Dhanteras 2019 : यहां है देवताओं के वैद्य धनवंतरी का मंदिर, दर्शन मात्र से दूर हो जाते हैं सभी रोग

Dhanteras 2019 धनतेरस का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है। इस दिन देवताओं के वैद्य भगवान धनवंतरी (Lord Dhanvantari) की पूजा अर्चना की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान धनवंतरी का मंदिर (Dhanvantari Temple) कहां है। अगर आप यह नहीं जानते तो हम आपको इसके बारे में बताएंगे। भगवान धनवंतरी समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों में से एक थे तो आइए कहां है देवताओं के वैद्य धनवंतरी का मंदिर जहां पर सिर्फ दर्शन मात्र से दूर हो जाते हैं सभी रोग
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कहां हैं भगवान धनवंतरी का मंदिर (Kaha Hai Bhagwan Dhanvantari Ka Mandir)
भगवान धनवंतरी का मंदिर तमिलनाडु में वेल्लोर जिले के वालाजापेट के कील्पुदुपेट्टई गांव में स्थित है। यह मंदिर चेन्नई से लगभग 110 किलोमीटर और बैंगलोर से 230 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वालाजापेट के शोणिंगुर रोड़ पर बस स्टैंड से इसकी दूरी 3 किमी की है। मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर 500 साल पुराना है। इस मंदिर का रखरखाव श्री धनवंतरी आरोग्यमपदम द्वारा किया जाता है। मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही वास्तु भगवान के दर्शन होते हैं। यहां पर भगवान लेटी हुई मुद्रा में हैं और इन्हें इंद्र अग्नि, वायु, वरुण और कुबेर से घेर रखा है।
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कैसा दिखता है भगवान धनवंतरी का मंदिर (Kaisa Dikhta Hai Bhagwan Dhanvantari Ka Mandir)
यहां पर भगवान धनवंतरी का सिर भगवान शिव को, पेट ब्रह्मा और पैर भगवान विष्णु का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहां पर भगवान धनवंतरी का आर्शीवाद लेने के लिए नवविवाहित जोड़े आते हैं। मंदिर में थोड़ा आगे बढ़ने पर विनायक (विनई थिरकुम भगवान) स्थित हैं। इस स्थान पर ज्यादातर नवग्रहों से संबंधित पेड़ पौधे, 12 राशियां और 27 नक्षत्र यहां पर स्थित है। लोग यहां पर अपने अच्छे समय के लिए परिक्रमा करते हैं। इसके बाद आगे चलने पर महिषासुरमर्दिनी मंदिर स्थित है। यहां पर देवी एक भव्य रूप में स्थापित हैं। यहां पर भक्त लाल मिर्च और समीथा (निर्दिष्ट वृक्षों की टहनियाँ) को हवन कुंड में अर्पित करके अच्छे स्वास्थय की कामना करते हैं।
मंदिर में थोड़ा सा और आगे चलने पर भगवान धवंतरी की प्रतिमा दिखाई देती है। यहां पर भक्त एक विशाल अग्नि कुंड (हवन कुंड) में कई प्रकार की औषधियां, जड़ी बूटियां,फलों और फूलों को हवन कुंड की अग्नि में डालते हैं। यह हवन बिमारियों को कम करने के लिए किया जाता है। माना जाता है कि इन सभी चीजों को अग्नि में प्रवाहित करने पर जो हवा अग्नि कुंड से आती है उसे ग्रहण करने पर बिमारियां कम हो जाती है। इस सानिधि में, नारियल के बजाय, अदरक, सूखी अदरक, मिर्च और गुड़ के मिश्रण को भी डाला जाता है।
इस मंदिर के मुख्य आकर्षण की बात करें तो मंदिर के मैदान के चतुर्भुज पर फैले 468 शिवलिंग है। जहां पर रोज पूजा- अर्चना की जाती है। यहां पर भक्त सभी शिवलिंगों की पूजा -अर्चना कर सकते हैं। यहां मुरुगन, दुर्गा, अन्नपूर्णानी, दत्तात्रेय, हयग्रीव, राहु और केतु,शिवलिंग के साथ पार्वती, नंदी, शिर्डी,साईंबाबा, राघवरास्वामी, महा गणपति (पीनी दारुम भगवान) की प्रतिमा स्थापित हैं। इसके अलावा संजीविनी पर्वत को लाने वाले हनुमान जी की भी इस मंदिर में प्रतिमा स्थापित है।
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