Narak Chaturdarhi 2019 : नरक चतुर्दशी पर जानें कब और कैसे हुई थी यमराज की मृत्यु

Narak Chaturdarhi 2019 नरक चतुर्दशी पर यमराज को प्रसन्न करने के लिए दीपदान किया जाता है। क्योंकि पुराणों के अनुसार यमराज (Yamraaj) को मृत्यु का देवता माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक बार यमराज स्वंय मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। अगर नहीं तो हम आपको इसके बारें में बताएंगे। नरक चतुर्दशी इस साल 2019 में 26 अक्टूबर 2019 (26 October 2019) के दिन मनाई जाएगी। यमराज भैंसे की सवारी करते हैं और उनकी आराधना विभिन्न नामों से की जाती है। जैसे कि यम, धर्मराज, मृत्यु, अतंक, वैस्वत, काल आदि तो आइए जानते हैं कब और कैसे हुई थी यमराज की मृत्यु
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यमराज की मृत्यु की कथा (Yamraaj ki Mritu Ki Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार एक स्वेत मुनि भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे और गोदावरी नदी के तट पर निवास करते थे। जब उनकी म़ृत्यु का समय आया तो यमदेव ने उनके प्राण हरने के लिए मृत्यु पास को भेजा। लेकिन स्वेत मुनि अभी प्राण नहीं त्यागना चाहते थे। तो उन्होंने महामृत्युजंय मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया। जब मृत्यु पास स्वेत मुनि के आश्रम के पास में पहुंचा तो उसने देखा कि स्वेत मुनि के आश्रम के द्वार पर भैरव बाबा पहरा दे रहे हैं। धर्म और दायित्व में बंधे होने के कारण जैसे ही मृत्यु पास ने मुनि के प्राण हरने कि कोशिशि की तब ही भैरव बाबा ने प्रहार करके मृत्यु पास को मूर्छित कर दिया।
वह जमींन पर गिर पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई। यह देखकर यमराज अत्याधिक क्रोधित हो गए और क्रोध में आकर भैरव बाबा को अपने पास में बांध लिया। फिर स्वेत मुनि के प्राण हरने के लिए उन्हें भी मृत्यु पास में बांध लिया। तब स्वेत मुनि ने अपने ईष्ट देव भगवान शंकर को पुकारा और महादेव ने तुरंत अपने पुत्र कार्तिकेय को भेजा। कार्तिकेय के वहां पहुंचने पर कार्तिकेय और यमदेव के बीच में घमासान युद्ध हुआ। कार्तिकेय के सामने यमदेव ज्यादा देर तक टिक नहीं पाए और कार्तिकेय के एक प्रहार से यमदेव जमींन पर गिर गए और उनकी मृत्यु हो गई।
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भगवान सूर्य को जब यमराज की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ तो वह विचलित हो गए। ध्यान लगाने पर ज्ञात हुआ कि उन्होंने भगवान शिव की इच्छा के विपरित स्वेत मुनि के प्राण हरने की कोशिश की थी। इसी कारण यमराज को भगवान शिव के प्रकोप को झेलना पड़ा। इसके बाद भगवान सूर्य इस समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने सूर्यदेव को भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करने का सुझाव दिया। सूर्यदेव ने भगवान शिव की घोर तपस्या की जिससे भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उन्हें दर्शन देकर वरदान मांगने के लिए कहा।
सूर्यदेव ने भगवान शिव से कहा कि यमराज की मृत्यु के बाद पृथ्वीं पर भारी असंतुलन फैला हुआ है। इसलिए पृथ्वीं पर संतुलन बनाए रखने के लिए यमराज को पुन: जीवित कर दें। तब भगवान शिव ने नंदी से यमुना का जल मंगवाकर यमदेव के पार्थिव शरीर पर छिड़का। जिसके बाद वह पुन: जीवित हो गए। इस प्रकार यमराज ने एक बार फिर से जीवित हो गए और अपने धर्म का पालन करने लगे।
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