Kalashtami 2019 : कालाष्टमी व्रत कथा, मान्यता और बाबा भैरवनाथ से रोचक तथ्य

Kalashtami 2019 : कालाष्टमी कब है, (Kalashtami kab Hai) क्या है इसकी मान्यता, व्रत की कथा और रोचक तथ्य अगर आपको इन सब बातों की जानकारी नहीं हैं तो हम आपको इसकी सभी जानकारी देंगे। इस दिन विधिवत की गई पूजा आपके जीवन के सभी कष्ट दूर कर देंगे। यह पर्व प्रत्येक माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी की तिथि पर भगवान भैरव (Bhairava) की विशेष रूप से साधना आराधना की जाती है। तंत्र-मंत्र के साधकों के अनुसार भगवान भैरव को परम शक्तिशाली रुद्र बताया गया है। इन्हें देवाधिदेव भगवान शिव का अवतार माना गया है। भगवान भैरव कि साधना करने वाले भक्त पर किसी भी प्रकार की उपरी बाधा, भूत-प्रेत, जादू-टोने आदि का खतरा नहीं रहता है, किसी भी बूरी नकारात्मक शक्ति का प्रभाव नही पड़ेता और जीवन में हमेशा सुख-समृद्धि रहती है।
कालाष्टमी व्रत कथा
शिव पुराण के अनुसार कि देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से बारी-बारी से पूछा कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है। जवाब में दोनों ने स्वयं को सर्व शक्तिमान और श्रेष्ठ बताया, जिसके बाद दोनों में युद्ध होने लगा। इससे घबराकर देवताओं ने वेदशास्त्रों से इसका जवाब मांगा। उन्हें बताया कि जिनके भीतर पूरा जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है वह कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव ही हैं।
ब्रह्मा जी यह मानने को तैयार नहीं थे और उन्होंने भगवान शिव के बारे में अपशब्द कह दिए, इससे वेद व्यथित हो गए। इसी बीच दिव्यज्योति के रूप में भगवान शिव प्रकट हो गए। ब्रह्मा जी आत्मप्रशंसा करते रहे और भगवान शिव को कह दिया कि तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो और ज्यादा रुदन करने के कारण मैंने तुम्हारा नाम 'रुद्र' रख दिया, तुम्हें तो मेरी सेवा करनी चाहिए।
इस पर भगवान शिव नाराज हो गए और क्रोध में उन्होंने भैरव को उत्पन्न किया। भगवान शंकर ने भैरव को आदेश दिया कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो। यह बात सुनकर भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के वही 5वां सिर काट दिया, जो भगवान शिव को अपशब्ध कह रहा था।
इसके बाद भगवान शंकर ने भैरव को काशी जाने के लिए कहा और ब्रह्म हत्या से मुक्ति प्राप्त करने का रास्ता बताया। भगवान शंकर ने उन्हें काशी का कोतवाल बना दिया, आज भी काशी में भैरव कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। विश्वनाथ के दर्शन से पहले इनका दर्शन होता है, अन्यथा विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है।
कालाष्टमी की मान्यता
भैरव जी की पूजा व भक्ति भूत, पिशाच एवं काल की बुरी शक्तियों से दूर रखती है। काल भैरव गुस्से के देवता माने जाते है। इनके पूजन से न केवल नकारात्मक शक्ति बल्कि सुख- समृद्धि भी मिलती है। जो व्यक्ति सच्चे मन से भैरव जी की पूजा करता है और शुद्ध मन से उपवास करता है, उनके सभी कष्ट कट जाते हैं। साथ ही रुके हुए कार्य अपने आप बनते चले जाते हैं। खास ध्यान रखना चाहिए कि उपवास अष्टमी में ही किया जाए। इस दिन काल भैरव की विेशेष कृपा प्राप्त होती है। यह दिन तंत्र- साधना के लिए भी बेहद खास माना जाता है। जो भी साधक सिद्धि प्राप्त करना चाहता है उसके लिए ये दिन विशेषफलदायी है। इस दिन की गई साधना कभी बेकार नहीं जाती।
इस दिन व्रत करने का भी विधान है जो व्यक्ति सच्चे मन से भैरव जी की पूजा और ध्यान करता है। वह जीवन में सभी प्रकार के सुख भोगता है।
भैरव भगवान शिव जी के ही रौद्र रूप माने जाते हैं, लेकिन कहीं-कहीं इन्हें शिवजी का पुत्र भी कहा गया है। भगवान शिव के बताए मार्ग पर चलने वाले को ही भी भैरव ही कहा जाता हैं। भैरव की बस उपासना करने से ही आपके सारे भय और अवसाद का नाश हो सकता है और तो और इनकी उपासना से इंसान को अदम्य साहस की प्राप्ति भी होती है। क्रुर ग्रह शनि और राहु की बाधाओं से मुक्ति के लिए भैरव की पूजा काफी अचूक होती है।
काल भैरव से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
1.काल भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध से हुई हैं। इसलिए उन्हें रुद्रांश या शिवांश भी कहा जाता हैं।
2. भगवान काल भैरव ने ब्रह्मा जी के मस्तक को अपने नाखून से काट दिया था। जिस कारण से उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप भी लगा था।
3. भगवान काल भैरव भगवान शिव के ही रूप हैं। साथ ही इनको शिव के गणों में भी शामिल किया जाता हैं। काल भैरव मां भगवती दुर्गा के पुजारी हैं। वे सदैव देवी दुर्गा का अनुचारण करते हैं।
4. भगवान शिव ने भगवान काल भैरव को काशी का कोतवाल बनाया हैं।
5. भगवान शिव ने ब्रह्म हत्या के कारण ही उन्हें काशी का कोतवाल निर्धारित किया था।
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