Navratri 2019 : चौथे दिन मां कुष्माण्डा की पूजा, जानें महत्व, पूजा विधि, माता कुष्माण्डा की कथा, मंत्र और आरती

Navratri 2019 नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन मां की पूजा करने से सभी प्रकार के रोग व शोक नष्ट हो जाते हैं। मां को सृष्टि का निर्माता भी कहा जाता है मां की आठ भुजाएं हैं। देवी कुष्मांडा का शरीर सूर्य के समान ही है। शारादीय नवरात्र 2019 ( Shardiya Navratri 2019) में 29 सितंबर 2019 से प्रारंभ हो रहे हैं। जिसमे मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है। मां का चौथा स्वरूप कुष्माडा देवी (Kushmanda Devi) को माना जाता है तो आइए जानते हैं चौथे दिन मां कुष्माण्डा की पूजा, जानें महत्व, पूजा विधि, माता कुष्माण्डा की कथा, मंत्र और आरती के बारे में...
चौथा शारदीय नवरात्र 2019 तिथि (Fourth Shardiya Navratri 2019 Date)
2 अक्टूबर 2019
चौथा शारदीय नवरात्र 2019 शुभ मुहूर्त (Fourth Shardiya Navratri 2019 Subh Muhurat)
पूजा मुहूर्त- सुबह 6 बजकर 18 मिनट से 12 बजकर 53 मिनट तक (2 अक्टूबर 2019)
अभिजित मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 47 मिनट से दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक (2 अक्टूबर 2019)
मां कुष्माण्डा का स्वरूप ( Maa Kushmanda Ka Swaroop)
मां कुष्माण्डा के द्वारा ही ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ था। इनका निवास सूर्यमंडल के मध्य में है। यह माता सूर्य को नियंत्रित करती हैं। मां के शरीर की कांति सूर्य के समान ही तेज है। इसलिए इन्हें दैदिप्यमान भी कहा जाता है। देवी कूष्माण्डा की आठ भुजाएं हैं जिनमें कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र और गदा व माला स्थित हैं। जिसमें सभी प्रकार की सिद्धियां भी है वब मां कुष्माण्डा ही सूर्यदेव को ऊर्जा और दिशा देती हैं। मां के तेज के कारण ही जगत में प्रकाश फैला हुआ है।
मां कुष्माण्डा की पूजा का महत्व ( Maa Kushmanda Ki Puja Ka Mahatva)
मा की मंद हंसी और ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण ही मां का नाम कुष्माण्डा पड़ा है। मां कुष्माण्डा की पूजा करने से मनुष्य को सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है। इसके साथ ही मां की पूजा से आयु, यश और बल भी प्राप्त होते हैं। मां की वर मुद्र मनुष्य को सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं। मां कुष्माण्डा की पूजा नवरात्र के चौथे दिन की जाती है। इस दिन मां की पूजा करने से सभी प्रकार के कष्टों का अंत होता है और मनुष्य को अपने जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति भी होती है।
मां कुष्माण्डा की पूजा विधि (Maa Kushmanda Ki Puja Vidhi)
1.नवरात्र के चौथे दिन मां कुष्माण्डा की पूजा की जाती है। इस दिन पूजा करने वाले व्यक्ति को सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
2.इसके बाद चौकी पर मां कुषमाण्डा का चित्र और कलश भी स्थापित करें। मां कि पूजा के लिए इस दिन हरे रंग के आसन की प्रयोग करना चाहिए।
3. मां को पूजा में वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान आदि अर्पित करें।
4. इसके बाद हाथ में फूल लेकर सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मंत्र का जाप करें और फूल को चढ़ा दें और मां कि विधिवत पूजा करने के बाद आरती उतारें।
5. इसके बाद त्रिदेवों और मां लक्ष्मी की पूजा भी अवश्य करें। अंत में मां को फलों का भोग लगाकर प्रसाद बांटे।
मां कुष्माण्डा की कथा (Maa Kushmanda Ki Katha)
मां कुष्माण्डा का पूजन चौथे नवरात्र में किया जाता है। इसे मां आदिशक्ति का चौथा रूप माना जाता है। इन्हें सूर्य के समान ही तेज माना जदाता है। मां के स्वरूप की व्याख्या इस प्रकार से की गई है मां की अष्ट भुजाएं हैं जो जीवन में कर्म करने का संदेश देती हैं। उनकी मुस्कान हमें यह बताती है कि हमें हर परिस्थिति का हंसकर ही सामना करना चाहिए। मां की हसीं और ब्राह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण ही इन्हें कुष्माण्डा देवी कहा जाता है। जिस समय सृष्टि नहीं थी। चारों और अंधकार ही था। तब देवी ने अपनी हंसी से ही ब्राह्माण्ड की रचना की थी।
इसलिए यही सृष्टि की आदि-स्वरूपा आदि शक्ति हैं मां के सात हाथों में कमण्डल, धनुष बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। मां का निवास सूर्यमंडल के भीतर माना जाता है। जहां कोई भी निवास नहीं कर सकता। मां का शरीर सूर्य के समान ही कांतिवान है। मां कुष्माण्डा की पूजा अर्चना से सभी प्रकार के रोग और परेशानियां समाप्त हो जाती हैं। मां कम सेवा और भक्ति से प्रसन्न हो जाती हैं। मां का वाहन शेर है। मां के इस स्वरूप की पूजा से आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
मां कुष्माण्डा के मंत्र ( Maa Kushmanda Ke Mantra)
1.या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
2.वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
3.सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्मा याम कुष्मांडा शुभदास्तु मे।।
4.ॐ कूष्माण्डायै नम:।।
मां कुष्मांडा की आरती (Maa Kushmanda Ki Aarti)
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
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