Magha Gupt Navratri 2020 Date And Time : माघ गुप्त नवरात्रि 2020 में कब है, जानिए घट स्थापना मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि, कथा , मंत्र और आरती

Magha Gupt Navratri 2020 Date And Time माघ मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली नवरात्रि को माघ गुप्त नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। जहां प्रकट नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। वहीं माघ गुप्त नवरात्रि (Magha Gupt Navratri) में दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है तो चलिए जानते हैं माघ गुप्त नवरात्रि 2020 में कब है (Magha Gupt Navratri 2020 Kab ki Hai), माघ गुप्त नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त , माघ गुप्त नवरात्रि का महत्व, माघ गुप्त नवरात्रि पूजा विधि, माघ गुप्त नवरात्रि कथा ,मां दुर्गा के मंत्र और मां दुर्गा की आरती
माघ गुप्त नवरात्रि 2020 तिथि (Magha Gupt Navratri 2020 Tithi)
25 जनवरी 2020
माघ नवरात्रि 2020 शुभ मुहूर्त (Magha Gupt Navratri 2020 Subh Muhurat)
माघ नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त - सुबह 9 बजकर 48 मिनट से सुबह 10 बजकर 47 मिनट तक
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - दोपहर 12 बजकर 12 मिनट से दोपहर 12 बजकर 55 मिनट तक
घटस्थापना लग्न - मीन लग्न
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - सुबह 3 बजकर 11 मिनट से (25 जनवरी 2020 )
प्रतिपदा तिथि समाप्त - अगले दिन सुबह 4 बजकर 31 मिनट तक (26 जनवरी 2020)
मीन लग्न प्रारम्भ - सुबह 09 बजकर 48 मिनट से (25 जनवरी 2020)
मीन लग्न समाप्त - सुबह 11 बजकर 13 मिनट तक (26 जनवरी 2020)
माघ गुप्त नवरात्रि का महत्व (Magha Gupt Navratri Mahatva/ Importance)
माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली नवरात्रि को माघ गुप्त नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इस नवरात्रि के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। इस नवरात्रि में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। यह नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाओं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े हुए लोगों के लिए खास महत्व रखती है। इस समय में देवी भगवती के भक्त बहुत ही कठिन नियमों का पालन करके देवी की साधना करते हैं। माघ गुप्त नवारात्रि में लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।
उपवास रखकर, श्लोकों और मंत्रों का जाप करकर भक्त देवी के प्रति अपनी भक्ति को दर्शातें हैं। यह माना जाता है कि इस समय देवी तुरंत ही अपने भक्तों की प्रार्थना स्वीकार कर लेती हैं और
उनकी इच्छाओं को पूरा करती हैं। इस नवरात्रि को सिर्फ शक्ति प्राप्ति के लिए नहीं बल्कि अपनी सभी समस्याओं की समाप्ति के लिए भी किया जा सकता है। माघ गुप्त नवरात्रि में भी चैत्र मास और शारदीय नवरात्रि की तरह ही पूजा की जाती है और कन्या पूजन के साथ इसकी समाप्ति होती है।
माघ गुप्त नवरात्रि पूजा विधि (Magha Gupt Navratri Puja Vidhi/ Pujan Vidhi)
1. माघ गुप्त नवरात्रि के दिन साधक को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
2. इसके बाद एक साफ चौकी लेकर उस पर गंगाजल का छिड़काव करना चाहिए और उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछाना चाहिए।
3.कपड़ा बिछाने के बाद कलश की स्थापना करनी चाहिए। कलश की स्थापना के लिए एक मिट्टी का पात्र लेना चाहिए और उसमें जल भरकर गंगा जल डालकर उसे ढक्कन से बंद करके एक नारियल पर लाल रंग की चुन्नी से लपेटकर कलश की ऊपर स्थापित करना चाहिए।
4. इसके बाद मां दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर को चौकी पर स्थापित करना चाहिए और मां को रोली का तिलक करना चाहिए। इसके साथ कलश का भी तिलक करना चाहिए।
