Hanuman Jayanti 2020 Ki Kab Hai : जानिए क्या है हनुमान जी की नव निधि का रहस्य, क्यों कहते हैं अष्ट सिद्ध‌ि नव निधि के दाता

Hanuman Jayanti 2020 Ki Kab Hai : जानिए क्या है हनुमान जी की नव निधि का रहस्य, क्यों कहते हैं अष्ट सिद्ध‌ि नव निधि के दाता
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Hanuman Jayanti 2020 Ki Kab Hai : हनुमान जयंती (Hanuman Jayanti) के दिन को उनके जन्म दिवस के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। हनुमान जी के पास कई चमत्कारिक शक्तियां हैं। बजरंग बली (Bajrang Bali) को अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता कहा जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्या वह नौ निधि अगर नहीं तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे तो चलिए जानते हैं हनुमान जी की नव निधि का रहस्य।

Hanuman Jayanti 2020 Ki Kab Hai : हनुमान जंयती चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के मनाई जाती है। इस दिन हनुमान जी(Lord Hanuman) के दर्शन मात्र से ही जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी (Hanuman Ji) के पास आठ सिद्धि और नौ निधि हैं। अगर कोई व्यक्ति हनुमान जी की आराधना करके उन चमत्कारिक नौ निधियों को प्राप्त कर लेता है तो जीवन के सभी सुखों को प्राप्त कर सकता है।

हनुमान जी की नव निधि का रहस्य (Hanuman Ji Ki Nav Nidhi Ka Rahasya)

हनुमान जी को प्राप्त नौ निधियो में पहली निधि है पद्म निधि, दूसरी निधि है महापद्म निधि, तीसरी नील निधि, चौथी मुकुंद निधि, पांचवी नंद निधि, छठी मकर निधि, सातवीं कच्छप निधि, आठवीं शंख निधि और नवीं खर्व निधि यानी मिश्र निधि। माना जाता है कि नव निधियों में केवल कर्व निधि को छोड़कर शेष आठ निधियां पद्मिनी नामक विद्या के सिद्ध होने पर प्राप्त हो जाती है। परंतु इन्हें प्राप्त करना सरल नही है।

पद्म निधि के लक्षणों से युक्त मनुष्य सात्विक गुणयुक्त होता है। तो उसकी कमाई गई संपदा भी सात्विक होती है। सात्विक तरीके से कमाई गई संपदा पीढ़ियों को तार देती है। इसका उपयोग साधक के परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। सात्विक गुणों से संपन्न व्यक्ति स्वर्ण चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है।


महाद्म निधि यह निधि भी पद्म निधी की तरह ही सात्विक ही है। लेकिन इसका प्रभाव सात पीढ़ियों के बाद नहीं रहता। इस निधि से संपन्न प्राणी भी दानी होता है। लेकिन वह इस निधि को प्राप्त करने वाला व्यक्ति सात्विक गुणों से परिपूर्ण रहता है।

नील निधि इस निधि में सत्व और रज गुण दोनों ही मिश्रित होते हैं। ऐसी निधि व्यापार द्वारा ही प्राप्त होती है। इसलिए इस निधि से संपन्न प्राणी में दोनों ही गुणों की प्रधानता होती है। लेकिन इस निधि को मधूर स्वाभाव वाली निधि कहा गया है। ऐसा व्यक्ति जनहित में काम करता है और इस तरह इस निधि का प्रभाव तीन पीढ़ियों तक रहता है।

मुकुंद निधि इस निधि में पूर्णत: रजोगुण की प्रधानता रहती है। इसलिए इसे राजसी स्वाभाव वाली निधि कहा जाता है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति या साधक का मन भोगादि में ही लगा रहता है। यह निधि एक पीढ़ी के बाद नष्ट हो जाती है।

नंद निधि इसी निधि में रज और तम गुणों का मिश्रण होता है माना जाता है कि यह निधि साधक को लंबी आयु व निरंतर तरक्की प्रदान करती है। यह व्यक्ति कुटूंब की नींव होता है। तारीफ से खुश होता है। यह निधि साधको को लंबी आयु व निरंतर तरक्की प्रदान करती है।

मकर निधि इस निधि को तामसी निधि कहा गया है। इस निधि से संपन्न साधक अस्त्र शस्त्र को संग्रह करने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति का राजा और शासन में दखल होता है। वह शत्रुओं पर भारी होता है और युद्ध के लिए तैयार रहता है। लेकिन उसकी मौत भी इसी कारण होती है।


कच्छप निधि इसका साधक अपनी संपत्ति को छुपाकर रखता है न तो स्वंय उसका उपयोग करता है न करने देता है। वह सांप की तरह उसकी रक्षा करता है और किसी को भी अपनी संपत्ति के पास भटकने भी नहीं देता।

शंख निधि इस निधि को प्राप्त व्यक्ति स्वंय को ही चिंता और स्वंय के ही भोग की इच्छा करता है। वह कामता तो बहुत है लेकिन उसके परिवार वाले गरीबी में ही जीते हैं। ऐसा व्यक्ति धन का उपयोग स्वंय के सुख भोग के लिए करता है। जिससे उरका परिवार दरिद्रता में जीवन गुजारता है।

खर्व निधि इसे मिश्रित निधि भी कहते हैं नाम के अनुरूप ही यह निधि अन्य आठ निधियों का सम्मिश्रण होती है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति को मिश्रित स्वाभाव का कहा गया है। उसके कार्य और स्वाभाव के बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। उसका जीवन व व्यवहार उतार चढ़ाव भरा रहता है। इस निधि से प्रभावित व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक जा सकता है और वह अनिश्चयी स्वाभाव का होता है।

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