भी विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन किसी भी निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को दान देने से उस दान का कई गुना फल प्राप्त होता है और दान देने वाले मनुष्य को जीवन की सभी सुख और सुविधाओं की प्राप्ति होती है।


चैत्र पूर्णिमा पूजा विधि (Chaitra Purnima Puja Vidhi)

1. चैत्र पूर्णिमा के दिन किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान अवश्य करना चाहिए और साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।

2. इसके बाद एक साफ चौकी लेकर उस पर गंगाजल छिड़कें और उस चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं।

3. पीला कपड़ा बिछाकर उस चौकी पर भगवान सत्यनारायण की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें।

4.इसके बाद उस चौकी पर जल से भरा कलश स्थापित करें और भगवान विष्णु को चरणामृत से स्नान कराएं।

5.चरणामृत से स्नान कराने के बाद उन्हें फिर से गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद उन्हें मवा, पंजीरी, फूल माला,ऋतुफल, मिष्ठान और नैवेद्य आदि अर्पित करें।

6.इसके बाद भगवान सत्यनारायण को चंदन का तिलक करें और उन्हें फूल,माला अक्षत और तुलसी दल चढ़ाएं।

7. अक्षत चढ़ाने के बाद धूप व दीप जलाएं। इसके बाद भगवान सत्यनारायण की विधिवत पूजा करें।

8. इसके बाद भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ें या सुनें और भगवान सत्यनारायण की धूप व दीप से कथा सुने।

9.कथा के पढ़ने के बाद भगवान विष्णु को पंजीरी का भोग लगाएं।

10. अंत में भगवान विष्णु से क्षमा याचना करें और पंजीरी और चरणामृत के प्रसाद का वितरण करें।


चैत्र पूर्णिमा की कथा (Chaitra Purnima Story)

पौराणिक कथा के अनुसार कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राहाण निवास करता था उसकी कोई संतान नही थी। वह ब्राह्मण दान मांगकर अपना गुजारा करता था। एक बार उस ब्राह्मण की पत्नी नगर में दान मांगने के लिए गई। लेकिन उसे नगर में उस दिन किसी ने भी दान नहीं दिया क्योंकि वह नि:संतान थी। वहीं दान मांगने पर उस ब्राह्मण की पत्नी को एक व्यक्ति ने सलाह दी कि वो मां काली की आराधना करे। सके बाद ब्राह्मण दंपत्ति ने ऐसा ही किया और सोलह दिनों तक मां काली की आराधना की।

जिसके बाद मां काली स्वंय प्रकट हुईं मां ने उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया और कहा कि अपने सामर्थ्य के अनुसार तुम आटे की दीप हर पूर्णिमा को जलाना और हर पूर्णिमा को एक- एक दीपक बढ़ा देना। तुम्हें कर्क पूर्णिमा तक पूरे 22 दीए अवश्य ही जलाने हैं। देवी के कहे अनुसार ब्राह्मण ने एक आम के पेड़ से आम तोड़कर अपनी पत्नी को पूजा के लिए दे दिया। जिसके बाद उसकी पत्नी गर्भवती हो गई। देवी के आर्शीवाद से उस ब्राह्मण के यहां एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम देवदास रखा गया।

जब वह बड़ा हुआ तो वह पढ़ने के लिए काशी गया ।देवदास के साथ उसका मामा भी गया। दोनों के साथ रास्ते में एक घटना घटी। जिसके बाद देवदास का प्रचंशवश विवाह हो गया। जबकि देवदास ने पहले से ही बता दिया था कि वह अल्पायु है । लेकिन फिर भी उसका विवाह जबरदस्ती कर दिया गया कुछ समय के बाद उसे मारने के लिए काल आया लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति के पूर्णिमा व्रत के कारण काल उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया।

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