Lohri 2020 Date / लोहड़ी कब है, लोहड़ी का महत्व, मान्यता, लोहड़ी कैसे मनाएं

Lohri 2020 Date / लोहड़ी कब है, लोहड़ी का महत्व, मान्यता, लोहड़ी कैसे मनाएं
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Lohri 2020 Date / लोहड़ी कब है (Lohri Kab Hai), लोहड़ी का महत्व (Lohri Importance Significance), मान्यता (Lohri Festival Rituals), कैसे मनाएं लोहड़ी, अगर आपको नहीं पता तो बता दें कि लोहड़ी 2020 में 13 जनवरी की है। लोहड़ी का महत्व की बात करें तो लोहड़ी को पौष मास की आखिरी रात माना जाता है, जो मौसम में बदलाव का संकेत भी देता है, लोहड़ी पंजाबी और सिक्ख लोगों का मुख्य त्योहार माना जाता है, तो चलिए जानते हैं कैसे और क्यों मनाई जाती है लोहड़ी...

Lohri 2020 Date / लोहड़ी कब है: लोहड़ी का त्योहार फसलों की कटाई पर प्रकृति को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है। इस त्योहार को मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा में मनाया जाता है। लोहड़ी का त्योहार (Lohri Festival) हर साल 13 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन मुख्य रूप से दुल्ला भट्टी (Dulla bhatti) के गीत गाते हैं और नांचते गाते हैं। तो चलिए जानते हैं लोहड़ी 2020 तिथि मुहूर्त, लोहड़ी का महत्व, हिंदू मान्यता और कैसे मनाया जाता है लोहड़ी का त्योहार (How To Celebrate Lohri Festival)


लोहड़ी 2020 तिथि (Lohri 2020 Date)

13 जनवरी 2020

लोहड़ी 2020 संक्रांति क्षण (Lohri 2020 Sankranti Sarn)

रात 2 बजकर 22 मिनट (15 जनवरी 2020)


लोहड़ी शब्द की उत्पत्ति (Lohri Shabd ki Utpatti)

लोहड़ी शब्द की उतपत्ति को लेकर लोगों की अलग- अलग मान्यताएं हैं कुछ लोगों के अनुसार लोहड़ी शब्द की उतपत्ति संत कबीर की पत्नी लोई के नाम से हुई हैं तो कुछ लोग तिलोड़ी नाम से उत्पन्न हुआ मानते हैं जिसे बाद मे लोहड़ी कहा जाने लगा। वहीं कुछ लोगों के अनुसार इसकी उत्पत्ति लोह शब्द से मानते हैं।


लोहड़ी का महत्व (Lohri Ka Mahatva)

लोहड़ी को हर्ष और उल्लास को त्योहार माना जाता है। यह त्योहार लोगों में एक नई ऊर्जा को भर देता है। लोहड़ी का त्योहरा विशेष रूप से किसान फसल पकने की खुशी में मनाते हैं। इस त्योहार को पंजाबी और सिक्ख लोग मुख्य रूप से मनाते हैं। पंजाब और हरियाणा में तो इस त्योहार को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। लेकिन अब यह त्योहार सिर्फ पंजाब और हरियाणा में ही नही मनाया जाता बल्कि इस त्योहार को पूरे भारत वर्ष में फसल पकने की खुशी में मनाया जाता है।

लोहड़ी का त्योहार लोग प्रकृति को धन्यवाद देने के लिए मनाते हैं। हर साल यह त्योहार 13 या 14 जनवरी को मनाया जाता है। लोहड़ी के अगले दिन मकर संक्रांति का त्योहार भी मनाया जाता है। माना जाता है जहां पंजाबी और सिक्ख लोग लोहड़ी के दिन फसल पकने की खुशी मनाते हैं तो वहीं हिंदू धर्म के लोग मकर संक्रांति को फसल पकने पर भगवान का धन्यवाद करते हैं। वैसे तो लोहड़ी का त्योहार प्रत्येक वर्ग के लोग मनाते हैं। लेकिन यह त्योहार नवविवाहित दंपति और घर में आए नए शिशु के लिए महत्वपूर्ण होता है।

इस दिन नवविवाहित दंपत्ति लोहड़ी सज धजकर, नए वस्त्र पहनकर लोहड़ी मनाते हैं और लोहड़ी की जलती हुई लकड़ियों में मूंगफली और गजक आदि डालकर अपने वैवाहिक सुख की कामना करते हैं। इस दिन कई जगहों पर तो नाच गाने की प्रतियोगिताएं भी रखी जाती हैं। सामूहिक स्थलों पर लोहड़ी की तैयारी काफी समय से पहले ही होने लगती है। इस दिन को लोगों के बीच में अति उत्साह के साथ मनाया जाता है।


लोहड़ी की हिंदू मान्यता (Lohri Ki Hindu Manyata)

लोहड़ी का पर्व न केवल पंजाबी और सिक्ख लोग ही मनाते बल्कि कई जगहों पर हिंदू धर्म के लोग भी मनाते हैं। लोहड़ी के दिन विशेष रूप से दुल्ला भट्टी के गीत गाए जाते हैं। दुल्ला भट्टी एक लुटेरा था जो हिंदू लड़कियों को बेचने के विरोध में था और उन्हें बेचे जाने से बचाता था। दुल्ला भट्टी ने केवल हिंदू लड़कियों को बिकने से बचाता था बल्कि उनकी हिंदू लड़कियों के साथ शादी भी कराता था। जिसकी वजह से लोग उसके प्रति आदर का भाव रखते है और आज भी उसे गीतों के जरिए याद करते हैं।

हिंदू धर्म में अग्नि को सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है और उसमें जो भी अर्पित किया जाता है। वह सीधे ही देवता और पित्तरों को प्राप्त होता है। इसलिए जब भी लोहड़ी की अग्नि में गेहूं की नई फसल की बालियां अर्पित की जाती है और लोहड़ी की अग्नि के चारों और परिक्रमा की जाती है। इसके बाद लोग समूह में इकट्ठा होकर एक दूसरे के गले मिलकर लोहड़ी की बधाईयां देते हैं और नाच गाकर इस दिन को खुशी के साथ मनाते हैं।


कैसे मनाते हैं लोहड़ी (kaise Manate Hai Lohri)

लोहड़ी को मुख्य रूप से फसल के बोने और कटने का त्योहार माना जाता है। इस दिन लोहड़ी की आग जलाई जाती है। जिसके आस- पास लोग इकट्ठा होते हैं और नाचते गाते हैं। लड़कियां पंजाब को लोक नृत्य गिद्दा और लड़के भांगड़ा करते हैं। इस दिन विवाहिता लड़कियों की मां उनके ससुराल में रेवड़ी, गजक, मिठाई, वस्त्र, मूंगफली आदि मुख्य रूप से भेजती हैं। इस दिन लड़कों की नई शादी होती है और जिन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है। वह अपने आस- पड़ोस और पूरे मोहल्ले में रेवड़ी बांटते हैं।

लोहड़ी के त्योहार में 2- 4 धधकते कोयले भी घर लाने की परंपरा है। इस त्योहार को नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी मिलकर धूमधाम के साथ मनाती है। जिससे वह पुरानी पीढ़ी के लोगों के साथ मिलकर ज्ञान अर्जित करके अपने भविष्य को उज्जवल बना सके। इस दिन सभी रिश्तेदार एक दूसरे के घर आकर बधाईयां और उपहार देते हैं। इस दिन ढोल की थाप बच्चे, बूढ़े, युवक युवतियां और सभी महिलाएं नृत्य करके इस त्योहार का आनंद लेते हैं।

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