Navratri 2019 : दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, जानें महत्व, पूजा विधि, माता ब्रह्मचारिणी की कथा, मंत्र और आरती

Navratri 2019 : दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, जानें महत्व, पूजा विधि, माता ब्रह्मचारिणी की कथा, मंत्र और आरती
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Navratri 2019 शारदीय नवरात्रि 2019 (Shardiya Navratri 2019) में 29 सितंबर से आरम्भ हो रहे हैं, नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा (Brahmacharini Puja) का विधान है, मां ब्रह्मचारिणी ने सफेद रंग के वस्त्र धारण किए हैं, उनके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में कमंडल है, तो आइए जानते हैं माता ब्रह्मचारिणी की पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि, देवी ब्रह्मचारिणी की कथा, ब्रह्मचारिणी का मंत्र और माता ब्रह्मचारिणी की आरती

Navratri 2019 नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्माचरिणी की पूजा - अर्चना की जाती है। मां का यह रूप बहुत ही ज्यादा मोहक है। जब भगवान शिव ने अपने आपको अग्नि का स्वरूप बना लिया। उसके बाद मां ने पहाड़ पर जाकर तपस्या की थी। इसी कारण से ही मां का नाम ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini) पड़ गया। शारादीय नवरात्रि इस साल 2019 में 29 सितंबर (29 September 2019) से प्रारंभ हो रहे हैं। मां के पूजन से जीवन के सभी कष्टों से छुटकारा प्राप्त होता है तो आइए जानते हैं दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, जानें महत्व, पूजा विधि, माता शैलपुत्री की कथा, मंत्र और आरती


दूसरा शारदीय नवरात्र 2019 तिथि (Second Shardiya Navratri 2019 Date)

30 सितंबर 2019

दूसरा शारदीय नवरात्र 2019 शुभ मुहूर्त (Second Shardiya Navratri 2019 Subh Muhurat)

अभिजित मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 47 मिनट से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक (30 सितंबर 2019)


मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप ( Maa Brahmacharini Ka Swaroop)

मां ब्रह्मचारिणी ने सफेद वस्त्र धारण किए हैं। मां के एक हाथ में जाप के लिए माला है और दूसरे हाथ में कमंडल है इन्हें साश्रात् ब्रह्म का रूप माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से कृपा और भक्ति की प्राप्ति होती है। मां का यह स्वरूप अपने भक्तों को भक्ति में लीन रहना सीखाता है। इस रूप में मां अपने भक्तों को अपने कर्तव्य के प्रति लग्न और निष्ठा प्रदान करती हैं। जिस तरह से मां ने जब तक भगवान शिव को पा नहीं लिया था। तब तक वह तपस्या करती रही थी। उसी प्रकार से मनुष्य भी जब तक अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर ले उसे भी अपनी कोशिश नहीं छोड़नी चाहिए।


मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व (Maa Brahmacharini Ki Puja Ka Mahatva)

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। यह मां पार्वती का दूसरा स्वरूप माना जाता है। मां के इस रूप में पूजा करने से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी मां की पूजा से उनके भक्तों को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। मां का रूप अत्यंत ही तेजस्वीं और भव्य है। नवरात्रों में मां के इस स्वरूप की पूजा करने से जीवन के सभी कष्टों से छुटकारा प्राप्त होता है। इसलिए इनकी पूजा दूसरे नवरात्र में अवश्य करनी चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी का विधिवत पूजन से जीवन में सदाचार और नियम से जीने की सीख मिलती है।


मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि ( Maa Brahmacharini Ki Puja Vidhi)

1.नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से पहले स्नान करके साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।

2. इसके बाद मां की प्रतिमा को किसी चौकी पर स्थापित करें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान कराएं

3. इसके बाद मां कोअरूहूल का फूल व कमल फूल, अक्षत, रोली और चंदन से मां की विधिवत पूजा करें। पूजा करने से पहले हाथ में फूल लेकर इधाना कदपद्माभ्याममक्षमालाक कमण्डलु देवी प्रसिदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्त्मा मंत्र का जाप करें।

4.इसके बाद मां की कथा सुनें और धूप व दीप से आरती उतारें।

5. अंत मे मां को मिठाई का भोग लगाकर प्रसाद बांटे और मां से प्रार्थना करें।


मां ब्रह्मचारिणी की कथा (Maa Brahmacharini Ki Katha)

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव से माता पार्वती ने विवाह करने की इच्छा प्रकट की थी। इसके बाद वह अपने माता पिता को भी अपने विवाह के लिए मनाने की कोशिश करने लगी। लेकिन इसके बाद भी माता पार्वती से भगवान शिव को कामुक करने के लिए कामदेव से मदद मांगी। माना जाता है कि एक बार भगवान शिव अपनी तपस्या में लीन थे। उसी समय कामदेव ने कामवासना का तीर भगवान शिव पर छोड़ दिया। जिससे भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई और भगवान शिव कामदेव पर अत्याधिक क्रोधिक हो गए। जिसके बाद उन्होंने अग्नि का रूप ले लिया और स्वंय के साथ- साथ कामदेव को भी जला दिया।

जब भगवान शिव ने अग्नि का स्वरूप ले लिया तो माता पार्वती ने सभी कुछ त्याग कर भगवान शिव की तरह ही जीना आरंभ कर दिया। माता पार्वती ने पहाड़ पर जाकर कई सालों तक तपस्या की इसी कारण से ही उन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से भी जाना जाता है। माता पार्वती ने इतनी कठोर तपस्या की उन्होंने भगवान शिव का ध्यान अपनी और आकर्षित कर लिया। इसके बाद भगवान शिव रूप बदलकर माता पार्वती के सामने जाकर प्रकट हो गए। और अपनी ही बुराई करने लगे। लेकिन माता पार्वती ने उनकी कोई भी बात नहीं सुनी और उन्हें ही सुना दिया। जिसके बाद भगवान शिव अपने असली रूप में आए और उन्हें विवाह का वचन दे दिया।


मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र (Maa Brahmacharini Ke Mantra)

1.या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

2. या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

3.ध्यान मंत्र

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।

धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥

परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन।

पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

4.स्त्रोत (Brahmacharini Strotam)

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।

ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

शङ्करप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।

शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

5.कवच मंत्र

त्रिपुरा में हृदयम् पातु ललाटे पातु शङ्करभामिनी।

अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥

पञ्चदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥

षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।

अङ्ग प्रत्यङ्ग सतत पातु ब्रह्मचारिणी॥

मां ब्रह्मचारिणी की आरती (Maa Brahmacharini Ki Aarti)

जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।

जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।

ब्रह्मा जी के मन भाती हो।

ज्ञान सभी को सिखलाती हो।

ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।

जिसको जपे सकल संसारा।

जय गायत्री वेद की माता।

जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।

कमी कोई रहने न पाए।

कोई भी दुख सहने न पाए।

उसकी विरति रहे ठिकाने।

जो ​तेरी महिमा को जाने।

रुद्राक्ष की माला ले कर।

जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।

आलस छोड़ करे गुणगाना।

मां तुम उसको सुख पहुंचाना।

ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।

पूर्ण करो सब मेरे काम।

भक्त तेरे चरणों का पुजारी।

रखना लाज मेरी महतारी।

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