Hanuman Jayanti 2020 Date And Time: हनुमान जी पर कब शुरू हुआ था शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव

Hanuman Jayanti 2020 Date And Time: हनुमान जयंती का पर्व (Hanuman Jayanti Festival) चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (Purnima) को मनाया जाता है, इस दिन हनुमान जी की विशेष पूज की जाती है। शास्त्रों के अनुसार एक बार हनुमान जी पर भी शनि की साढ़ेसाती प्रारंभ हुई थी। लेकिन शनिदेव ने तुरंत ही अपनी साढ़ेसाती का प्रभाव हनुमान जी पर से हटा लिया था। ऐसा क्यों हुआ था आइए जानते हैं...
हनुमान जी पर साढ़ेसाती का प्रभाव (Hanuman Ji Per Sade Sati Ka Pravhab)
शनि देव को न्याय का देवता और सूर्य पुत्र कहा जाता है। शनि देव को कठोर दंड देने वाला देवता माना जाता है और यदि उनकी साढ़ेसाती एक बार प्रारंभ हो जाए तो पूरे साढ़े सात साल बाद ही पीछा छोड़ती है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी के भक्तो को कभी भी शनि की साढ़ेसाती से डरने की जरूरत नहीं होती। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी अपने आराध्य देव भगवान श्री राम का स्मरण कर रहे थे।
उसी समय शनि देव हनुमान जी के पास आए और कर्कश स्वर में बोले कि मैं आपको सावधान करने के लिए आया हूं कि भगवान श्री कृष्ण ने जिस क्षण अपनी लीला का अंत किया था। उसी समय से पृथ्वीं पर कलयुग का प्रभुत्व हो गया था। इस कलयुग में कोई भी देवता पृथ्वीं पर नहीं रहते हैं। क्योंकि इस पृथ्वीं पर जो भी व्यक्ति रहता है। उस पर मेरी साढे़साती की दशा अवश्य ही प्रभावी रहती है और मेरी यह साढ़ेसाती की दशा आप पर भी प्रभावी होने वाली है।
शनि देव की बात सुनकर हनुमान जी ने उनसे कहा कि जो भी प्राणी या देवता भगवान श्री राम के चरणों में आश्रित होते हैं।उन पर तो काल का प्रभाव भी नहीं होता है। यहां तक की यमराज भी भगवान श्री राम के भक्त के सामने विवश हो जाते हैं। इसलिए आप मुझे छोड़कर कहीं और चले जाएं क्योंकि मेरे शरीर पर श्री राम के अतिरिक्त दूसरा कोई भी प्रभाव नहीं डाल सकता। हनुमान जी की बात सुनकर शनिदेव ने कहा कि मैं सृष्टिकर्ता के विधान से विवश हूं।
आप भी इसी पृथ्वीं पर रहते हैं तो आप मेरे प्रभुत्व से कैसे बच सकते हैं।आप पर मेरी साढ़ेसाती आज इसी समय से प्रभावी हो रही है। इसलिए मैं आज और इसी समय से आपके शरीर पर आ रहा हूं।इसे कोई भी टाल नहीं सकता है। शनि देव की बात सुनकर हनुमान जी बोले कि आपको आना ही तो आ जाइए मैं आपको नहीं रोकूंगा। यह सुनकर शनिदेव हनुमान जी के मस्तिष्क में जाकर बैठ गए। जिसके कारण हनुमान जी के मस्तक में खुजली होने लगी।
हनुमान जी ने अपनी उस खुजली को मिटाने के लिए बड़ा सा पर्वत उठाकर अपने सिर पर रख लिया था।तब शनि देव उस पर्वत से दबकर घबराते हुए हनुमान जी से बोले कि आप यह क्या कर रहे हैं तब हनुमान जी बोले कि जिस तरह आप सृष्टि कर्ता के विधान से विवश हैं उसी प्रकार मैं भी अपने स्वाभाव से विवश हूं।मैं अपने मस्तक की खुजली इसी प्रकार से मिटाता हूं। आप अपना काम करते रहिए मैं अपना काम करता हूं। यह बोलकर हनुमान जी ने एक और बड़ा सा पर्वत अपने मस्तक पर रख लिया।
पर्वतों से दबे हुए शनिदेव जब पूरी तरह से परेशान हो गए थे तो वह हनुमान जी से बोले कि आप इन पर्वतों को नीचे उतारिए। मैं आपसे संधि करने के लिए तैयार हूं।शनिदेव के ऐसा कहने पर हनुमान जी ने एक और पर्वत उठाकर अपने सिर पर रख लिया था। तीसरे पर्वत से दबकर शनि देव चिल्लाने लगे थे और बोले कि मुझे छोड़ दो मैं कभी भी आपके समीप नहीं आऊंगा। लेकिन फिर भी हनुमान जी नहीं माने और एक पर्वत और उठाकर अपने सिर पर रख लिया। जब शनिदेव से सहन नहीं हुआ तो हनुमान जी से विनती करने लगे और कहने लगे कि मुझे छोड़ दो पवनपुत्र मैं आप तो क्या उन लोगों के समीप भी नहीं जाऊंगा जो आपका स्मरण करते हैं।कृपया करके आप मुझे अपने सिर से नीचे उतर जाने दीजिए। शनिदेव के यह वचन सुनकर हनुमान जी ने अपने सिर से पर्वतों को हटाकर उन्हें मुक्त कर दिया था। तब से शनिदेव हनुमान जी के समीप नहीं जाते हैं और हनुमान जी के भक्तो को भी नहीं सताते हैं।
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