Diwali 2019 Festival Significance : जानिए दिवाली के पांच पर्व धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज की मान्यता

Diwali 2019 Festival Significance : जानिए दिवाली के पांच पर्व धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज की मान्यता
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Diwali 2019 Festival Significance दिवाली का त्योहार पांच दिनों तक मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत धनतेरस से हो जाती है, इसके बाद नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है तो आइए जानते हैं दिवाली के पांच दिनों के पर्वों की मान्यताएं...

Diwali 2019 हिंदू धर्म में दिवाली का त्योहार (Diwali Festival) पांच दिनों तक मनाया जाता है। दिवाली के यह त्योहार कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि से आरंभ होते हैं और इनका अंत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को होता है। इन पांच दिनों में अलग- अलग त्योहार मनाए जाते हैं। जिनमें अलग- अलग देवी देवताओं की पूजा - अर्चना की जाती है। दिवाली (Diwali) के इन सभी पांच त्योहारों पर दीपक जलाने को विशेष महत्व दिया जाता है। दीपक जलाए बिना यह त्योहार पूर्ण नहीं हो सकते। तो आइए जानते हैं दिवाली के पांच दिनों के पर्वों की मान्यताएं


धनतेरस की मान्यता (Dhanteras Ki Manyata)

दिवाली के पांच दिनों के पर्व में पहला त्योहार धनतेरस का होता है। मान्यताओं के अनुसार जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया था तो उस समुद्र मंथन में से चौदह रत्न निकले थे। इन्हीं रत्नों में से एक रत्न भगवान धनवंतरी निकले थे। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान धनवंतरी अपने हाथ में अमृत का कलश लेकर बाहर निकले थे। भगवान धनवंतरी आर्युवेद के जनक भी माने जाते हैं। इसी कारण से ही इस दिन को धनतेरस, धनत्रयोदशी एवं धनवंतरी त्रयोदशी के नाम से जाना जाता है।


नरक चतुर्दशी की मान्यता (Narak Chaturdashi Ki Manyata)

दिवाली के पांच दिनों के पर्व में दूसरा त्योहार नरक चतुर्दशी का मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार एक समय संसार में भूमि देवी के पुत्र नरकासुर का आतंक था। नरकासुर को वरदान था की उसकी मृत्यु केवल उसकी मां के द्वारा ही हो सकती है। अगले जन्म में भूमि देवी ने सत्यभामा के रूप में जन्म लिया। सत्यभामा का विवाह भगवान श्री कृष्ण के साथ हुआ था। भगवान श्री कृष्ण और सत्यभामा ने ही मिलकर नरकासुर का अंत किया तब से लेकर आज तक इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है।


दिवाली पूजन की मान्यता (Diwali Pujan Ki Manyata)

दिवाली का पांच दिन के पर्व में तीसरा त्योहार आता है लक्ष्मी पूजा का देवताओं और असुरों के द्वारा किए गए समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी प्रकट हुई थी और तब ही से प्रत्येक वर्ष धन, यश और वैभव की कामना के लिए मां लक्ष्मी की आराधना की जाती है। दिवाली के दिन मां लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की आराधना भी की जाती है। शास्त्रों के अनुसार मां लक्ष्मी जी की कोई संतान नही थी और मां पार्वती के दो पुत्र थे। मां लक्ष्मी ने माता पार्वती जी से भगवान गणेश को गोद लेने की इच्छा प्रकट की। माता पार्वती जी को इस बात की चिंता थी की लक्ष्मी जी कभी भी एक स्थान पर नहीं रूकती तो गणेश जी की देखभाल कौन करेगा।

इस चिंता पर लक्ष्मी जी ने कहा की वह जहां पर भी जाएंगी अपने साथ गणेश जी को भी लेकर जाएंगी और तब ही से जहां पर भी लक्ष्मी जी की आराधना होती है। वहां पर भगवान गणेश की भी पूजा होती है। वैसे तो दिवाली पर भगवान राम आयोद्धया वापस आए थे। लेकिन दिवाली पर मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। माना तो यह भी जाता है कि इस समय भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। इसलिए भगवान राम की पूजा नहीं की जाती।


गोवर्धन पूजा की मान्यता (Govardhan Puja Ki Manyata)

दिवाली का चौथा पर्व गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है। रामायण के अनुसार जब भगवान राम रावण पर आक्रमण करने के लिए पुल का निर्माण कर रहे थे। तब सभी वानर अपनी- अपनी शक्ति के अनुसार पत्थर उठाकर लेकर आ रहे थे। हनुमान जी पुल बनाने के लिए गोवर्धन पर्वत लेकर आए। लेकिन उनके आने से पहले ही पुल का काम पूरा हो गया। पुल के निर्माण में अपना उपयोग न हो पाने पर गोवर्धन पर्वत ने अपना दुख श्री राम को प्रकट किया। भगवान श्री राम ने गोवर्धन पर्वत को वचन दिया कि अगले जन्म में वह उनका उपयोग जरूर करेंगे और हनुमान जी को आज्ञा दी गोवर्धन पर्वत को व्रज मे रखकर आएं।

इसके बाद अगले जन्म में जब भगवान ने श्री कृष्ण के रूप में जन्म लिया तो उन्होंने वृजवासियों से गोवर्धन की पूजा करने को कहा। इससे नाराज होकर इंद्र ने व्रज पर भारी वर्षा की तब भगवान श्री कृष्ण ने लोगों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी उंगली पर उठा लिया और इंद्र का घमंड तोड़ दिया। इसी कारण से इस दिन गोवर्धन की पूजा की जाती है।


भाई दूज की मान्यता (Bhai Dooj Ki Manyata)

दिवाली का पांचवा पर्व भैया दूज के रूप में मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इस दिन मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने के लिए उनके घर गए। यमुना ने अपने भाई यमराज को प्रेम पूर्वक भोजन कराया। यमराज अपनी बहन के आदर सत्कार से बहुत प्रसन्न हुए। यमराज ने अपनी बहन यमुना को वरदान दिया कि इस दिन जो भी भाई अपनी बहन के घर जाएगा और उसकी बहन तुम्हारी तरह ही अपने भाई को प्रेम पूर्वक भोजन कराएगी। उसे काल चक्र से मुक्ति मिलेगी और मोक्ष की प्राप्ति होगी। इसी कारण से इस दिन को भाई दूज के रूप में मनाया जाता है।

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