Navratri 2019 : नवरात्रि पर देवी दुर्गा की इन 10 महाविद्याओं का किया जाता है पूजन

Navratri 2019 : नवरात्रि पर देवी दुर्गा की इन 10 महाविद्याओं का किया जाता है पूजन
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Navratri 2019 शारदीय नवरात्रि इस साल 2019 में 29 सितंबर 2019 (29 September 2019) से शुरु हो रही है। नवारात्रि पर देवी शक्ति की दस महाविद्याओं की आराधना करने से ज्ञान के साथ- साथ सिद्धियां भी प्राप्त की जा सकती है, क्योंकि यह दस विद्याएं मां दुर्गा की ही स्वरूप मानी जाती है, तो आइए जानते हैं नवरात्रि पर देवी शक्ति की दस महाविद्याओं के बारे में...

Navratri 2019 नवरात्रि पर मां दुर्गा के साथ- साथ शक्ति की दस महाविद्याओं की भी पूजा की जाती है। यह दस महाविद्याएं मनुष्य को जीवन के सभी संकटों से निकालने में सक्षम है। इतना ही नहीं इनकी आराधना से धन, कोर्ट केस, शत्रु बाधा आदि अनेकों प्रकार के संकट आसानी से समाप्त हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार शक्ति की इन दस महाविद्याओं की पूजा करने से भूत- प्रेत तक की बाधाएं आसानी से समाप्त हो जाती है तो आइए जानते हैं नवरात्रि (Navratri) पर देवी शक्ति की दस महाविद्याओं के बारे में...

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देवी शक्ति की मां महाविद्याएं (Devi Shakti Ki Dus Mahavidya)

मां काली (Maa Kali)

मां काली को दस महाविद्याओं में से पहली महाविद्या कहा गया है। मां दुर्गा नें महाकाली का रूप असुरों का नाश करने के लिए लिया था। मां काली का स्वरूप अत्यंत ही भयंकर है। मां काली का निवास स्थान श्मशान है और उनके एक हाथ में खड्ग और दूसरे हाथ में त्रिशुल है। मां काली ने अपने गले में नरमुंडों की माला धारण कर रखी है। मां काली भगवान शिव के ही रौद्र रूप को दर्शाती हैं। मां काली की जीभ बाहर की और लटकी हुई है। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि राक्षसों का वध करते समय उनका क्रोध शांत नही हुआ था तो उन्हें रोकने के लिए भगवान शिव उनके मार्ग में लेट गए थे और मां काली ने उनकी छाती पर अपना पांव रख दिया था।


मां तारा (Maa Tara)

मां तारा को दस महाविद्याओं में से दूसरी महाविद्या कहा गया है। देवी तारा को सुंदर लेकिन आत्म दहन के रूप में देखा जाता है। तारा वह देवी हैं जो परम ज्ञान और मुक्ति को प्रदान करती हैं। मां तारा को नील सस्वती के रूप में भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार मां तारा का स्वरूप भी मां काली की तरह ही बताया गया है। जहां मां काली का रंग अत्याधिक काला तो देवी तारा का रंग नीला बताया गया है। मां तारा ने बाघ की खाल के वस्त्र धारण किए हैं।देवी तारा साधना की साधना धन और समृद्धि की प्राप्ति के लिए की जाती है। मां तारा की साधना करने से ज्ञान की भी प्राप्ति होती है।


मां षोडशी (Maa Shodashi)

मां षोडशी को दस महाविद्याओं में से तीसरे महाविद्या कहा जाता है। देवी षोडशी को त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है। जैसा कि नाम से पता चलता है कि देवी षोडशी तीनों लोकों में सबसे सुंदर हैं। महाविद्याओं के रूप में मां षोडशी मां पार्वती का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन्हें तांत्रिक पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा मां षोडशी को ललिता और राजराजेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है जो खेलती है रानियों की रानी।देवी षोडशी की पूजा करने के मंत्र में भी सोलह शब्दांश होते हैं।इनकी साधना सुख के साथ-साथ मुक्ति के लिए भी की जाती है। त्रिपुर सुंदरी साधना शरीर, मन और भावनाओं को नियंत्रित करने की शक्ति प्रदान करती है।



मां भुवनेश्वरी (Maa Bhuvaneshwari)

मां भुवनेश्वरी को दस महाविद्याओं में से चौथी महाविद्या कहा जाता है। देवी भुवनेश्वरी विश्व माँ के रूप में भी जानी जाती है। जैसा की इनके नाम से ही प्रतीत होता है। ब्रह्मांड की रानी जो पूरे ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती हैं। मां भुवनेश्वरी की चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। इनकी दो भुजाएं अभय और वरमुद्रा में है और इनकी एक भुजा में माला और दूसरे हाथ में इनका अस्त्र है। भुवनेश्वरी साधना सभी प्रकार के सांसारिक सुखों को प्राप्त करने के लिए की जाती है। इनकी पूजा से संतान, धन, ज्ञान और भाग्य में भी वृद्धि होती है।


मां भैरवी (Maa Bhairavi)

