महाभारतः अर्जुन के रथ पर हनुमान जी क्यों हुए थे विराजमान, ये है असली कारण

महाभारत (Mahabharat): हिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक भगवान हनुमान (Hanuman) और भीम दोनों भाई थे, क्योंकि दोनों वायु पुत्र थे। वनवास के समय महाभारत युद्ध में भगवान कृष्ण जिस अर्जुन के शारथी बने थे उस रथ की छत पर हनुमान जी विराजमान थे। इसलिए आज भी अर्जुन के रथ की पताका में हनुमान जी को दर्शाया जाता है। आज हम आपको बताएंगे कि अर्जुन के रथ पर हुनमान जी क्यों विराजमान हुए थे।
वनवास के समय जब पाण्डव जब बद्रीकाश आश्रम में रह रहे थे, तब उड़ते हुए एक शस्त्रदल वाला कमल द्रोपती के पास आया। उसकी गंद की महक से द्रोपदी कमल के ऊपर मोहित हो गई थी और द्रोपदी ने भीमसेन कहा कि यह कमल बहुत सुंदर है मैं ये कमल धर्मराज युदिष्ठर को भेट करूंगी, अगर आप मुझसे प्रेम करते है तो यह कमल मेरे लिए लेकर आओ।
द्रोपदी के कहने पर भीम कमल वाली दिशा की ओर चल देते हैं। भीमसेन चलते चलते गंदमादक पर्वत के ऊपर पहुंच गए थे। उसी पर्वत के ऊपर एक बगीचा था जो कई योजन में फैला हुआ था। उस बगीचे में हनुमान जी रहते थे। जब हनुमान जी ने जाना की उसका भाई भीमसेन बगीचे के अंदर आ रहा है। वहां से जाने वाली एक सड़क को रोक लिया और प्रतीक्षा करने लगे। भीमसेन ने रुद्र बानर को देखा तब उन्होनें हनुमान जी से अपना मार्ग छोड़ने के लिए कहा, लेकिन हनुमान जी कहा कि आप आगे जाना चाहते हो तो मुझे लांग कर चले जाओ। भीमसेन ने कहा की हरेक मनुष्य में परमात्मा का वास होता है, इस लिए मैं आपको लांग नहीं सकता हूं।
हनुमान जी भीमसेन का रास्ता छोड़ने को तैयार नहीं हुए और वादविवाद बड़ गया, तब ही हनुमान जी ने भीमसेन को बताया की मै तुम्हारा भाई पवन पुत्र हनुमान हूं। इसे सुनकर भीमसेन हनुमान जी के चरणों में गिर गए और प्रार्थना कि वे चारों युग और युग के आचरण (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) का ज्ञान दें।
हनुमान जी ने भीमसेन को सभी ज्ञान दिया और इसके साथ भीम सेन ने हनुमान जी से इच्छा प्रकट कि आपने रामयण के समय में समुद्र को लांघते समय विराट स्वरूप धारण किया था , उस स्वरूप के दर्शन करने है। कृपा मुझे वह स्वरूप दिखाई।
हनुमान जी ने वह स्वरूप दिखाने से मना कर दिया लेकिन भीम ने जीद पर डटे रहे, तब हनुमान जी ने अपने विराट रूप के दर्शन कराए। वह रूप उगते हुए सुर्य के समान था। भीमसेन उसे देख नहीं पाए। हनुमान जी ने भीम से कहा कि तुम कोई वरदान मांग लो, अगर तुम कहों तो अभी मैं दूर्योधन, दुःशासन, धृतराष्ट्र को बंदी बनाकर तुम्हारे सामने पेश कर दूं, जिससे यह युद्ध टल जाएगा।
लेकिन भीम ने कहा कि वे धर्म के मार्ग से ही युद्ध लड़ेंगे। अगर आपको मेरे लिए कुछ करना है तो युद्ध में मेरी सहायता करना। तब ही हनुमान जी ने वचन दिया कि तब तुम दुश्मनों का वध कर रहे होंगे तब में आपके साथ रहूंगा। मेरे को वहां मौजूद पाकर दुश्मनों के प्राण निकल जाएंगे, आपको हथियार चलाने की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। बाद में भीम ने हनुमान जी को कहा था कि मुझे सबसे अधिक चिंता भाई अर्जुन की है, क्योंकि वहीं एक महाधनुरधर है और कौरव पक्ष उनको मारने का प्रयास करेंगे। कृपा अर्जुन की रक्षा के लिए कुछ कीजिए।
हनुमान जी ने कहा कि तुम चिंता मत करों मैं अर्जुन के रथ के ऊपर विराजमान हो जाऊंगा, क्योंकि अर्जुन के रथ के ऊपर भयानक से भयानक अस्त्र और शस्त्र का प्रयोग कौरवों द्वारा होगा। अगर मेरा वजन उस रथ के ऊपर होगा तो रथ को कोई भी हिला नहीं पाएगा। तो इसी वरदान के कारण हनुमान जी भीम जी के साथ लड़ रहे थे और इसी तरह से वे अर्जुन के रथ के ऊपर बैठे थे।
आपको शायद ही पता होगा कि जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था और जब अर्जुन के रथ के ऊपर से हनुमान जी और भगवान कृष्ण नीचे उतर गए थे उसी क्षण अर्जुन के रथ में विस्फोट हो गया था। क्योंकि अर्जुन के रथ के ऊपर शत्रुओं ने इतने अस्त्र और शस्त्र चलाए थे।
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