Navratri 2019 : नवारात्रि पर जानिए क्यों आना पड़ा भगवान शिव को मां काली के पैरों के नीचे

Navratri 2019 : नवारात्रि पर जानिए क्यों आना पड़ा भगवान शिव को मां काली के पैरों के नीचे
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नवरात्रि पर मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, लेकिन मां काली की पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है, मां दुर्गा ने यह रूप राक्षसों के वध के लिए लिया था, लेकिन मां काली का गुस्सा राक्षसों को मारते - मारते इतना बढ़ गया कि उनके रास्ते में जो भी आ रहा था, वह उसका अंत करती जा रही थी, इसलिए स्वंय भगवान शिव को मां काली को रोकने के लिए आना पड़ा था, तो आइए जानते हैं क्यों आना पड़ा भगवान शिव को मां काली के पैरों के नीचे

Navratri 2019 नवारात्रि पर मां आदिशक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है। मां आदिशक्ति ने राक्षसों का वध करने के लिए अनेकों स्वरूप रखे थे। इन्हीं मे से एक हैं मां काली का स्वरूप। मां दूर्गा का यह रौद्र रूप है। मां ने यह रूप रक्तबीज नाम के राक्षस को मारने के लिए रखा था। नवारात्रि का पर्व (Navrati Fastival) इस साल 2019 में 29 सितंबर 2019 से प्रारंभ हो रहा है। मां काली (Maa Kali) का यह रूप अत्यंत ही काला और विकराल है जो दुष्टों का नाश करने के लिए मां दुर्गा ने लिया था तो आइए जानते हैं क्यों आना पड़ा भगवान शिव को मां काली के पैरों के नीचे


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भगवान शिव को क्यों आना पड़ा मां काली के पैरों के नीचे (Bhagwan Shiv ko Kyu Ana Pada Maa Kali Ke Pairo Ka Neecha)

पुराणों के अनुसार एक बा रक्तबीज नाम के दैत्य ने कई सालों तक कठोर तपस्या की थी और यह वरदान मांगा था कि अगर उसके रक्त की एक बूंद भी धरती पर गिरेगी तो उससे कई राक्षस उतपन्न हो जाऐं। उसे यह वर प्राप्त भी हो गया। जिसके बाद उसने तीनों लोकों में अत्याचार करने शुरु कर दिए। वह अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करके बेकसुर लोगों को मारता था। उसके इस आंतक से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। रक्तबीज के आतंक से परेशान होकर देवताओं को भी उससे युद्ध करना पड़ा।

देवताओं ने उस असुर को मारने की बहुत कोशिश की लेकिन जैसे ही उस राक्षस की एक बूंद भी धरती पर गिरती तो उससे अनेकों दैत्य उत्पन्न हो जाते थे। जिसकी वजह से देवता उससे युद्ध करने में असमर्थ थे। वह जितनी बार भी उस पर प्रहार करते उस प्रहार से अनेकों राक्षस उत्पन्न हो जाते थे। इस प्रकार से देवताओं की शक्ति क्षीण पड़ती जा रही थी और रक्तबीज की शक्ति बढ़ती जा रही थी। इससे परेशान होकर सभी देवता मां दुर्गा की शरण में गए । उस राक्षस को मारने के लिए मां दुर्गा ने अत्यंत ही विकराल, काला और डरावना रूप धारण किया।


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इसके बाद मां दुर्गा मां काली का रूप लेकर युद्ध भूमि में उतर गईं। उसके बाद मां काली ने अपने खड्ग से उन असुरों पर प्रहार करना शुरु कर दिया। लेकिन रक्तबीज का रक्त जैसे ही धरती पर गिरता उससे अनेकों रक्तबीज उत्पन्न हो जाते थे। इसके बाद मां काली ने अपनी जीभ का आकार और भी ज्यादा बढ़ा लिया। मां उन दैत्यों का वध करती जाती और उनका रक्त अपनी जीभ से अपने अंदर ले लेती थी। इस तरह से उन दैत्यों का वध करते हुए मां उनका खुन पीने लगी थीं। इस तरह से मां काली ने सभी राक्षसों के साथ रक्तबीज का भी वध कर दिया था।

लेकिन रक्तबीज का वध करने के बाद मां काली का गुस्सा अत्याधिक बढ़ गया। जिसे शांत करना किसी भी देवता के बस की बात नही थी। इसलिए सभी देवता मां काली को शांत करने के लिए भगवान शिव के पास गए। सभी देवताओं ने भगवान शिव से मां काली के गुस्से को शांत करने के लिए प्रार्थना की। जिसके बाद भगवान शिव भी मां काली के पास पहुंच गए। मां काली को शांत करने की भगवान शिव ने कई कोशिशे कीं। लेकिन मां काली का गुस्सा शांत ही नही हो रहा था। अंत में मां काली को रोकने के लिए स्वंय ही भगवान शिव को मां के मार्ग में लेटना पड़ा।

जब मां काली के पैरों के नीचे भगवान शिव आए तब जाकर मां काली का गुस्सा शांत हुआ। इसी कारण से ही मां काली की जीभ भी बाहर निकली है। क्योंकि सभी देवताओं को पता था कि मां काली गुस्सा सिर्फ भगवान शिव ही शांत कर सकते थे।

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