International Yoga Day 2019: जानें उपनिष्दों के अनुसार योग के प्रकार, क्या है कुंडलिनी योग और महर्षि पतंजलि ने अपने ग्रंथ में योग के बारे में क्या लिखा है

International Yoga Day 2019: जानें उपनिष्दों के अनुसार योग के प्रकार, क्या है कुंडलिनी योग और महर्षि पतंजलि ने अपने ग्रंथ में योग के बारे में क्या लिखा है
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International Yoga Day 2019 : हर साल 21 जून 2019 (21 June 2019) को योगा दिवस पूरी दूनिया (International Yoga Day 2019) में मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उपनिष्दों में योग के कितने प्रकारों (Upanishad Me Yog ke Prakar) के बारे में बताया है, क्या है कुंडलिनी योग (Kundalini Yoga) और क्या कहा है महार्षि पतांजलि (Maharishi patanjali) ने अपने ग्रंथ योग सूत्र (Granth Yog sutra) में योग को लेकर ।अगर आप इनके बारे में नहीं जानते तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे

International Yoga Day 2019: योग एक ऐसा माध्यम है जो न केवल शरीर को बल्कि दिमाग को भी स्वस्थ रखता है। योग के फायदे कई साल पहले ही बता दिए गए थे। जो व्यक्ति नियमित रूप से योग करता है। उसे किसी भी प्रकार का रोग नही होता और उसका शरीर हमेशा स्वस्थ रहता है। योग को न केवल आज भारत में बल्कि दूनिया में भी महत्व दिया जाता है। इसलिए हर साल 21 जून 2019 (21 June 2019) को योगा दिवस पूरी दूनिया (International Yoga Day 2019) में मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उपनिष्दों में योग के कितने प्रकारों (Upanishad Me Yog ke Prakar) के बारे में बताया है, क्या है कुंडलिनी योग (Kundalini Yoga) और क्या कहा है महार्षि पतांजलि (Maharishi patanjali) ने अपने ग्रंथ योग सूत्र (Granth Yog sutra) में योग को लेकर ।अगर आप इनके बारे में नहीं जानते तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे तो चलिए जानते हैं उपनिष्दों में योग के प्रकार, कुंडलिनी योग और महार्षि पतांजलि के ग्रंथ योग सूत्र (Maharishi patanjali Granth Yog sutra ) के बारे में...


उपनिष्दों के अनुसार योग के प्रकार (Upanishad Me Yog ke Prakar)

1.राजयोग:- यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि यह पतंजलि के राजयोग के आठ अंग हैं। इन्हें अष्टांग योग भी कहा जाता है।

2.हठयोग:- षट्कर्म, आसन, मुद्रा, प्रत्याहार, ध्यान और समाधि- ये हठयोग के सात अंग है, लेकिन हठयोगी का जोर आसन एवं कुंडलिनी जागृति के लिए आसन, बंध, मुद्रा और प्राणायम पर अधिक रहता है। यही क्रिया योग है।

3.लययोग:- यम, नियम, स्थूल क्रिया, सूक्ष्म क्रिया, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। उक्त आठ लययोग के अंग है।

4.ज्ञानयोग :- साक्षीभाव द्वारा विशुद्ध आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना ही ज्ञान योग है। यही ध्यानयोग है।

5.कर्मयोग:- कर्म करना ही कर्म योग है। इसका उद्येश्य है कर्मों में कुशलता लाना। यही सहज योग है।

6.भक्तियोग : - भक्त श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन रूप- इन नौ अंगों को नवधा भक्ति कहा जाता है। भक्ति योगानुसार व्यक्ति सालोक्य, सामीप्य, सारूप तथा सायुज्य-मुक्ति को प्राप्त होता है


कुंडलिनी योग (Kundalini Yoga)

कुंडलिनी शक्ति सुषुम्ना नाड़ी में नाभि के निचले हिस्से में सोई हुई अवस्था में रहती है, जो ध्यान के गहराने के साथ ही सभी चक्रों से गुजरती हुई सहस्रार चक्र तक पहुंचती है। ये चक्र 7 होते हैं:- मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार। 72 हजार नाड़ियों में से प्रमुख रूप से तीन है: इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना। इड़ा और पिंगला नासिका के दोनों छिद्रों से जुड़ी है जबकि सुषुम्ना भ्रकुटी के बीच के स्थान से।

स्वरयोग इड़ा और पिंगला के विषय में विस्तृत जानकारी देते हुए स्वरों को परिवर्तित करने, रोग दूर करने, सिद्धि प्राप्त करने और भविष्यवाणी करने जैसी शक्तियाँ प्राप्त करने के विषय में गहन मार्गदर्शन होता है। दोनों नासिका से सांस चलने का अर्थ है कि उस समय सुषुम्ना क्रियाशील है। ध्यान, प्रार्थना, जप, चिंतन और उत्कृष्ट कार्य करने के लिए यही समय सर्वश्रेष्ठ होता है।


महर्षि पतंजलि का ग्रंथ योग सूत्र (Maharishi Patanjali Granth Yog sutra)

वेद, उपनिषद्, भगवद गीता, हठ योग प्रदीपिका, योग दर्शन, शिव संहिता और विभिन्न तंत्र ग्रंथों में योग विद्या का उल्लेख मिलता है। सभी को आधार बनाकर पतंजलि ने योग सूत्र लिखा। योग पर लिखा गया सर्वप्रथम सुव्यव्यवस्थित ग्रंथ है- योगसूत्र। योगसूत्र को पांतजलि ने 200 ई.पूर्व लिखा था। इस ग्रंथ पर अब तक हजारों भाष्य लिखे गए हैं, लेकिन कुछ खास भाष्यों का यहां उल्लेख लिखते हैं।

व्यास भाष्य: व्यास भाष्य का रचना काल 200-400 ईसा पूर्व का माना जाता है। महर्षि पतंजलि का ग्रंथ योग सूत्र योग की सभी विद्याओं का ठीक-ठीक संग्रह माना जाता है। इसी रचना पर व्यासजी के 'व्यास भाष्य' को योग सूत्र पर लिखा प्रथम प्रामाणिक भाष्य माना जाता है। व्यास द्वारा महर्षि पतंजलि के योग सूत्र पर दी गई विस्तृत लेकिन सुव्यवस्थित व्याख्या।

तत्त्ववैशारदी : पतंजलि योगसूत्र के व्यास भाष्य के प्रामाणिक व्याख्याकार के रूप में वाचस्पति मिश्र का 'तत्त्ववैशारदी' प्रमुख ग्रंथ माना जाता है। वाचस्पति मिश्र ने योगसूत्र एवं व्यास भाष्य दोनों पर ही अपनी व्याख्या दी है। तत्त्ववैशारदी का रचना काल 841 ईसा पश्चात माना जाता है।

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