Hanuman Jayanti 2020 Festival : जानिए कैसे हुआ था हनुमान जी का जन्म

Hanuman Jayanti 2020 Festival : जानिए कैसे हुआ था हनुमान जी का जन्म
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Hanuman Jayanti 2020 Festival : हनुमान जयंती का पर्व (Hanuman Jayanti Festival) हनुमान जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी का जन्म (Hanuman Ji Ka Janam) कैसे हुआ था, अगर नहीं तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे तो चलिए जानते हैं कैसे हुआ था हनुमान जी का जन्म।

Hanuman Jayanti 2020 Festival : हनुमान जयंती (Hanuman Jayanti) के दिन श्री राम भक्त हनुमान जी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन को हनुमान जी के जन्मोत्सव (Hanuman Janam Utsav) के रूप में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी का जन्म कैसे हुआ था। किस प्रकार से उन्होंने वानर राज केसरी और माता अंजना के यहा जन्म लिया था।

हनुमान जी जन्म कैसे हुआ था (Hanuman Ji ka Janam Kaise Hua Tha)

एक बार वानर राज केसरी संज्ञा वंदन के लिए वन में जाते हैं। तब ही वह देखते हैं कि उनके स्थान पर महार्षि भारद्वाज और अन्य ऋषि मुनि हवन कर रहे हैं। लेकिन तब ही उसी श्रण एक दैत्य जंगली हाथी का रूप धारण कर वहां पर आ जाता है और ऋषि मुनियों को मारना प्रारंभ कर देता है। जब महाराज केसरी उसे ऐसा करते हुए देखते हैं तो उन्हें यह समझते हुए देर नहीं लगती है कि यह कोई सामान्य पशु नहीं है। बल्कि एक राक्षस है जो इस शांत स्वाभाव वाले पशु का रूप धारण कर ऋषियों के प्राण हरने के लिए आया है।

वह तुरंत ही उससे युद्ध करने लगते हैं और उसे परास्त भी कर देते हैं। इसके बाद इस घटना से प्रसन्न होकर महार्षि भारद्वाज वानर राज को वरदान मांगने के लिए कहते हैं। वानर राज उन्हें न नहीं कर पाते हैं। अत: वह कहते हैं कि उन्हें ऐसा पुत्र चाहिए।जो महादेव के समान बलवान,पवन के समान पराक्रमी तथा ब्रह्मा के समान वेदो का ज्ञाता हो।उसके नाम मात्र से भी शत्रुओं का शमन और जग का कल्याण हो।यह सब सुनकर त्रिकाल दर्शी भारद्वाज मन ही मन प्रसन्न होते हैं। क्योंकि वह जानते थे कि इन सभी चीजों के पीछे भगवान की लीला छिपा हुई है।


जिसके बाद वह तथास्तु कहकर वहां से प्रस्थान कर जाते हैं। उधर बैकुंठ वासी भगवान विष्णु महाबली गरूड़ को अयोध्या जाकर उनके कार्य को पूरा करने का आदेश देते हैं। गरूड़ देव पवित्र अयोध्या नगरी में पहुंचकर देखते हैं कि राजा दशरथ अपनी अन्य पत्नियों सहित पुत्र कामेष्ठी यज्ञ समाप्त कर चुके थे।

जिसके बाद गुरु देव खीर का प्रसाद तीनों रानियों में वितरण करने लगते हैं। जिससे वह विष्णु जी के छठे अवतार को जन्म दे सके। इतने में ही गरूड़ देव उस खीर का पात्र लेकर उड़ जाते हैं। वह उस पात्र को तपस्या कर रही वानर राज केसरी की पत्नी अंजनी के हाथ में रखकर अदृश्य हो जाते हैं और वह भी इसे देवताओ का आशीष मानकर ग्रहण कर लेती हैं। तब ही अचानक एक तेज हवा को झोका उनसे टकरार कर उलट जाता है। जिससे देवी अंजना क्रोधित हो जाती हैं और उसे कोई अदृश्य राक्षस जानकर श्राप देने लगती हैं।

लेकिन उसी क्षण वहां पर पवन देव प्रकट हो जाते हैं।वह उन्हें सारा घटना क्रम समझाते हैं और कहते हैं कि वह जल्द ही रूद्र अवतार को जन्म देने वाली हैं। करीब नौ माह बीत जाने के बाद चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न की मंगल बेला आती है और इसी दिन वानर राज केसरी के घर साक्षात रूद्र यानी मारूति जन्म लेते हैं। इस प्रकार से भगवान शिव के ग्यारहवें रूद्र अवतार के रूप में हनुमान जी का जन्म वानर राज केसरी और माता अंजनी के यहां हुआ था।

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