5. तिलक के बाद माता को श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए और उन्हें लाल रंग के पुष्पों की माला और पुष्प अर्पित करने चाहिए।
6. इसके बाद माता के आगे धूप व दीप जलाने चाहिए और उनके मंत्रों का जाप करना चाहिए।
7. इसके बाद गोबर के उपले से अज्ञारी करें। सबसे पहले इस पर घी डालें, कपूर डालें, दो लौंग का जोड़ा डालें और अंत में बताशे डालें।
8. अज्ञारी के बाद मां दूर्गा की कथा सुनें और उनकी कपूर से आरती उतारें।
9. इसके बाद उन्हें बताशे का भोग लगाएं और इन बताशों को प्रसाद के रूप में सभी के बीच में वितरीत कर दें।
10.इस प्रकार से माघ नवरात्रि में सुबह और शाम दोनों समय मां दुर्गा का पूजा अर्चना करनी चाहिए।
माघ गुप्त नवरात्रि कथा (Magha Gupt Navratri Story/ Katha)
माघ गुप्त नवरात्रि कथा के अनुसार एक समय ऋषि श्रृंगी अपने भक्तों को दर्शन दे रहे थे और अचानक ही भीड़ से एक स्त्री निकलकर बाहर आई और उसने ऋषि श्रृंगी से कहा कि मेरे पति सदैव दुर्व्यसनों से घिरे रहते हैं। जिसकी वजह से मैं कोई भी पूजा पाठ नहीं कर पाती धर्म और भक्ति से जुड़े कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती। यहां तक कि ऋषियों को भी उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती। मेरे पति मंसाहारी और जुआरी हैं।
लेकिन मैं मां दुर्गा की सेवा करना चाहती हूं। उनकी भक्ति साधना से अपने और अपने परिवार के जीवन को सफल बनाना चाहती हूं।ऋषि श्रृंगी महिला के भक्ति भाव से बहुत प्रभावित हुए और उसे इसका उपाय बताते हुए कहा कि चैत्र और शारदीय नवरात्रि को सब आमजन जानते हैं। लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्र और भी होते हैं। जिन्हें गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। उन्होंने कहा कि प्रकट नवरात्रि में नौ देवियों की उपासना होती है और गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।
इस नवरात्रि में यदि कोई मां दुर्गा की उपासना करता है तो मां उसके जीवन को सफल बना देती हैं। ऋषि श्रृंगी ने आगे कहा कि लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रि में मां की पूजा करता है तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता नहीं रहती। उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्ध करके गुप्त नवरात्रि की पूजा की। जिसके बाद मां उस स्त्री पर प्रसन्न हुई और उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा। उसके जीवन में सुख शांति आने लगी और पति जो गलत रास्ते पर था वह सभी मार्ग पर आ गया।
दस महाविद्या के नाम (Dus Mahavidya Ke Naam)
1. मां काली
2.मां तारा
3.मां षोडशी
4. मां भुवनेश्वरी
5.मां भैरवी
6.मां छिन्नमस्ता
7. मां धूमावती
8. मां बगलामुखी
9. मां मातंगी
10. मां कमला
जानिए माघ गुप्त नवरात्रि में कौन सी महाविद्या की पूजा कब की जाती है
पहली माघ गुप्त नवरात्रि मां काली, दूसरी माघ गुप्त नवरात्रि पर मां तारा, तीसरी माघ गुप्त नवरात्रि पर मां षोडशी, चौथी माघ गुप्त नवरात्रि पर मां मां भुवनेश्वरी, पांचवीं माघ गुप्त नवरात्रि पर मां भैरवी, छठी माघ गुप्त नवरात्रि पर मां छिन्नमस्ता, सातवीं माघ गुप्त नवरात्रि मां धूमावती, आठवीं माघ गुप्त नवरात्रि पर मां बगलामुखी और नवीं माघ गुप्त नवरात्रि पर मां मांतगी और मां कमला की पूजा की जाती है।
मां दुर्गा के मंत्र (Maa Durga Ke Mantra)
1.सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
2.ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
3.या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
4.या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
5.ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै
मां दुर्गा की आरती (Maa Durga Ki Aarti)
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥
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