Eid ul Adha 2019 : कुर्बानी की अफ़ज़लियत

Eid ul Adha 2019 : कुर्बानी की अफ़ज़लियत
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सऊदी अरब में भारत से एक दिन पहले यानी 11 अगस्त दिन रविवार को ईद उल जुहा 2019 मनाई जाएगी। बता दें कि ईद उल अजहा ईद-उल-फित्र के लगभग 70 दिनों के बाद मनाई जाती है। ईद ईद उल अजहा की नामज अदा करने के बाद कुर्बानी की जाती है।

Eid ul Adha 2019 ईद-उल-अजहा (ईद उल जुहा 2019) यानी बकरीद 12 अगस्त दिन सोमवार को भारत समेत विभिन्न देशों में मनाई जाएगी। लेकिन सऊदी अरब में भारत से एक दिन पहले यानी 11 अगस्त दिन रविवार को ईद उल जुहा 2019 मनाई जाएगी। बता दें कि ईद उल अजहा ईद-उल-फित्र के लगभग 70 दिनों के बाद मनाई जाती है। ईद ईद उल अजहा की नामज अदा करने के बाद कुर्बानी की जाती है। आईए जानते हैं कुर्बानी नमाज़ से पहले करनी चाहिए या नहीं करनी चाहिए। साथ यह भी जानते हैं कि कुर्बानी के जानवर का रंग कैसा हो और उसकी अफ़ज़लियत क्या हो।

कुर्बानी के दिन

नियतुत्तालिबीन (शम्स सिद्दीक़ी बरैलवी) की किताब के मुताबिक : नमाज़ (ईद) के बाद से कर्बानी (कुरबानी) के तीन दिन हैं, ईद का पूरा दिन और उसके बाद वाले दो दिन अकसर फुक़हा का यही कौल है। इमाम शाफ़ई के नजदीक चार दिन हैं ईद को दिन और उसके बाद तशरीक़ के तीन दिन, तीन दिन के बारे में हज़रत उमर, हज़रत अली, हज़रत इब्ने अब्बास और हज़रत अबू हुरैरा के अक़वाल मौजूद हैं।

इमाम की नमाज से पहले कुर्बानी का सवाब हासिल नहीं होता फ़क़त गोश्त खाने के लिए ज़बीहा हो जाता है (उस गोश्त का खाना जाएज़ है लेकिन वह कुर्बानी नहीं है) मनसूर ने बिल असनाद रिवायत की है कि हज़रत बरअ बिन आज़िब ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने हम को खिताब किया और नहर के दिन नमाज़ के बाद फ़रमाया कि जिसने हमारी तरह नमाज़ पढ़ी और हमारी तरह कुर्बानी की। उसने सही कुर्बानी की और जिसने नमाज़ से पहले कुर्बानी कर दी वह गोश्त की एक बकरी है (कुर्बानी नहीं हुई)। हज़रत अबू बुरदा ने खड़े होकर अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह मैं तो नमाज़ को आने से पहले ही कुर्बानी कर चुका, मैं समझ गया था कि आज का दिन खाने पीने का है इसलिए मैंने कुर्बानी जल्द कर ली। खुद भी खाया और अपने पड़ोसियों को भी खिलाया।

हुजूर ने जवाब में इरशाद फ़रमाया वह गोश्त की बकरी हुई (कुर्बानी नहीं हुई)। हज़रत अबू बुरदा ने अर्ज़ किया कि मेरे पास बकरी का जज़अ (शशमाहा) जो गोश्त की दो बकरियों से बेहतर हैं क्या वह (कुर्बानी के लिए) काफ़ी हो जाएगा। हुजूर ने फ़रमाया सिर्फ तेरे लिए, तेरे बाद किसी और के लिए न होगा (यानी यह शशमाहा बच्चा की कुर्बानी सिर्फ़ तेरे लिए जायज़ है किसी और के लिए नहीं)।

असवद बिन क़ैस से मरवी है कि मैं नहर के दिन हुजूर की खिदमत में हाज़िर था हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम कुए ऐसे लोगों के पास से गुज़रे जिन्होंने नमाज़ से पहले ही जानवर ज़िबह कर लिए थे, हुजूर ने फरमाया कि जिसने नमाज़ से पहले जानवर ज़िबह किया उसे चाहिए कि वह दोबारा जानवर ज़बह करे और बाज़ हदीसों में इस तरह आया है कि हुजूर ने फरमाया जिसने नमाज़ से पहले जानवर ज़िबह किया उसे चाहिए वह उसकी जगह दूसरी कुर्बानी करे और जिसने ज़िबह नहीं किया है वह अब ज़िबह करे।

कुर्बानी के जानवर का रंग और उसकी अफ़ज़लियत

कुरबानी (कुर्बानी) का अफ़ज़ल जानवर सफ़ेद रंग का है, फिर सियाह रंग का। ख़ुद ज़िब्ह करना अफ़ज़ल है अगर खुद अच्छी तरह से ज़िबह न कर सकते हो तो ज़िबह के वक्त मौजूद रहें। कुर्बानी का तीसरा हिस्सा अपने लिए है और एक तीसरा हिस्सा अइज़्ज़ा व अहिब्बा के लिए और एक तीसरा हिस्सा खैरात कर दें। ऐबदार जानवर कुर्बानी के लिए न लें, यह ऐब पांच हैं।

1- सिंग या कान का बेशतर हिस्सा कटा हुआ होना (बाज़ अक़वाल में आया है कि जिस जानवर का एक तिहाई कान या सिंग न हो उसकी कुर्बानी दुरूस्त नहीं)।

2- मुंडा (यानी बग़ैर सींग का जानवर)

3- काना (जिसका काना होना नुमाया हो यानी एक आंख अंदर धसी हो)

4- इतना दुबला जिसकी हड्डियों में मींग भी न रही हो।

5- लंगड़ा ऐसा जिसका लंगड़ा पन ज़ाहिर और नुमाया हो यानी कमजोरी की वजह से जानवरों के साथ चरने न जा सके, चर न सकता हो या ऐसा बीमार जिसकी बीमारी नुमाया हो, खारशी हो (क्योंकि खारिश गोश्त को खराब कर देती है)।

रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मुक़ाबला, मुदाबिरा, खरक़ा, और शरक़ा की कुर्बानी से भी मना फरमाया है। मुक़बला वह जानवर जिसके कान का अगला हिस्सा काट कर लटकाकर छोड़ दिया गया और मुदाबिरा वह जानवर जिसके कान का पिछला हिस्सा काट दिया हो, ख़रक़ा वह जानवर है जिसके कान में दाग़ लगाने के बाइस सुराख़ हो गया हो, शरका उस जानवर को कहते हैं जिसके दाग लगने से उसका काम फट गया हो या मुमानियते तहरीमी नहीं है तन्ज़ीही है कि ऐसे जानवर की कुर्बानी से गुरेज़ करे अगर कुर्बानी कर दें तो जायज है।

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