Navratri 2019 : पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा, जानें महत्व, पूजा विधि, माता शैलपुत्री की कथा, मंत्र और आरती

Navratri 2019 नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है। पहले नवरात्र में मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री है। पिछले जन्म में मां शैलपुत्री का जन्म सती रूप में हुआ था। जिन्होंने अग्नि में अपने शरीर का त्याग कर दिया था। जिसमे पहले दिन मां शैलपुत्री का पूजन (Maa Shailputri Ka Pujan) किया जाएगा। मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना करने से चंद्र के सभी दोष समाप्त होते हैं तो आइए जानते हैं पहला शारदीय नवरात्रि की तिथि और शुभ मुहूर्त और मां शैलपुत्री का स्वरूप, महत्व, पूजा विधि, कथा और मंत्र
पहला शारदीय नवरात्र 2019 तिथि (First Shardiya Navratri 2019 Date)
29 सितंबर 2019
पहला शारदीय नवरात्र 2019 शुभ मुहूर्त (First Shardiya Navratri 2019 Subh Muhurat)
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त- सुबह 6 बजकर 16 मिनट से 7 बजकर 40 मिनट तक (29 सितंबर 2019)
अभिजित मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 48 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक (29 सितंबर 2019)
मां शैलपुत्री का स्वरूप (Maa Shailputri Ka Swaroop)
मां शैलपुत्री पिछले जन्म में प्रजापति दक्ष की पुत्री थी। जिन्होंने अपना दूसरा जन्म पर्वतराज हिमालय के यहां लिया इसी कारण से इन्हें 'शैलपुत्री' भी कहा जाता है। मां का वाहन वृषभ (बैल) है इसलिए माता शैलपुत्री को वृषारूढ़ा और उमा भी कहा जाता है। मां के दाएं हाथ में त्रिशुल और बाएं हाथ में कमल स्थित है। मां के माथे पर अर्ध चंद्र विराजमान है। नवरात्रि में मां दूर्गा के पहले स्वरूप में मां शैलपुत्री की ही पूजा - अर्चना की जाती है। मां शैलपुत्री अपने भक्तों को सभी प्रकार के सौभाग्य का वरदान देती हैं।
मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व (Maa Shailputri Ki Puja Ka Mahatva)
मां शैलपुत्री का जन्म शैल से हुआ है। संस्कृत में शैल को पत्थर कहा जाता है। इसलिए मां शैलपुत्री की पूजा करने से जीवन में स्थिरता आती है। अगर महिलाएं मां शैलपुत्री की पूजा करती हैं तो उनको जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मां को शैलपुत्री पिछले जन्म में मां सती थी। इसलिए मां शैलपुत्री की पूजा करने से वैवाहिक सुख भी प्राप्त होता है। मां शैलपुत्री का विधिवत पूजन करने से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है। शास्त्रों के अनुसार मां शैलपुत्री चंद्रमा पर आधिपत्य है। मां शैलपुत्री अपने भक्तों को सभी प्रकार का सौभाग्य प्रदान करती हैं। मां शैलपुत्री की पूजा करने से चंद्रमा के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं।
मां शैलपुत्री की पूजा विधि (Maa Shailputri Ki Puja Vidhi)
1.सबसे पहले साधक को सुबह जल्दी उठकर घर की सफाई करने के बाद नहाकर साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
2. इसके बाद एक चौकी पर मां शैलपुत्री का चित्र स्थापित करें और कलश की भी स्थापना करें। कलश के ऊपर नारियल और पान के पत्ते रखें और स्वास्तिक भी बनाएं।
3.इसके बाद मां को ,माला चढाकर घी का दीपक जलाएं और ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम: मंत्र का जाप करते हुए सफेद फूलों को मां के सामने छोड़े दें।
4.इसके बाद सभी दिशाओं, नदीयों और तीर्थों का आह्ववाहन करें और मां शैलपुत्री की कथा सुनें और अंत में धूप व दीप से उनकी आरती उतारें।
5. आरती उतारने के बाद मां शैलपुत्री को सफेद रंग की मिठाई का भोग लगाएं और इसका प्रसाद बाटें। और शाम के समय भी कपूर जलाएं।
मां शैलपुत्री की कथा (Maa Shailputri Ki Katha Shailputri Story Hindi)
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ किया। जिसमें उसने सारे देवी देवताओं को आमंत्रित किया था। लेकिन उसने भगवान शिव को उस यज्ञ के लिए निमंत्रण नहीं भेजा था। जब माता सती को पता चला की उनके पिता ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया है तब उनका मन वहां जाने के लिए हुआ। माता सती ने अपनी यह इच्छा भगवान शिव को जाकर बताई तब भगवान शिव ने उन्हें समझाया की पता नहीं क्यों लेकिन प्रजापति दक्ष हमसे रुष्ट है। इललिए उन्होंने अपने यज्ञ में सभी देवताओं को निमंत्रित किया है। लेकिन मुझे इसका आमंत्रण नहीं भेजा और न हीं कोई सुचना भेजी है। इसलिए तुम्हारा वहां जाना ठीक नही है।
लेकिन माता सती ने भगवान शिव की बात नहीं मानी। माता सती की अपने माता पिता और बहनों से मिलने की बहुत इच्छा थी। उनकी जिद्द के आगे भगवान शिव की एक भी न चली और उन्हें माता सती को उनके पिता के यज्ञ में जाने की अनुमति देनी ही पड़ी। माता सती जब अपने पिता के घर पहुंची तो उन्होंने देखा कि सब उन्हें देखकर भी अनदेखा कर रहे हैं और कोई भी उनसे ठीक प्रकार से बात नहीं कर रहा है। सिर्फ उनकी माता ने ही उन्हें प्रेम से गले लगाया था। उनकी बहने की बातों में व्यंग्य था और वह उनका उपहास कर रही थीं।
अपने परिवार के लोगों का यह बर्ताव देखकर माता सती को बहुत ही ज्यादा अघात लगा। उन्होंने देखा की सभी के मन में भगवान शिव के प्रति द्वेष की भावना है। राजा दक्ष ने भगवान शिव का तिस्कार किया और उनके प्रति अपशब्द भी कहे। यह सुनकर माता सती को अत्याधिक क्रोध आ गया। माता सती को लगा कि उन्होंने भगवान शिव की बात न मानकर बहुत बड़ी गलती कर दी है। वह अपने पति की भगवान शिव का अपमान सहन नही कर सकी और उन्होंने अग्नि में अपने शरीर का त्याग कर दिया।
जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला तो उन्हें अत्याधिक क्रोध आ गया। उन्होने अपने गणों को भेजकर उस यज्ञ को पूरी तरह से खंडित करा दिया। इसके बाद माता सती ने अपना दूसरा जन्म शैलराज हिमालय के यहां पर लिया। हिमालय के यहां जन्म लेने के बाद वह 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुईं।उपनिषद् के अनुसार इन्हीं ने हैमवती के रूप रखकर देवताओं का गर्व-भंजन किया था।
मां शैलपुत्री के मंत्र (Maa Shailputri Ke Mantra)
1. ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:
2. ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
3.वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
4.वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
5. या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां शैलपुत्री की आरती (Shailputri Aarti )
शैलपुत्री मां बैल असवार।
करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी।
तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे।
जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू।
दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी।
आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो।
सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के।
गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं।
प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे।
शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो।
भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
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