भैरवी दस महाविद्या देवी में से पांचवीं हैं। मां भैरवी का स्वरूप भयंकर और भयानक है। शास्त्रों में मां भैरवीं के दो रूपों का वर्णन किया गया है। जिसमें उनका एक स्वरूप काली के साथ मिलता हुआ दिखाया गया है जो श्मशान में वास करती हैं । उनके एक हाथ तलवार, दूसरे हाथ में त्रिशुल, तीसरे हाथ में राक्षस का सिर है और चौथा हाथ अभय मुद्रा में दिखाया गया है। वहीं उनके दूसरे स्वरूप की बात की जाए तो इनका दूसरा स्वरूप मां पार्वती के जैसा है। जिसमें इनका रूप अत्याधिक चमकता हुआ है। इस रूप में देवी भैरवी की चार भुजाएँ हैं जिसमें वह दो भुजाओं में एक पुस्तक और माला धारण करती हैं और अन्य भुजाओं से अभय मुद्रा और वरदान देती हुई नजर आती हैं।


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मां छिन्नमस्ता (Maa Chinnamasta)

मां छिन्नमस्ता को दस महाविद्याओं में से छठी महाविद्या माना जाता है। इन्हे स्वंयभू और प्रचंड चंडिका के नाम से भी जाना जाता है। छिन्नमस्ता की प्रतिमा भयावह है। स्वयंभू देवी ने अपने एक हाथ में अपना अलग सिर रखा हुआ है और दूसरे हाथ में खड्ग धारण किया हुआ है। उनकी गर्दन में से तीन और से खून बह रहा है। उनके रक्त को महिलाएं ग्रहण कर रही हैं। मां छिन्नमस्ता ने अपने गले में नरमुंडों की माला धारण की हुई है। मां छिन्नमस्ता की साधना तांत्रिक क्रियाओं के लिए कि जाती है। शत्रु का नाश करने के लिए छिन्नमस्ता साधना की जाती है। अदालत के मामलों से छुटकारा पाने के लिए मां छिन्नमस्ता की साधना अत्यंत ही लाभकारी है।


मां धूमावती (Maa Dhumavati)

मां धूमावती को दस महाविद्याओं में से सातवीं महाविद्या माना जाता है। मां धूमावती को विधवा स्वरूपा माना जाता है। जो सभी अशुभ चीजों से जुड़ी हुई हैं। जो हमेशा ही भूखी प्यासी और झगड़ा करती हैं। शास्त्रों के अनुसार मां धूमावती की तुलना देवी अलक्ष्मी, देवी ज्येष्टा और देवी नीरति से की जाती है। ये तीनों देवियां नकारात्मक गुणों का अवतार हैं। लेकिन वर्ष में एक समय इनकी विशेष पूजा की जाती है। देवी धूमावती साधना अत्यधिक गरीबी से छुटकारा पाने के लिए की जाती है। शरीर को सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करने के लिए भी इनकी पूजा की जाती है।


मां बगुलामुखी (Maa Baglamukhi)

मां बगुलामुकी को दस महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या माना जाता है। मां बगुलामुखी नियंत्रण की देवी माना जाता है। जब मनुष्य के जीवन में अत्याधिक शत्रु बढ़ जाए तब उसे मां बगुलामुखी की साधना अवश्य करनी चाहिए। देवी बगुलामुखी का रंग अत्यंत ही सुनहरा है वह पीले कमलों से भरे अमृत के सागर के बीच एक स्वर्ण सिंहासन में विराजमान है।मां बगुलामुखी ने पीले रंग के वस्त्र धारण कर रखे हैं। उनके एक हाथ में उनका अस्त्र है और दूसरे हाथ से वह एक असुर की जीभ निकालकर उस पर प्रहार कर रही हैं। बगलामुखी साधना दुश्मन को हराने और लकवे से ग्रस्त बिमारी को ठीक करने के लिए की जाती है।


मां मातंगी (Maa Matangi)

मां मातंगी को दस महाविद्याओं में से नवीं महाविद्या कहा जाता है। देवी सरस्वती की तरह ही इन्हें भी संगीत , ज्ञान और कलाओं की देवी कहा जाता है। इसलिए इन्हें तांत्रिक सरस्वती के नाम से भी जाना जाता है। देवी मातंगी ने हरे रंग के वस्त्र धारण किए हैं। उनकी चार भुजाएं हैं। जिनमें से एक हाथ में उन्होंने तलवार, दूसरे और तीसरे हाथ में अन्य अस्त्र धारण किए हुए हैं। उन्होंने आभूषण धारण किए हैं और वह आसन पर विराजित हैं। उनके पास एक वीणा भी है। देवी मातंगी की साधना अलौकिक शक्तियों को प्राप्त करने के लिए की जाती है। इनकी साधना से कलाओं में महारत और सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ति होती है।


मां कमला (Maa Kamla)

मां कमला को दस महाविद्याओं में से आखिरी और दसवीं महाविद्या कहा जाता है। देवी कमला को देवी का सबसे सर्वोच्च रूप माना जाता है जो उनके सुंदर पहलुओं में से एक है। इनकी तुलना न केवल लक्ष्मी जी के साथ कि जाती है बल्कि इन्हें लक्ष्मी का स्वरूप भी माना जाता है। इन्हें तांत्रिक महालक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। देवी कमला को लाल पोशाक में चित्रित किया गया है और भव्य रूप से सुनहरे गहने के साथ सजाया गया है। मां कमला की दो भुजाओं में कमल का फूल और दो भुजाएं वर मुद्रा में हैं और वह कमल के आसन पर ही विराजमान है। मां कमला की आराधना धन और समृद्धि के लिए की जाती है।

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