Jagannath Rath Yatra 2020 Date And Time : जगन्नाथ यात्रा 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, रथ के प्रकार, कैसे निकली जाती है रथ यात्रा और कथा

Jagannath Rath Yatra 2020 Date And Time : जगन्नाथ यात्रा 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, रथ के प्रकार, कैसे निकली जाती है रथ यात्रा और कथा
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Jagannath Rath Yatra 2020 Date And Time: जगन्नाथ यात्रा में पहले रथ यात्रा गुंडिचा मंदिर तक जाती है और इसके बाद वापस जगन्नाथ मंदिर में जाती है जगन्नाथ यात्रा 2020 में कब है (Jagannath Yatra 2020 Mai Kab Hai), जगन्नाथ यात्रा का शुभ मुहूर्त (Jagannath Yatra Shubh Muhurat), रथ के प्रकार (Rath Ke Prakar), कैसे निकली जाती है रथ यात्रा (Kaise Nikali Jati Hai Rath Yatra)और भगवान जगन्नाथ की कथा (Lord Jagannath Story)

Jagannath Rath Yatra 2020 Date And Time : जगन्नाथ यात्रा उड़ीसा के पुरी (Puri) में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण उत्सव माना जाता है। इस दिन बलराम, भगवान श्री कृष्ण और सुभद्रा को रथ पर बैठाकर उन्हें यात्रा कराई जाती है। इस दौरान रथ को खिंचने के लिए देशभर से लोग यहां पर आते हैं। माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ (Bhagwan Jagannath) के रथ को खिंचने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं जगन्नाथ यात्रा 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, रथ के प्रकार, कैसे निकली जाती है रथ यात्रा और कथा।

जगन्नाथ यात्रा 2020 तिथि (Jagannath Yatra 2020 Tithi)

23 जून 2020

जगन्नाथ यात्रा 2020 शुभ मुहूर्त (Jagannath Yatra 2020 Subh Muhurat)

द्वितीया तिथि प्रारम्भ - 11 बजकर 59 मिनट से (22 जून 2020)

द्वितीया तिथि समाप्त - सुबह 11 बजकर 19 मिनट तक (23 जून 2020)

जगन्नाथ यात्रा का महत्व (Jagannath Yatra Ka Mahatva)

जगन्नाथ मंदिर दुनिया का सबसे ऊंचा और भव्य मंदिर है। जो लगभग 4 लाख वर्ग फुट क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। पुरी उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जहां भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। पुरी में बना जगन्नाथ मंदिर हिंदूओं के चार धामों में से एक माना जाता है। श्री जगन्नाथ जी यात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ पुरी में आरंभ होती है। यह रथ यात्रा पुरी का प्रधान पर्व भी माना जाता है। इस रथ यात्रा में भाग लेकर रथ को छूने और मोटे- मोटे रस्सों से खीचने के लिए देश के कोने- कोने लाखों बाल, वृद्ध, महिलाएं और युवा आते हैं।

भगवान जगन्नाथ के भक्तों की ऐसा मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है और इस दौरान भक्तों को सीधे प्रतिमाओं तक पहुंचने का मौका भी मिलता है। यह दस दिवसीय पर्व होता है। जिसकी तैयारी अक्षय तृतीया के दिन से ही भगवान श्री कृष्ण, भगवान बलराम और मां सुभद्रा के रथ निर्माण से शुरु हो जाती है। शास्त्रों और पुराणों में भी इस रथ यात्रा की महत्वता को स्वीकार किया गया है। पुरी यात्रा के लिए बलराम, श्री कृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग- अलग रथों का निर्माण किया जाता है। रथयात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ होता है। उसके बाद देवी सुभद्रा का रथ और अंत में जगन्नाथ जी का रथ होता है।

जगन्नाथ यात्रा के रथ का रूप (Jagannath Yatra Ke Rath Ka Roop)

1.जगन्नाथजी के रथ को 'गरुड़ध्वज' या 'कपिलध्वज' कहा जाता है।

2. बलराम जी के रथ को 'तलध्वज' कहा जाता है।

3.सुभद्रा जी का रथ "देवदलन" व "पद्मध्वज' कहा जाता है।

कैसे निकाली जाती है रथ यात्रा (Kaise Nikali Jati Hai Jagannath Yatra)

रथ यात्रा की पहांडी परंपरा

इस परंपरा के अनुसार बलभद्र, सुभद्रा एवं भगवान श्रीकृष्ण को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक की यात्रा कराई जाती है। पुराणों के अनुसार गुंडिचा को भगवान श्री कृष्ण की परम भक्त माना जाता था। इसी कारण से हर साल बलभद्र, सुभद्रा एवं भगवान श्रीकृष्ण गुंडिचा से मिलने के लिए यहां पर आते हैं।

रथ यात्रा की छेरा पहरा परंपरा

इस परंपरा के अनुसार पुरी के प्रधान गजपति महाराज सोने की झाडू से रथ को साफ करते हैं। क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने गरीब सुदामा को भी अपने गले से लगाया था। इसलिए उनके सामने प्रत्येक व्यक्ति बराबर है। इसलिए कोई गरीब हो या राजा वह भगवान के मंदिर में एक समान ही है। इस परंपरा को रथ यात्रा के दौरान दो बार निभाया जाता है। पहले तो जब रथ को गुंडिचा मंदिर पहुंचाया जाता है और दूसरी बार जब रथा यात्रा को जगन्नाथ मंदिर तक वापस लाया जाता है। गुंडिचा मंदिर पहुंचने के बाद भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र जी को पूरे विधि विधान के साथ स्नान कराकर उन्हें साफ वस्त्र धारण कराए जाते हैं। जगन्नाथ यात्रा के पांचवें दिन हेरा पंचमी मनाई जाती है। इस दिन मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को ढुंढती हुई आती हैं और भगवान मंदिर से निकलकर यात्रा पर चले जाते हैं।

जगन्नाथ यात्रा की कथा (Jagannath Yatra Ki Katha)

एक कथा के अनुसार एक बार सभी गोपियों ने चंद्रमा की पत्नी रोहिणी जी से भगवान श्री कृष्ण की रासलीला में जाने के लिए कहा। उस समय सुभद्रा भी उस स्थान पर मौजूद थीं। इसी वजह से रोहिणी जी ने भगवान श्री कृष्ण की रास लीला के बारे में कुछ भी कहना ठीक नहीं समझा। सुभद्रा के बाहर जाने पर उनसे कहा गया कि वह बाहर ही रहें और यह ध्यान रखें कि कोई भी अंदर न आ पाए। उसी समय श्री कृष्ण और बलराम जी वहां पर आ जाते हैं और सुभद्रा के पास खड़े होकर रोहिणी की बातें सुनने लगते हैं।

उसी समय नारद जी भी वहां पर आ जाते हैं और तीनों भाई बहनों को रोहिणी की बातें सुनते हुए देख लेते हैं। इसके बाद नारद जी ने तीनों से आग्रह किया कि वह इसी रूप में उन्हें देवीय दर्शन दें। इसके बाद तीनों ने मिलकर नारद जी के इस आग्रह को स्वीकार किया उनकी इच्छा पूर्ण की। इसी कारण जगन्नथ पुरी के इस मंदिर में बलभद्र (बलराम), सुभद्रा एवं जगन्नाथ जी ( कृष्ण जी) जी इसी रूप में दर्शन देते हैं। जिस समय जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है उस समय इन तीनों को अलग- अलग रथ पर बैठाया जाता है।में निकल गए हैं।

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