जब धरती पर उतरता है पूरा देवलोक, जानिए कैसे मनाई जाती है देव दीपावली

जब धरती पर उतरता है पूरा देवलोक, जानिए कैसे मनाई जाती है देव दीपावली
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कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima 2018) को ही देव दीपावली (Dev Deepawali) कहा जाता है। देव दीपावली की शाम लाखों दिए गंगा किनारे जलते हैं। गंगा के घाट की छटा देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी आते हैं।

कार्तिक मास (Kartik Maas 2018) में दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima 2018) के दिन देव दीपावली (Dev Deepawali) मनाई जाती है। इस बार कार्तिक पूर्णिमा की देव दीपावली 23 नवंबर 2018 को मनाई जाएगी। देव दीपावली यानी देवी- देवताओं की दीपावली जिसमें मंदिरों और गंगा घाटों पर दीप दान किए जाते हैं। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों मनाई जाती है देव दीपावली-

पृथ्वी लोक पर आते हैं सभी देवता

हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार है कार्तिक पूर्णिमा की देव दीपावली के इस दिन सभी देवता पृथ्वी लोक पर आते हैं। इस दिन दीप दान करने से सकारात्‍मक ऊर्जा मिलती है। देव दीपावली के दिन दीप दान से करोड़ों जन्मों का फल मिलता है इससे व्यक्ति की आयु बढ़ती है।

कार्तिक पूर्णिमा इस बार 23 नवंबर को जिसमें चंद्रो दय के दर्शन होना अति लाभकारी बताया जाता है। इस बार कार्तिक पूर्णिमा पर चांद पिछले 70 साल के इतिहास से भी सबसे बड़ा चांद होगा। इसको 'फुल मून' कहा जाता है, जिसकी भव्यता देखते ही बनती है।

आपको बता दें कि दीपावली के 15 दिन बाद देव दिवाली का पर्व सभी हिंदू बड़े धूम-धाम से मनाते हैं। देव दीपावली पतित पावन नदी गंगा की पूजा के लिए काशी में मुख्य रूप से मनाई जाती है।


गंगा किनारे किए जाते हैं दीप दान

एक और मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव धरती लोक पर उतरते हैं। इसलिए लोग काशी नगरी को दियों से सजाते हैं। इस दिन गंगा घाट पर हजारों की संख्या में दीप दान किए जाते हैं । देव दीपावली की भव्यता देखते ही बनती हैं। टिमटिमाते दिए और रोशनी में डूबे गंगा किनारे अद्भुत नजारा बनाते हैं।

चिर निद्रा से जागते हैं भगवान विष्णु

देव दीपावली मनाने के पीछे एक और कारण भी है। मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के चार माह बाद भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं। जिसके बाद ही शुभ कार्य शुरू होते हैं। ऐसे में सभी देवता कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्वर्ग से उतरकर काशी के घाटों पर दिवाली मनाते हैं। इसलिए इसे देव दीपावली कहा जाता है।

भोलेशंकर की नगरी काशी में दीप दान

एक अन्य कथानुसार मान्यता है कि भगवान शिव शंकर ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन राक्षस ‌त्रिपुरासुर का वध किया था। इसके बाद भोलेनाथ ने काशी नगरी को बसाया था। फिर भोलेशंकर ने अह‌ंकारी राजा दिवोदास के को मार डाला था। इसी खुशी में देवताओं ने स्वर्ग से लेकर काशी तक दीए जलाएं थे। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली भी कहा जाता है।

देव दीपावली देखने आते हैं सैलानी

बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी देव दीपावली के दिन असंख्य दीपकों की रोशनी डूबी रहती है। कार्तिक पूर्णिमा की शाम लाखों दिए गंगा किनारे जलते हैं। गंगा के घाट देवलोक बन उठते हैं। इसकी छटा देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी आते हैं। इसलिए कार्तिक माह की पूर्णिमा पर स्नान व दान दोनों का विशेष महत्व है।

देव दीपावली पर श्रद्धालु दीप दान करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा में दीप दान करने के नियमों का ध्यान रखना चाहिए। दीप दान करते समय दीप का मुख हमेशा पूर्व या पश्चिम की ओर करके रख दें। देव दीपावली पर दो मुखी दीप दान करने से लंबी आयु प्राप्त होती है। वहीं तीन मुखी दीपक दान करने से बुरी शक्तियों को नाश होता है। शत्रुओं से पीछा छूटता है।

कार्तिक पूर्णिमा में एक दान से मिलता है महावरदान

आपको बता दें कि छह मुखी दीपक जलाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। छह मुखी दीप दान से संतान की समस्याएं समाप्त होती हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन न सिर्फ गंगा स्नान और दीप दान वरन कुछ अन्य कार्य भी अति शुभ फलदायी होते हैं।

इनमें स्नान के बाद श्री सत्यनारायण की कथा श्रवण, गीता पाठ, विष्णु सहस्त्रनाम पाठ, 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप करने से प्राणी पापमुक्त हो जाता है। साथ ही एक दान से महावरदान का फल मिलता है।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन जगत पालनहार भगवान विष्णु को प्रसन्न करें। इसके लिए सांयकाल में घरों,मंदिरों,पीपल के वृक्ष, तुलसी के पौधों दीप दान करें। साथ ही गंगा सहित पवित्र नदियों में दीप दान करें। ऐसा करने से व्यक्ति को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।

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