Janmashtami 2019 : जनिए भगवान श्री कृष्ण का नाम रणछोड़ कैसे पड़ा

Janmashtami 2019 जन्माष्टमी को भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव (Shri Krishna Janmotsav) के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के मौके पर अनेंको कथाओं और लीलाओं का मंचन भी किया जाता है। वैसे तो श्री कृष्ण को अनेकों नामों से जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण के उन अनेकों नामों मे से उनका एक नाम रणछोड़ भी है। भगवान श्री कृष्ण (Shri Krishna) का यह नाम कैसे पड़ा । इसके पीछे भी एक रोचक कथा है। जन्माष्टमी के इस खास मौके पर आज हम आपको श्री कृष्ण के रणछोड़ नाम के पीछे का कारण बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं कि कैसे पड़ा भगवान श्री कृष्ण का नाम रणछोड़...
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कैसे पड़ा भगवान श्री कृष्ण का नाम रणछोड़ (Kaise Pada Bhagwan Shri Krishna Ka Naam Ranchod)
भगवान कृष्ण को रणछोड़ नाम से भी जाना जाता है।रणछोड़ का अर्थ होता है युद्ध को छोड़कर भागने वाला। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहा गया। भगवान श्री कृष्ण यद्ध भूमि को छोड़कर क्यों भागे। एक कथा के अनुसार एक बार कंस के ससुर जो मगध के राजा भी थे।
उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को युद्ध के लिए चुनौती दी, लेकिन भगवान श्री कृष्ण जरासंध से युद्ध नहीं करना चाहते थे। भगवान श्री कृष्ण यह अच्छी तरह से जानते थे कि मथुरा में जरासंध से युद्ध नहीं किया जा सकता।
इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपने बड़े भाई बलराम और अपने अन्य साथियों को भी जरासंध के साथ युद्ध करने से रोक दिया। जब भगवान श्री कृष्ण द्वारका की और जा रहे थे तो उस समय जरासंध ने उन्हें वहां से भागते हुए देख लिया।
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जिसके बाद जरासंध ने भगवान श्री कृष्ण को रणछोड़ कहकर पुकारना शुरू कर दिया तब ही से भगवान श्री कृष्ण का एक और नाम पड़ गया और उन्हें रणछोड़ के नाम से जाना जाने लगा। भगवान श्री कृष्ण और बलराम काफी दूर तक भागे। जिसके बाद वे दोनों काफी थक गए थे।
भगवान श्री कृष्ण और बलराम थकने के बाद प्रवर्शत पर्वत पर आराम करने के लिए रुके। प्रवशर्त पर्वत पर हमेशा बारिश होती रहती थी। जब भगवान श्री कृष्ण और बलराम भागे तो जरासंध ने अपने सैनिक उनको ढुंढने के लिए उनके पीछे लगा दिए।
जरासंध के सैनिकों ने उसे यह सूचना दी की कृष्ण और बलराम प्रवर्शत पर्वत पर छिपे हुए हैं। इसके बाद जरासंध ने अपने सैनिको को यह आदेश दिया कि वह उस प्रवर्शत पर्वत पर आग लगा दें।
जरासंध के सैनिकों ने उसकी आज्ञा पाकर ऐसा ही किया और प्रवर्शत पर्वत पर आग लगा दी। जब उस पर्वत पर आग लग गई तो भगवान श्री कृष्ण और बलराम 44 फीट ऊंचे पर्वत से कूद गए थे और जिसके बाद वे दोनों द्वारका पहुंचे। भगवान श्री कृष्ण ने द्वारका जाकर एक नई नगरी बसाई।
इसलिए इस नगरी को रणछोड़ जी महाराज के स्थान के नाम से भी जाना जाता है। द्वारका नगरी में एक भव्य मंदिर का निर्माण भी हुआ था। जिसे रणछोड़ जी महाराज के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के लाखों भक्त आते हैं।
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