Nirjala Ekadashi 2020: निर्जला एकादशी व्रत कथा, सुनने मात्र पूरी होंगी सभी मनोकामनाएं

Nirjala Ekadashi 2020: निर्जला एकादशी व्रत कथा, सुनने मात्र पूरी होंगी सभी मनोकामनाएं
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Nirjala Ekadashi 2020: ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) कहते हैं। यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों को ही करना चाहिए। इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। आज हम आपको निर्जला एकादशी व्रत कथा के बारे में बताएंगे।

Nirjala Ekadashi 2020: ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) कहते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार भोजन सयम न रखने वाले पांच पांडवों में एक भीमसेन (Bhimsen) ने इस व्रत का पालन कर सुफल पाई थी। इसीलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी (Bhimsaini) पड़ा है। वर्ष भर की 24 एकादशियों में निर्जला एकादशी को श्रेष्ठ माना गया है। इस व्रत में पानी पीना भी वर्जित है। इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं मान्यता ऐसी है कि इस एकादशी का व्रत रखने से समुचि एकादशियों के बराबर फल मिल जाता है। आज हम आपको बताएंगे कि निर्जला एकादशी व्रत क्या है। इस निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vart Khatha) को पढ़ने और सुनने मात्र से मोक्ष की प्राप्त होती है।

निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vart Khatha)

हे भीम सेन यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रत्येक मास दोनों एकादशियों को अन्न न खाया करों। इस पर भीम सेन बोले हे व्यास जी तुम से पहले कह चुका हूं, एक दिन एक समय भी भोजन किए बिना नहीं रह सकता हूं। इसलिए पूरा दिन का उपवास करना तो कठिन है। मेरे पेट में अग्नि का वास है जो अधिक खाने पर शांति होती है। यदि मैं प्रयत्न करु तो वर्ष में एक दिन व्रत अवश्य कर सकता हूं। अत आप मुझे कोई एक एसा व्रत बतलाओं जिससे मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो।

व्यास जी बोले हे वायु पुत्र बड़े बड़े ऋषि और महर्षियों ने बहुत से शास्त्र आदि बनाए हैं। यदि कलियुग में मनुष्य उन पर आचरण करे तो अवश्य ही मुक्ति को प्राप्त होता है। उसमें धन बहुत कम खर्च होता है। उनमें से जो पुराणो का सार है कि मनुष्य को दोनों पक्षों की एकादशी एकादशियों का व्रत करना चाहिए। इससे उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

व्यास जी बोले हे भीमसेन कृष्ण और मिथुन संक्रांति के मध्यम में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है उसका निर्जल व्रत करना चाहिए। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन में जल वर्जित नहीं है लेकिन आचमन में छ मास से अधिक जल से जल नहीं लेना चाहिए। इस आचमन से शरीर को शुद्धि हो जाती है। आचमन में छ मास से जल मद पान के समान है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है। यदि मनुष्य सूर्य उदय से सूर्यास्त तक जल पान ग्रहण न करें तो उसे 12 एकादशियों के बराबर फल की प्राप्ति होती है। द्वादशी के दिन सूर्य उदय से पहले उठना चाहिए और इसके बाद भूखे ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और इसके बाद व्रती को भोजन करना चाहिए।

हे भीमसेन स्वयं भगवान ने मुझे कहा था कि इस एकादशी का व्रत समस्त तीर्थों और दान के बराबर है। एक दिन निर्जला रहने से मनुष्य पपों से मुक्त हो जाता है। जो लोग निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें मृत्यु के समय भयानक तरीके से यमदूत नहीं देखते हैं। वरण भगवान विष्णु के दूत स्वर्ग से आकर पुष्पक विमान में बिठाकर स्वर्ग में ले जाते हैं। संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। अत यतनपूर्क इस एकादशी का निर्जल व्रत करना चाहिए। इस दिन ऊँ नमों भगवतों वासुदेवाय् नम मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। इस दिन गौ दान करना चाहिए और इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। निर्जल व्रत करने से पहले भगवान की पूजा करनी चाहिए। और उनसे विनय करनी चाहिए कि हे भगवान आज मैं निर्जला व्रत करता हूं। इसके दूसरे दिन भोजन करूंगा मै इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूंगा। उससे मेरे सभी पाप नष्ट हो जाए। इस दिन बड़े व्रत से ढककर स्वर्ण सहित दान करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत के अंतराल में स्नान, तप आदि करते हैं उनको करोड़ों पल स्वर्ण दान का फल मिलता है। जो मनुष्य यज्ञ होम आदि करते हैं। उसका फल वर्णन भी नहीं हो सकता। इस निर्जला एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णु लोक को जाता है।

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