Parivartini Ekadashi 2019 : परिवर्तिनी एकादशी कब है, शुभ मुहूर्त, महत्व, व्रत विधि और परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा

Parivartini Ekadashi 2019 : परिवर्तिनी एकादशी कब है, शुभ मुहूर्त, महत्व, व्रत विधि और परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा
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परिवर्तिनी एकादशी 2019 में 9 सिंतबर 2019 को है, परिवर्तिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त, परिवर्तिनी एकादशी का महत्व, परिवर्तिनी एकादशी व्रत विधि और परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा का श्रवण कर व्रत का पूरा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) अपनी करवट बदलते हैं, जिस समय वे अपनी करवट बदलते हैं, उस समय वे प्रसन्न मुद्रा में होते हैं।

Parivartini Ekadashi 2019 परिवर्तिनी एकादशी शुभ मुहूर्त, महत्व, व्रत विधि और कथा जानने से आप भगवान विष्णु का विशेष आर्शीवाद प्राप्त कर सकते हैं। भगवान विष्णु के इस व्रत से मनुष्य को जीवन के सभी पापों से मुक्ति मिलती है और उसे जीवन के श्रेष्ठ सुखों की प्राप्ति होती है। परिवर्तिनी एकादशी को पद्मा एकादशी (Padma Ekadashi) भी कहते हैं। भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) कहा जाता है। परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगनवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग (Sheshnag) की शैय्या पर सोते हुए नींद में करवट बदलते हैं। तो आइए जानते हैं परिवर्तिनी एकादशी शुभ मुहूर्त, महत्व, व्रत विधि और कथा के बारे में...


परिवर्तिनी एकादशी 2019 तिथि समय शुभ मुहूर्त (Parivartini Ekadashi 2019 Date Time Shubh Muhurat 2019)

परिवर्तिनी एकादशी 2019 में 9 सिंतबर 2019 को है

परिवर्तिनी एकादशी प्रारंभ-8 सितंबर 2019 रात 10 बजकर 41 मिनट से

परिवर्तिनी एकादशी समाप्त-10 सितंबर 2019 सुबह 12 बजकर 31 मिनट तक

परिवर्तिनी एकादशी पारण का समय- 10 सितंबर 2019 सुबह 7 बजकर 4 मिनट से 8 बजकर 35 मिनट तक


परिवर्तिनी एकादशी का महत्व (Parivartini Ekadashi Mahatva)

परिवर्तिनी एकादशी का एकादशी का शास्त्रों में बहुत अधिक महत्व बताया गया है। परिवर्तन का अर्थ है बदलाव। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी पर भगवान विष्ण क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर सोते हुए करवट बदलते हैं। परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु प्रसन्नचित मुद्रा में होते हैं। इसलिए इस एकादशी का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।

इस समय में जो साधक भगवान विष्णु की विधिवत पूजा और अर्चना करता है तो उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती है। परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान श्री हरि की एक प्रतिमा राजा बलि के पास भी रहती है। इतना ही नहीं परिवर्तिनी एकादशी के दिन के विधिवत पूजा करने से मनुष्य के जीवन के सभी पाप धूल जाते हैं और उसे जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।


परिवर्तिनी एकादशी व्रत विधि (Parivartini Ekadashi Vrat Vidhi)

1.परिवर्तिनी एकादशी की पूजा की सभी तैयारियां दशमी तिथि से ही कर लेनी चाहिए। जिससे परिवर्तिनी एकादशी के दिन किसी भी चीज की कमीं न हो।

2. परिवर्तिनी एकादशी के दिन नहाकर साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।

3. इसके बाद एक साफ चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें और भगवान विष्णु को पीले फूल, पीले वस्त्र पीली मिठाई,तुलसी, ऋतु फल और तिल अर्पित करें।

4.इसके बाद भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें और उनके मंत्रों का जाप करें।

5. अंत में भगवान विष्णु की धूप व दीप से आरती उतारें


परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा (Parivartini Ekadashi Vrat Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार अर्जुन भगनवान श्री कृष्ण से कहा हे वासुदेव! मुझे परिवर्तिनी एकादशी के महत्व के बारे मे बताएं। इस पर भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं हे अर्जुन! मैं तुम्हें अब सभी पापों का नाश करने वाली परिवर्तिनी एकादशी की कथा सुनाने जा रहा हुं ध्यानपूर्वक इसे सुनों। यह त्रेतायुग की बात हैं। उस समय एक बलि नाम का असुर हुआ करता था।

लेकिन वह अत्यंत ही दानी,सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। वह जप और तर सदैव ही करता रहता था। इसी वजह से उसने देवराज इन्द्र को युद्ध में परास्त करके स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा लिया था। सभी देवता इस समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना की। इसके बाद भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और एक ब्राह्मण बालक रूप में राजा बलि के पास गया

मैनें राजा बलि से याचना की वे मुझे तीन पग धरती दे दें। इससे उन्हें तीनों लोकों के दान का फल मिलेगा। राजा बलि ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और मुझे भूमि दान करने का वचन दिया। जैसे ही राजा बलि ने दान का संकल्प लिया मैने अपना विराट रूप धारण कर लिया। विराट रूप धारण करते ही मैने अपने एक पांव से धरती लोक और दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग और पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया।

जिसके बाद तीसरे पग के लिए कुछ भी शेष नही था । इसलिए राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया और मैने अपना तीसरा पग उनके सिर पर रख दिया। राज बलि की वचन प्रतिबद्धता देखकर मैने उन्हें पाताल लोक दे दिया और कहा कि मैं सदैव तुम्हारे साथ रहुंगा। परिवर्तिनी एकादशी के दिन मेरी प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है। परिवर्तिनी एकादशी पर मैं सोते हुए करवट बदलता हुं।

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